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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई
कैमरापर्सन: ऐश्वर्या एस अय्यर
राजस्थान में 22,000 खदान मजदूरों का सिलिकोसिस से पीड़ित होना संकेत देता है कि सरकार किस तरह से इनकी अनदेखी कर रही है. गरीबी से जूझते इन लोगों की हालत खराब से खराब होती गई लेकिन फिर भी राज्य की सरकार के लिए ये मुद्दा नहीं है. सरकार से मुआवजे की मांग करने की जगह अब ये पीड़ित मजदूर इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनकी अर्जी सुन ले. उनकी जिंदगी के सवाल को भी चुनावी मुद्दा माना जाए.
ये काम इन मजदूरों को 2 वक्त की रोटी जुटाने में मदद तो कर रहा है लेकिन जान और स्वास्थ्य की कीमत पर. सांस लेने में होती तकलीफ बढ़ते-बढ़ते 4-5 सालों में जानलेवा हो जाती है.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, इन मजदूरों को राज्य सरकार से 1 लाख रुपये की राहत राशि मिलनी चाहिए. सिलिकोसिस पीड़ित की मौत के बाद परिवार को 3 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर मिलते हैं.
सिलिकोसिस के मरीज, भीलवाड़ा के राम सिंह कहते हैं-
सर्टिफेकेट मिलने के एक साल के इंतजार के बाद मुआवजा पाने वाले एक और दूसरे मरीज राम सिंह अब अपनी बीमारी की वजह से हताश हो चुके हैं.
क्विंट ने मजदूर किसान शक्ति संगठन से जुड़े एक्टिविस्ट निखिल डे से बात की, जिन्होंने सिलिकोसिस रोगियों के लिए राहत की जगह मुआवजे की जरूरत को लेकर बात की.
राजस्थान में होने वाले चुनावों पर बात करने पर राम सिंह कहते हैं- “जो भी जीते, जिसकी भी राजनीति बने, वो पैसों वाली की क्या सहायता करते हैं..मेरे जैसे गरीबों की मदद करें. राजस्थान में भीलवाड़ा जिला में पत्थर, खदान के अलावा और कोई काम नहीं है. भीलवाड़ा जिले में सभी पत्थर का ही काम करते हैं. यहां सबको यही बीमारी है इसलिए सरकार को खासतौर पर ध्यान देकर सहायता दिलवानी चाहिए. जो भी सरकार में आए, उन्हें मदद करनी चाहिए. भगवान उनकी और भी सुनेंगे.”
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