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सेक्सुअल असॉल्ट पर बॉम्बे HC का ‘विचित्र’ फैसला, SC ने लगा दी रोक

‘स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट’ नहीं तो यौन अपराध नहीं- बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर SC ने रोक लगा ही दी!

कौशिकी कश्यप
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19 जनवरी 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही पॉक्सो एक्ट और सेक्सुअल असॉल्ट को लेकर एक आदेश दिया था
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19 जनवरी 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही पॉक्सो एक्ट और सेक्सुअल असॉल्ट को लेकर एक आदेश दिया था
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

अगर मैं हाथों में ग्लव्स पहनकर किसी को थप्पड़ लगा दूं तो क्या सामने वाला इसे थप्पड़ नहीं मानेगा?

19 जनवरी 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही पॉक्सो एक्ट और सेक्सुअल असॉल्ट को लेकर एक आदेश दिया जिससे ऐसे ही 'विचित्र' सवाल दिमाग में आ रहे हैं. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी मांगी है. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने ऐसा क्या कहा था, वो तर्कपूर्ण है या ‘विचित्र’ ये आप पूरा मामला जानने के बाद शायद तय कर पाएं!

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट के छूना POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा. आदेश के मुताबिक किसी भी छेड़छाड़ की घटना को यौन शोषण की श्रेणी में रखने के लिए घटना में ‘यौन इरादे से किया गया स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट’ होना चाहिए.

बता दें, ट्रायल कोर्ट ने एक 39 साल के शख्स को 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने के अपराध में 3 साल की सजा सुनाई थी, जिसे कोर्ट ने संशोधित किया था. आरोपी बच्ची को कुछ खिलाने का लालच देकर अपने घर ले गया था जहां उसने बच्ची का ब्रेस्ट छुआ और उसकी सलवार उतारने की कोशिश की.

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी को पॉक्सो एक्ट से बरी कर सिर्फ IPC के सेक्शन 354 के तहत सजा बरकरार रखी है. सेक्शन 354 के तहत दोषी को एक साल की सजा होती है, वहीं POCSO एक्ट 3 साल की सजा का प्रावधान करता है, तो इस मामले में कोर्ट के आदेश के मुताबिक आरोपी की सजा कम होती है.

लेकिन दिया गया फैसला, न सिर्फ पॉक्सो एक्ट के मैंडेट के खिलाफ जाता है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया पर भी सवाल करता है.

पॉक्सो एक्ट सभी तरह के यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के हितों की रक्षा करता है और एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है.

दरअसल, इस केस में कोर्ट के सामने मुख्य मुद्दा ये था कि क्या 'प्रेसिंग ऑफ ब्रेस्ट' और 'सलवार को हटाने की कोशिश' पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 7 में परिभाषित यौन शोषण की परिभाषा के तहत आती है और सेक्शन 8 के तहत दंडनीय है?

सेक्शन 7 के तहत 2 चीजें जरूरी हैं- सेक्सुअल इंटेंट यानी इरादा और अगर कोई किसी नाबालिग के ब्रेस्ट, वजाइना, लिंग या एनस को छूता है या फिर किसी बच्चे से अपने या किसी और के शरीर के इन हिस्सों को स्पर्श कराता है, या फिर पेनीट्रेशन के अलावा भी यौन इरादे के साथ शारीरिक संपर्क वाली कोई क्रिया कराता है तो इसे यौन हमला माना जाएगा.

लेकिन इस मामले में कोर्ट ने कहा कि यौन शोषण की परिभाषा में ‘शारीरिक संपर्क’ की बात के तहत ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट होना चाहिए.

कोर्ट ने इसे शीलता भंग करने की आपराधिक घटना माना

कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत दी जाने वाली सजा को देखते हुए, कोर्ट को लगता है कि इसके लिए मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोपों की जरूरत है. 12 साल की बच्ची के ब्रेस्ट दबाने की घटना, इस सबूत के अभाव में कि उसका टॉप हटाया गया था या नहीं या फिर आरोपी ने अपने हाथ टॉप के अंदर डाले थे या नहीं, यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आ सकती. ये किसी लड़की या महिला की शीलता भंग करने की आपराधिक घटना हो सकती है.'

कोर्ट ने इस केस में पाया भी कि आरोपी ने असल में लड़की के स्तन को छुआ था, फिर भी सेक्शन के शाब्दिक व्याख्या का सहारा लिया कि वहां स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट नहीं था, इसलिए सेक्शन 7 के तहत ये ‘सेक्सुअल असॉल्ट' नहीं था.

लेकिन आपके लिए ये जानना जरूरी है कि सेक्शन ये स्पष्ट नहीं करता है कि ‘स्पर्श’ इस अर्थ में फिजिकल होना चाहिए या उसे ‘स्किन टू स्किन' होना चाहिए.

पॉक्सो एक्ट की परिभाषा में स्पष्टता की कमी है. हो सकता है कि जज का ये कहना गलत न हो कि इसे गंभीर अपराध मानने के लिए ‘स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट’ होना चाहिए, लेकिन ये आदेश इस एक्ट के मकसद के खिलाफ जाता है. ये एक्ट तो लाया ही गया है बच्चों की सुरक्षा के लिए ताकि उनके खिलाफ हो रहे किसी भी अपराध की गहनता और गंभीरता को समझते हुए सख्ती बरती जाए. इसे लेकर ज्यादा सावधान, संजीदगी बरतने की जरूरत है. कोर्ट का इंटरप्रेटेशन यहां गलत है और एक्ट के मकसद के उलट है.

इस आदेश ने लोगों को चौंका दिया है. सोशल मीडिया पर लोग नाराजगी के साथ सवाल पूछ रहे हैं- क्या सिर्फ ग्रोपिंग सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है? क्या किसी बालिग या नाबालिग को सहमति के बिना उसे छूना सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है?

ये युवा, बड़ी हो रही बच्चियों को ये संदेश देता है कि अगर अगर कोई आपको सहमति के बिना छूता है तो ये गलत तो है लेकिन गंभीर नहीं है जबतक आपके कपड़े न उतारे गए हो.

सबसे बड़ी बात क्या कोई कपड़ों के ऊपर से जकड़े, छूए तो क्या महिलाओं या लड़कियों पर यौन हमला नहीं है? क्या वो इससे कम डर महसूस करती हैं?

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