क्या अब हमें 'HAPPY DIWALI' कहने से भी रोका जाएगा?

Tejasvi Surya के मुताबिक चले तो शुद्ध हिंदू त्योहार दिवाली के आगे हैप्पी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता

रोहित खन्ना
न्यूज वीडियो
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<div class="paragraphs"><p>फैबइंडिया के जश्न-ए-रिवाज विज्ञापन को लेकर तेजस्वी सूर्या के ट्वीट के बाद वापस लिया गया विज्ञापन</p></div>
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फैबइंडिया के जश्न-ए-रिवाज विज्ञापन को लेकर तेजस्वी सूर्या के ट्वीट के बाद वापस लिया गया विज्ञापन

(फोटो: Altered by Quint Hindi)

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वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह/शोहिनी बोस

वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

कैमरामैन: शिव कुमार मौर्या

ये जो इंडिया है ना… यहां हो सकता है कि हम एक-दूसरे को 'हैप्पी दिवाली' फिर न कह पाएं! क्यों ? क्योंकि तेजस्वी सूर्या ऐसा कहते हैं. 'हैप्पी' अंग्रेजी का शब्द है, मतलब क्रिस्चन, मतलब गैर हिंदू. इसलिए शुद्ध हिंदू त्योहार दिवाली के आगे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. क्योंकि अगर हमने ऐसा किया तो गजब हो जाएगा. गौर से सुनिए ये शब्द बहुत बड़ा, भारी-भरकम और हाई फंडा शब्द है.. 'भारतीय संस्कृति का ABRAHAMIFICATION' हो जाएगा. लेकिन सच ये है कि लाखों भारतवासी, करोड़ों 'हैप्पी दिवाली' के संदेश जरूर भेजेंगे. तेजस्वी सूर्या को पसंद आए या नहीं.

लेकिन ये ‘ABRAHAMIFICATION’ क्या है? असल में मैं ताज्जुब में हूं कि तेजस्वी सूर्या ने ‘IBRAHIM-IFICATION' नहीं कहा... क्योंकि ये उनकी नफरत की राजनीति को ज्यादा सूट करता है. आसान भाषा में समझे तो उनके मुताबिक हिंदू कल्चर का इस्लामीकरण या ईसाईकरण. वो हिंदू कल्चर जिसका उनके मुताबिक मतलब होता है भारतीय कल्चर. जिसने उनके मुताबिक अबतक किसी कल्चर से कुछ नहीं लिया, और ना ही किसी और कल्चर से कुछ लेना चाहिए. सिर्फ 100% शुद्ध हिंदू कल्चर.

लेकिन तेजस्वी मेरे भाई, ये मिश्रण, मंथन, मिक्सिंग और मिंग्लिंग की दुनिया है. कुछ भी 100% शुद्ध नहीं है, ना घी, ना संस्कृति, ना भाषा! आधुनिक भारत में तो कतई नहीं. ना ही प्रीति पटेल के इंग्लैंड में या कमला हैरिस के अमेरिका में, या सुनील नारायण के वेस्ट इंडीज में! आधुनिक दुनिया ऐसी ही है. आज हम कई सभ्यताओं के कंधों पर पैर रखकर खड़े हुए हैं... चीन, अरब, मिश्र, ग्रीक, फारसी और हां, भारतीय भी, और साथ कई और भी. आप जो क्रिकेट खेलते हैं, आप जो बर्गर, बिरयानी, समोसा खाते हैं, आप जो जींस और टी शर्ट पहनते हैं, हम जिस साइंस का इस्तेमाल करके जो वैक्सीन बनाते हैं, हम जो भी भाषा बोलते हैं.. चाहे कन्नड़, हिंदी या जो भी हो... ये सब हजारों सालों की सभ्यताओं से आया है.

