COVID-19 के बीच स्कूल खोलना सही? दोनों तरफ की दलीलें

कोरोना के बीच स्कूल खोलना कितना सही? देखिए पेरेंट्स और प्रिंसिपल की राय  

एंथनी रोजारियो
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

मार्च में करीब हजार मामलों से लेकर सितंबर में 52 लाख कोरोना पॉजिटिव केस सामने आए. कोरोना वायरस (Coronavirus) का बढ़ता संक्रमण शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट, जिम, इंटरनेशल ट्रेवल और यहां तक कि आपकी दिल्ली मेट्रो को भी अनलॉक करने से नहीं रोक पाया. अब सरकार ने मंजूरी दे दी है कि 9वीं से लेकर 12वीं क्लास तक के छात्र टीचर्स से गाइडेंस लेने के लिए सीमित दायरे में 21 सितंबर से आ सकते हैं. लेकिन शर्त ये है कि छात्र तभी आएं जब उनके पैरेंट्स की इजाजत हो.

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रि. कर्नल अमित बठला सोचते हैं कि महामारी के वक्त स्कूल खोलना (School Reopening) सही फैसला नहीं है. वो कहते हैं, 'मार्च में हजार केस सामने आए थे और हमने तब ही स्कूल बंद कर दिए थे, जुलाई में 20,000 केस हो चुके थे, और हमने कहा था कि हम 3 घंटे तक परीक्षा नहीं ले सकते.

रोज करीब एक लाख केस सामने आ रहे हैं, आप ऐसे समय में स्कूल कैसे खोल सकते हैं? अगर वो संक्रमित हो जाते हैं तो बच्चों में उससे लड़ने की क्षमता हो सकती है, अगर उससे संक्रमण उसके परिवार में फैला तो 7-8 लोग संक्रमित होंगे 

टेंपरेचर चेक, मास्क, हैंडसेनेटाइजर, डीप क्लीनिंग, 6 फीट की दूसरी, आईसोलेशन रूम. लिमिडेट तरीके से स्कूल खोलने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये सारी चीजें जरूरी की हैं. लेकिन क्या ये काफी हैं.

दिल्ली के शालीमार बाग के मॉर्डन पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल अलका कपूर का कहना है कि- ये बच्चों के लिए फिलहाल सुरक्षित नहीं है, हम स्कूल में उनकी सुरक्षा की गारंटी ले सकते हैं लेकिन सफर के समय संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है, वो किस तरह से स्कूल आ रहे हैं, ये भी एक बड़ा सवाल है

ये सिर्फ एक दो पेरेंट्स की बात नहीं है. दसअसल लोकल सर्कल्स के हाल के सर्वे में बताया गया कि 60% से ज्यादा पैरेंट्स बच्चों को फिर से स्कूल भेजना नहीं चाहते हैं. हालांकि ये बच्चों पर छोड़ा गया है कि वो स्कूल आना चाहते हैं या नहीं. तो अगर ये पैरेंट्स पर निर्भर करता है कि बच्चे को स्कूल भेजें या नहीं, तो दिक्कत कहां है

अगर सीमित दायरे में स्कूल नहीं खलेंगे, तो क्या वो दिल्ली जैसे राज्य में सर्वाइव कर पाएंगे. जहां स्कूल बंद रखने तक सिर्फ स्कूल फीस ही वसूली जा सकती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 50% स्कूल ने 4 लाख से लेकर 4 करोड़ रुपयों तक के ड्यूज कलेक्ट नहीं किए हैं.

अगर स्कूल बंद रहे हैं तो जो बच्चे प्राइवेट स्कूल में जाते हैं वो डिजिटल एजुकेशन और ऑनलाइन क्लास मैनेज कर सकते हैं लेकिन सरकारी स्कूल के 80% बच्चों का क्या जो लॉकडाउन से अभी तक एक भी लेसन नहीं पढ़ पाए हैं.

हम अभी ओनलाइन क्लास चला रहे हैं लेकिन हर कोई शामिल नहीं हो पाता है क्योंकि किसी के घर में एक ही फोन है, किसी के पिता रेड़ी लगाते हैं तो फोन साथ ले जाते हैं, किसी के पास ये सुविधा भी नहीं है. बच्चे पढ़ना चाहते हैं लेकिन उसके लिए लैपटॉप होगा मोबाइल में पढ़ लेंगे ये उन्होंने कभी सोचा नहीं था और उनके लिए अभी बहुत मुश्किल है, और अब उनमें एक डर आ गया है कि वो शायद पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं. 
संत रामदिल्ली गवर्नमेंट स्कूल टीचर

एक तरफ अमेरिका और जर्मनी में स्कूल खोलने से बच्चों में तेजी से कोरोना केस बढ़े हैं. वहीं दूसरी तरफ भारत में करीब 3.22 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं औ एक्सपर्ट्स के मुताबिक महामारी की वजह से ये आंकड़ा दोगुना हो सकता है.

आत्मनिर्भर भारत बनने का हमारे प्रधानमंत्री ने संदेश दिया है, तो हम क्यों न थोड़ी सस्ती डिवाइस बनाएं इसके लिए सरकार, NGO और सक्षम लोग इसमें फंड दे सकते हैं UNESCO, UNICEF, CSR एक्टिविटी की मदद ली जा सकती है हमें थोड़ा अलग सोचने की जरूरत है हम हर राज्य में एक जिले से इसकी शुरुआत कर सकते हैं और देख सकते हैं कि ये कैसे काम कर रहा है और उसे दूसरी जगहों पर लागू किया जा सकता है
रि. कर्नल अमित बठला, अभिभावक

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के पूर्व सलाहकार सैम पित्रोदा कहते हैं कि, 'अभी स्थिति बहुत गंभीर है, एक तरफ कोरोना संकट बढ़ रहा है और दूसरी तरफ बच्चों को शिक्षा की जरूरत है हम डिजिटल एजुकेशन देने में असक्षम हैं तो हमें मान लेना चाहिए और एक साल इसे स्थगित कर देना चाहिए

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