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कैमरा पर्सन: कनिष्क दांगी
वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
ऊंची अदालतों के भीतर क्या होता है, कैसे होता है, फैसले कैसे लिए जाते है...ऐसे तमाम सवालों के बारे में इस देश के करोड़ों आम आदमी सोचते तो बहुत हैं लेकिन कुछ मालूम नहीं चलता. अब रहस्यों में लिपटी मानी जाने वाली कोर्ट की कार्यवाही को आप लाइव देख सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में ये व्यवस्था दी है.
कोर्ट ने इसके लिए नियम तैयार करने के भी निर्देश दे दिए हैं. यानी वो दिन अब दूर नहीं जब आप राष्ट्रीय महत्व के मामलों में फैसलों तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया को सीधे प्रसारण के तौर पर देख पाएंगे. हालांकि, ये टीवी पर किसी चैनल के जरिए होगा, किसी वेबसाइट पर या यूट्यूब पर, ये साफ होने में कुछ दिन का वक्त लग सकता है.
अब समझते हैं कि कोर्ट ने ऐसा किया क्यों और इससे हमको, आपको, इस देश को क्या हासिल होगा? कोर्ट ने इस जब सीधे प्रसारण को हरी झंडी दिखाई तो कहा कि इससे अदालती कामकाज को लेकर पारदर्शिता आएगी और 'जनता का जानने का अधिकार' पूरा होगा.
ये कई मायनों में ऐतिहासिक है. दुनिया के 200 से ज्यादा देशों में से सिर्फ 14 में सीधे प्रसारण की ये व्यवस्था लागू है और इस फैसले के साथ भारत भी उस जमात में शामिल हो जाएगा. अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड और जर्मनी जैसे देश पहले ही लाइव स्ट्रीमिंग करते हैं.
अब जरा सोच कर देखिए. अब तक न जाने कितने बड़े फैसलों को लेकर इस देश के चौक-चौराहों पर बहस होती है. जो कई बार शक के गोल-गोल दायरों में भी घूमती है. जब कोर्ट लाइव स्ट्रीमिंग की इजाजत दे देगी तो कौन किस पर शक करेगा. सब साफ होगा. पारदर्शी होगा. ईमानदार होगा. जाहिर है, इससे कई पक्षों में नफरतें भी मिटेंगी और अदालती कार्यवाही पर भरोसा भी खूब बढ़ेगा.
अपने देश में फिलहाल ये सिस्टम 3 महीने के लिए बतौर पायलट प्रोजेक्ट चलाया जाएगा. शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रीय और संवैधानिक अहमियत वाले केस का सीधा प्रसारण होगा. जैसे ही इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो जाता है, कोर्स सारे केस की लाइव स्ट्रीमिंग की इजाजत दे सकता है. फैसले में ये भी कहा गया है कि इस बात पर भी बातचीत हो कि कैसे लाइव स्ट्रीमिंग हाईकोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में भी लागू हो पाए.
सुप्रीम कोर्ट ने ये माना है कि कोर्ट को भी अब बदलती टेक्नोलॉजी के साथ बदलने की जरूरत है. एक सवाल और है कि कौन तय करेगा कि किस केस का सीधा प्रसारण हो या किस केस का नहीं. इस सवाल का जवाब है कि लाइव स्ट्रीमिंग को रोकने का फैसला उसी जज के पास होगा जो उस केस की सुनवाई कर रहा है. सीधे प्रसारण या लाइव स्ट्रीमिंग वहीं एजेंसी कर सकेगी जिसे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस तय करेंगे. प्रसारण का कॉपीराइट कोर्ट के पास होगा, जिसे कॉमर्शियल पर्पज के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकेगा.
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