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महामारी और इकनॉमी पर रघुराम राजन से खास बातचीत-'जल्द वैक्सीन लगाना ही काफी नहीं'

कोरोनावायरस, जलवायु संकट जैसी समस्याओं से निपटने के लिए रघुराम राजन का टैक्सेशन मॉडल

राघव बहल
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<div class="paragraphs"><p>रघुराम राजन से राघव बहल की खास बातचीत </p></div>
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रघुराम राजन से राघव बहल की खास बातचीत

(फोटो-क्विंट)

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एशिया सोसाइटी इंडिया सेंटर द्वारा आयोजित "कोविड के बाद भारत की आर्थिक रिकवरी" विषय पर कुछ हफ्ते पहले क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल के साथ खास बातचीत में प्रोफेसर रघुराम राजन ने दुनिया भर में COVID-19 वैक्सीन कार्यक्रमों, भारत में Informal Sector की असामयिक औपचारिकता और वैश्विक जलवायु संकट से निपटने के लिए अपने Taxation Model का आकलन किया.

आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने क्विंट को बताया कि, वैश्विक नेतृत्व की कमी है. थोड़े निवेश के साथ बहुत कुछ पैदा करना है. देशों को लगता है कि वे अपने दम पर कुछ कर सकते हैं, लेकिन सरकारों को पता होना चाहिए कि वायरस उनके अहंकार को बढ़ाने के बजाए उसे घटाने का काम कर रहा है.

Digital Divide और अनौपचारिक क्षेत्र पर महामारी के प्रभाव का उल्लेख करते हुए, राजन (Raghuram Rajan) ने कहा कि, Low-Income वाले परिवारों के बीच उपभोग खर्च गिर गया है.

आप दुनियाभर में वैक्सीनेशन प्रोग्राम का आकलन कैसे करते हैं?

यह दुनिया भर में और देश के भीतर, विश्व स्तर पर एक बहुत ही असमान टीकाकरण कार्यक्रम चल रहा है. जिन देशों में प्रभावी सरकारें हैं, वो समय पर टीकों की खरीद करने में सक्षम थे. लेकिन यह सिर्फ लोगों को जल्द से जल्द टीका लगाने के बारे में नहीं है. आपको बूस्टर खुराक के बारे में भी चिंता करने की जरूरत है, जिसके बारे में संयुक्त राज्य अमेरिका अभी सोच रहा है.

सभी देशों की सबसे पहली समस्या तात्कालिक टीकों की उपलब्धता है. दूसरा, वैक्सीन कार्यक्रम को लागू करने में होने वाली कठिनाई है. तीसरा, टीके की झिझक पर काबू पाना और टीकाकरण से जुड़ी फर्जी खबरों पर काबू पाना है.

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क्या हमें औपचारिकता के संदर्भ में औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों के बीच संतुलन को जांचने की आवश्यकता है?

लॉकडाउन ने निश्चित रूप से लोगों की अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने की क्षमता को नुकसान पहुंचाया है. सोने पर कर्ज बढ़ गया है, जो चिंता का विषय है. इसके अलावा, हर देश में असमान वैक्सिनेशन प्रोग्राम देखने को मिले हैं.

साथ ही आपने सबसे बुरे समय में अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक रूप देने के लिए मजबूर किया है. नुकसान की वास्तविक सीमा का पता नहीं है. हमें यह तय करने की जरूरत है कि लॉकडाउन के दौरान हमें उन लोगों की मदद करने की जरूरत है जो बेरोजगार हैं और जो परिवार गरीबी में चले गए हैं.

पश्चिमी देशों में असमानता कैसे कम हुई है, जबकि महामारी के बीच गरीब देशों में असमानता बढ़ी है?

पश्चिमी देश इस झटके से मुकाबला करने में सफल रहे हैं. Unemployment Insurance जैसे स्थानान्तरण ने कई लोगों को अपने कर्ज का भुगतान करने की अनुमति दी है, भले ही वो कमाई नहीं कर रहे हों. इससे उन्हें स्थानान्तरण के विशाल आकार के कारण अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करने में भी मदद मिली है. वो निम्न-आय वर्ग सहित अधिक बचत करने में सक्षम थे.

गरीब देशों में इस तरह के तबादलों की कमी के कारण मध्यम-आय वाले परिवार गरीबी में चले गए हैं. महामारी के दौरान खपत अधिक प्रतिबंधित हो गई है. यह इन देशों के बच्चों को भी लंबे समय तक प्रभावित करेगा, क्योंकि उनके पास इंटरनेट और डिजिटल संसाधनों तक पहुंच नहीं है.

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Published: 08 Oct 2021,11:04 PM IST

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