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दिल्ली के बच्चों पर स्कूली बैग का बोझ, क्या कहते हैं सरकारी नियम? 

एचआरडी मिनिस्ट्री ने राज्य सरकार और दिल्ली सरकार को बच्चों के स्कूल बैग के वजन को लेकर खास निर्देश दिए हैं.

आकांक्षा कुमार
न्यूज वीडियो
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दिल्ली के बच्चों पर स्कूली बैग का बोझ, क्या कहते हैं सरकारी नियम?
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दिल्ली के बच्चों पर स्कूली बैग का बोझ, क्या कहते हैं सरकारी नियम?
(फोटो: क्विंट)

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वीडियो एडिटर: पुर्णेंदु प्रीतम, अभिषेक शर्मा

साउथ दिल्ली के सरकारी स्कूल की दूसरी क्लास की छात्रा कोमल, जिनका पिंक बैग जिस पर बार्बी का फोटो बना है और ये बैग किसी भी खजाने से कम नहीं है. हर दिन कोमल अपने कंधों पर 8-9 किताब और कॉपियों से भरा बैग स्कूल ले जाती है, अपनी दिनचर्या बताते हुए कोमल कहती है कि 'रोजाना इस्तेमाल होने वाली किताबों और कॉपियों के अलावा मैं डायरी ले जाती हूं ताकि नोट्स बना सकूं'

कोमल को शायद पता नहीं...

दूसरी क्लास के बच्चों के स्कूल बैग का वजन 9वीं क्लास के बच्चे से कम वजनी नहीं है. कोमल के बैग का वजन 4.6 किलो है, ये कोमल को नहीं पता है कि वो दिल्ली सरकार के निर्धारित वजन से दोगुने वजन का बैग स्कूल ले जाती है.

1 दिसंबर 2018 को जारी सर्कुलर में दिल्ली सरकार ने पहली क्लास से 10वीं क्लास तक के बच्चों के बैग का वजन निर्धारित किया है. पहली और दूसरी क्लास के बच्चों का बैग 1.5 किलो से ज्यादा नहीं होना चाहिए. एचआरडी मिनिस्ट्री ने राज्य सरकार और दिल्ली सरकार को बच्चों के स्कूल बैग के वजन को लेकर खास निर्देश दिए हैं.

दिल्ली सरकार की तरफ से निर्धारित स्कूल बैग का वजन

  • तीसरी से 5वीं तक: 2-3 किलो
  • छठी से सातवीं तक: 4 किलो
  • 8वीं से 9वीं तक: 4.5 किलो
  • 10वीं : 5 किलो
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नोट्स के लिए एक्स्ट्रा डायरी!

छठी क्लास की हिमांशी डॉक्टर बनना चाहती हैं. उसे पसंद नहीं है जब उसका बैग हल्का हो, यानी 5.2 किलो से कम. एक भारी बैग छठी क्लास की छात्रा को ये विश्वास दिलाता है कि वो परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करेगी.

हिमांशी का बैग भी दिल्ली सरकार के बताए स्कूल बैग के वजन से ज्यादा है.

जब मैं कोई भी बुक लाना भूल जाती हूं, तो नोट्स बनाने के लिए डायरी ले जाती हूं. इस डायरी में लिखती हूं, यहां जब मैं पहली बार आई थी, तो उस क्लास में मुझे LCM और Noun सिखाया गया था, बाकी कामों के लिए एक कॉपी और एक डायरी रखती हूं. मेरा बैग भारी तो होता है. लेकिन मैं घर पर बताती नहीं हूं, क्योंकि वो परेशान हो जाते हैं. 
हिमांशी, छात्रा, 6th क्लास

बच्चों को नहीं है नई गाइडलाइन की जानकारी

जितने बच्चों से क्विंट ने बात कि उनमें से लगभग सभी को सरकार की नई गाइडलाइन के बारे में जानकारी नहीं है. न ही उनके टीचर ने उन्हें कोई जानकारी दी है. क्विंट ने स्कूल के प्रिंसिपल और एनजीओ के ट्रेनिंग सेंटर के मेंटर से इजाजत लेने के बाद ही बच्चों के इंटरव्यू लिए हैं.

सरकार की नई गाइडलाइन या पॉलिसी को लागू करने के बारे में क्विंट ने एमसीडी स्कूल के प्रिंसिपल से बात की, उन्होंने कहा-

‘हमें नए सर्कुलर के बारे में जानकारी है और हम अपने स्टाफ से इस बारे में चर्चा करेंगे कि कैसे इसे लागू किया जाए’
प्रिंसिपल, साउथ दिल्ली सरकारी स्कूल

क्या 'सपोर्टिंग मटेरियल' से बढ़ रहा है बैग का वजन?

ज्यादातर सरकारी स्कूल के बच्चे NCERT की किताबों से पढ़ते हैं, लेकिन स्कूल से हर विषय की दूसरी किताबें मिलती हैं, जिसे 'सपोर्टिंग मटेरियल कहा जाता है.' सपोर्टिंग मटेरियल के चैप्टर में डिटेल में बताया जाता है साथ ही ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव सवाल भी दिए जाते हैं जिससे बच्चों को एग्जाम पेपर का अंदाजा लगता है.

मैं अपने शेड्यूल के हिसाब से किताबें ले जाती हूं. आज मैं कोई भी सोशल स्टडी की बुक नहीं लाई हूं, मैथ्स और साइंस की बुक साथ लेकर ही चलती हूं जिनका वजन ज्यादा होता है. मेरे दोस्त साइंस और मैथ्स के सपोर्ट मटीरियल लेकर चलते हैं और आज कल सोशल स्टडी के भी टीचर कहते हैं कि अगर अच्छे नंबर लाना चाहते हैं तो NCERT की किताबें काफी नहीं हैं. इसलिए वो सपोर्ट मटेरियल साथ पढ़ने के लिए कहते हैं.
मोनालिसा, छात्रा, 10वीं क्लास

ऐसे में साफ है कि बच्चों के बस्ते का बोझ भारी है और सरकारी नियमों को भी ताक पर रखा जा रहा है.

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