advertisement
म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?
कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल की बरसात
मेडल जीतने वाली खिलाड़ी को हमारी सरकार 1 करोड़ रुपए देगी
भाइयों बहनों, खेल अब 'टाइम पास' नहीं है..
ये सारी बातें कभी मीडिया में, कभी फिल्मी डायलॉग तो कभी नेताओं के मुंह से आपने सुने होंगे. लेकिन इन चमकदार डायलॉग के पीछे की स्याह तस्वीर बार-बार सामने आ जाती है.
इस बार कुश्ती के अखाड़े में अपने विरोधी को पटकनी देने वाली पहलवान अपने कोच से लेकर रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रही हैं. आरोप है कि सालों से महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न हो रहा है.
इन आरोपों पर अब मीडिया, खेल प्रेमी, नेता सब एक्टिव हो गए हैं. कोई आरोपों को मनगढ़ंत बता रहा है तो कोई इसमें सियासी एंगल देख रहा है. लेकिन रेसलिंग के अलावा भी देशभर के खिलाड़ियों के उत्पीड़न, बेरुखी और खराब व्यवस्था की कहानी आप सुनेंगे तो पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
पहले बात कर लेते हैं देश के नामी पहलवानों की. जो ओलंपिक से लेकर कॉमनवेल्थ खेलों में देश के नाम मेडल लेकर आए हैं, वे अब धरने पर हैं. रेसलर विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया समेत कई पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह और कई कोच पर महिला रेसलरों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है. विनेश फोगाट दावा कर रही हैं कि उन्हें जान से मारने की धमकी मिली थी.
आपको याद है, ओलंपिक में खिलाड़ियों ने मेडल जीते तो सरकारों और नेताओं का खेल प्रेम फूट पड़ा था. करोड़ों रुपए, इनाम, सम्मान. क्रेडिट लेने की होड़ मची थी. लेकिन कमाल देखिए जिस बजरंग पूनिया ने टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए रेसलिंग में ब्रॉन्ज जीता था अब वो कह रहे हैं कि फेडरेशन क्रेडिट लेने का काम करता है, मेडल मिलने पर फेडरेशन अपनी पीठ थपथपाने के लिए खिलाड़ियों से ट्वीट करवाता है. लेकिन ट्रेनिंग देने में फेडरेशन फेल रहता है.
ये तो हो गई रेसलिंग की बात. आपको बताते हैं कि इस देश में जब तक खिलाड़ियों का नाम बन नहीं जाता तब तक उन्हें कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं.
सितंबर 2022 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में डॉक्टर भीमराव स्पोर्ट्स स्टेडियम में आयोजित कबड्डी प्रतियोगिता के दौरान महिला खिलाड़ियों को टॉयलेट के अंदर बना खाना खाने के लिए मजबूर होना पड़ा. खाने में कच्चे चावल दिए गए. जब इस पूरी घटना का वीडियो वायरल हुआ तब सहारनपुर के क्रीड़ा अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया.
उत्तर प्रदेश में कबड्डी खिलाड़ियों का 17 दिसबंर 2022 को झांसी में ट्रायल होना था, लेकिन 10 साल से तैयारी कर रही खिलाड़ी इसमें शामिल नहीं हो सकीं. क्योंकि इन लोगों को जनपद में होने वाले ट्रायल की ना तो खबर दी गई और ना ही ट्रायल कराया गया.
इस मामले में जब जिम्मेदार अधिकारियों से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि उनकी ड्यूटी मेले में लगी थी और इसी वजह से वो ट्रायल का आयोजन नहीं करा पाए.
विराट, सचिन, धोनी के कसीदे पढ़ने वाले देश में ब्लाइंड क्रिकेटरों का हाल जानइएगा तो शर्म आ जएगी. भारतीय क्रिकेट टीम ने हाल ही में देश में आयोजित किए गए ब्लाइंड टी20 वर्ल्ड कप का खिताब अपने नाम किया था. ये तीसरी बार था जब भारत की झोली में ये वर्ल्डकप आया.
बेरुखी की कहानी तो आपने सुनी अब महिला खिलाड़ी और कोच के साथ कैसा सुलूक होता है वो भी जान लीजिए.
हरियाणा में जूनियर महिला कोच ने आरोप लगाया है कि पूर्व खेल मंत्री संदीप सिंह ने उन्हें सरकारी आवास पर बुलाकर यौन उत्पीड़न किया. पीड़िता के मुताबिक मंत्री द्वारा उन्हें मनपसंद पोस्टिंग और दूसरी सुविधाओं का लालच दिया गया था.
महिला खिलाड़ियों के साथ यौन उत्पीड़न का एक और मामला देखिए. साल 2022 के जून महीने में भारतीय महिला साइकलिस्ट ने नेशनल स्प्रिंट टीम के मुख्य कोच आरके शर्मा पर अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया था. कोच पर आरोप था कि उन्होंने महिला साइकलिस्ट के साथ एक कमरा शेयर करने के लिए कहा और फिर बाद में जबरदस्ती महिला खिलाड़ी के कमरे में घुस आए.
खिलाड़ियों के साथ इस देश में कैसा खेल होता है ये देखिए- कुछ वक्त पहले खबर आई कि
धनबाद के बांसमुड़ी की जूनियर इंटरनेशनल फुटबॉलर संगीता सोरेन ईंट भट्ठे में काम कर रही हैं, संगीता जूनियर फुटबॉल में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए 2018-19 में भारत की अंडर-17 फुटबॉल टीम में अपनी जगह बनाई थी.
स्ट्रेंथ लिफ्टिंग में कई पदक जीतने वाली हरियाणा, रोहतक की सुनीता देवी घर-घर काम करने को लेकर मजबूर.
कराटे में वर्ल्ड चैंपियन रहे मथुरा के हरिओम आर्थिक बदहाली की वजह से चाय बेच रहे थे.
इंटरनेशनल फुटबॉल टूर्नामेंट में खेल चुकी झारखंड की अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉलर आशा कुमारी खेतों में काम करती.
चंडीगढ़ में नेशनल मुक्केबाज रितु पार्किंग टिकट काटती थीं. रितु की खबरें जब मीडिया में आईं, तब जाकर उन्हें चंडीगढ़ खेल विभाग ने बॉक्सिंग अकादमी में एडमीशन करवाया.
तो क्या जब तक खिलाड़ियों की परेशानी की खबर मीडिया में नहीं आएगी तब तक क्या ये बेहाल ही रहेंगे? क्या खिलाड़ियों को खेल प्रतियोगिताओं के बजाय बुनियादी हकों के लिए दंगल करना पड़ेगा? ओलंपिक में पदक चाहिए, वर्ल्ड कप भी चाहिए, देश का नाम भी चाहिए लेकिन जिम्मेदार लोग बेखबर रहेंगे, खिलाड़ियों को सुविधा नहीं देंगे, उन्हें प्रताड़ित करेंगे तो हम पूछेंगे. जनाब ऐसे कैसे?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)