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वीडियो एडिटर: पुर्णेंदु प्रीतम, अभिषेक शर्मा
साउथ दिल्ली के सरकारी स्कूल की दूसरी क्लास की छात्रा कोमल, जिनका पिंक बैग जिस पर बार्बी का फोटो बना है और ये बैग किसी भी खजाने से कम नहीं है. हर दिन कोमल अपने कंधों पर 8-9 किताब और कॉपियों से भरा बैग स्कूल ले जाती है, अपनी दिनचर्या बताते हुए कोमल कहती है कि 'रोजाना इस्तेमाल होने वाली किताबों और कॉपियों के अलावा मैं डायरी ले जाती हूं ताकि नोट्स बना सकूं'
दूसरी क्लास के बच्चों के स्कूल बैग का वजन 9वीं क्लास के बच्चे से कम वजनी नहीं है. कोमल के बैग का वजन 4.6 किलो है, ये कोमल को नहीं पता है कि वो दिल्ली सरकार के निर्धारित वजन से दोगुने वजन का बैग स्कूल ले जाती है.
दिल्ली सरकार की तरफ से निर्धारित स्कूल बैग का वजन
छठी क्लास की हिमांशी डॉक्टर बनना चाहती हैं. उसे पसंद नहीं है जब उसका बैग हल्का हो, यानी 5.2 किलो से कम. एक भारी बैग छठी क्लास की छात्रा को ये विश्वास दिलाता है कि वो परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करेगी.
हिमांशी का बैग भी दिल्ली सरकार के बताए स्कूल बैग के वजन से ज्यादा है.
जितने बच्चों से क्विंट ने बात कि उनमें से लगभग सभी को सरकार की नई गाइडलाइन के बारे में जानकारी नहीं है. न ही उनके टीचर ने उन्हें कोई जानकारी दी है. क्विंट ने स्कूल के प्रिंसिपल और एनजीओ के ट्रेनिंग सेंटर के मेंटर से इजाजत लेने के बाद ही बच्चों के इंटरव्यू लिए हैं.
सरकार की नई गाइडलाइन या पॉलिसी को लागू करने के बारे में क्विंट ने एमसीडी स्कूल के प्रिंसिपल से बात की, उन्होंने कहा-
ज्यादातर सरकारी स्कूल के बच्चे NCERT की किताबों से पढ़ते हैं, लेकिन स्कूल से हर विषय की दूसरी किताबें मिलती हैं, जिसे 'सपोर्टिंग मटेरियल कहा जाता है.' सपोर्टिंग मटेरियल के चैप्टर में डिटेल में बताया जाता है साथ ही ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव सवाल भी दिए जाते हैं जिससे बच्चों को एग्जाम पेपर का अंदाजा लगता है.
ऐसे में साफ है कि बच्चों के बस्ते का बोझ भारी है और सरकारी नियमों को भी ताक पर रखा जा रहा है.
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