लेकिन फिर मैं सोचता हूं कि तेजस्वी सूर्या को ये सब कैसे नहीं पता होगा? जैसा सोहैल हाशमी ने क्विंट पर लिखे लेख में बताया है, क्या तेजस्वी सूर्या नहीं जानते कि कन्नड़ में खुद कई शब्द फारसी और अरबी मूल के हैं? गलीज या खराब दिमाग वाला, ये शब्द अरबी भाषा के घलीज शब्द से बना है. निश्चित है कि सूर्या जानते होंगे कि हिंदी के भी कई शब्द इसी तरह हैं, जैसे- हलवा, हवा, कानून, खतरा, रिश्वत, अमीर, गरीब और भी कई सारे अरबी मूल के शब्द हैं. वहीं दुकान, नमक, समोसा, अस्पताल, बीमार और दूसरे शब्द फारसी मूल के हैं.

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मेरा अंदाजा ये है कि तेजस्वी सूर्या ये सब जानते हैं, लेकिन उनके ब्रांड वाली नफरत और विभाजन की राजनीति में ऐसे फैक्ट, ऐसी समझ, फिट नहीं बैठते. भारत में नफरती लोग उर्दू को मुस्लिमों की भाषा, बिरयानी को मुस्लिमों का खाना, और अब्बा-मियां जैसे शब्दों को सिर्फ मुस्लिमों की पहचान देते हैं. ऐसा उनके लिए जरूरी है ताकि वे कह सकें कि मुस्लिम अलग होते हैं. क्योंकि जो अलग होता है, उसके प्रति नफरत पैदा करना ज्यादा आसान होता है.

तेजस्वी सूर्या के लिए ये सही नहीं बैठता कि वो अपने फॉलोवर्स को बताएं कि उर्दू भाषा के 60% शब्द संस्कृत से आते हैं. तेजस्वी सूर्या के लिए ये सही नहीं होगा कि भारतीय अपने बच्चों को मिली-जुली संस्कृति, हमारी गंगा-जमुनी तहजीब के बारे में बताएं, जिसका मतलब है हिंदुस्तानी होना. इस कल्चर के मजेदार मंथन को अगर वो स्वीकारेंगे तो मुस्लिम- हिंदू का फर्क खत्म हो जाएगा. तो फिर उनकी नफरत का टारगेट का क्या? देश की नफरत करने वाली ब्रिगेड ये बर्दाश्त नहीं कर पाएगी.

ये भी समझने की जरूरत है कि ये लोग बार बार अपराध करते हैं. 2015 में तेजस्वी सूर्या ने ये ट्वीट किया था-

"आतंक का कोई धर्म नहीं होता. लेकिन आतंकवादी का जरूर होता है. ज्यादातर इस्लाम होता है." ये इतना भड़काऊ था कि मोदी सरकार को ट्विटर से इसे हटाने के लिए कहना पड़ा था, हालांकि पूरे पांच साल बाद.

दूसरा साफ पैटर्न ये है कि विभाजनकारी, नफरती भाषणों को पुरस्कृत किया जाता है. अगर नफरत फैलाना आपके राजनीतिक रेज्यूमे का बड़ा हिस्सा है, तो आप तेजी से आगे बढ़ते हैं. योगी आदित्यनाथ हों, प्रज्ञा ठाकुर हों, या तेजस्वी सूर्या हों. कोई आश्चर्य नहीं कि तेजस्वी सूर्या की टिप्पणी के ठीक बाद अनंत कुमार हेगड़े ने भी आमिर खान के सड़क पर पटाखा फोड़ने के बारे में विज्ञापन की निंदा की. कोई आश्चर्य नहीं, कि नरसिंहानंद, जो नियमित रूप से मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाते हैं, उन्हें प्रभावशाली जूना अखाड़े का प्रमुख बना दिया गया. कोई आश्चर्य नहीं कि स्वामी परमात्माानंद नामक एक शख्स ने छत्तीसगढ़ में एक समारोह में बीजेपी नेताओं की उपस्थिति में खुलेआम ईसाई धर्म प्रचारकों के सिर कलम करने का आह्वान किया. हो सकता है कि उन्हें भी जल्द ही चुनावी टिकट मिल जाए.

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