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असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की फाइनल लिस्ट 31 अगस्त को जारी कर दी गई है. इस लिस्ट में 3.11 करोड़ लोगों को शामिल किया गया है, जबकि करीब 19 लाख से ज्यादा लोगों के नाम लिस्ट में नहीं है. असम में रह रहे जिन लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं, वे अपने भविष्य को लेकर डरे हुए हैं. वहीं, जिन लोगों के नाम लिस्ट में शामिल हैं, उनके चेहरों पर खुशी है.
असम की रेनू बेगम ने द क्विंट से कहा, "हमें अब जाकर एक अच्छी खबर मिली है. पहले मेरा नाम NRC में था लेकिन मेरी मां का नाम नहीं था. मैं कई सुनवाई में गई हूं. अब उनका नाम भी शामिल कर लिया गया है, मैं बहुत खुश हूं."
असम के सैदुल अहमद लिस्ट में शामिल नहीं होने से दुखी हैं. उन्होंने क्विंट से कहा, "मैं NRC लिस्ट में आंटी का नाम देखने आया था, मैंने ऑनलाइन देखा लेकिन उसमें रिजेक्टेड बता रहा है. हमारे पास 1932 से जमीन के पेपर हैं." उन्होंने ये भी कहा, "यहां हमारी जमीन है, अगर हम हिंदुस्तानी नहीं हैं तो कौन होगा?"
असम सिविल सोसायटी के कुछ लोगों का कहना है कि लिस्ट से बाहर होने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है. सुप्रीम कोर्ट में NRC मामले में याचिकाकर्ता अभिजीत शर्मा ने कहा, ये NRC बिना रि-वेरिफिकेशन वाला है, ये NRC बिना टेक्निकल ऑडिट के हो रहा है, ये गलत सॉफ्टवेयर वाला NRC है , ये NRC गैर नागरिकों को नागरिकता दिलाने के लिए हो रहा है, तो हम इसे अपना नहीं सकते."
NRC का मकसद अवैध आव्रजकों (माइग्रेंट्स) की पहचान करना है. हालांकि जिन लोगों का नाम NRC में नहीं है, उन्हें विदेशी घोषित करने का काम फॉरनर्स ट्रिब्यूनल का होगा. अगर कोई फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में केस हार जाता है तो उसके पास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी अपील करने का मौका होगा. लीगल प्रोसेस पूरा हो जाने के बाद जो लोग विदेशी घोषित हो जाएंगे, उन्हें हिरासत केंद्रों में भेजा जाएगा.
बता दें, मौजूदा NRC में जगह पाने के लिए 1951 के NRC या 24 मार्च, 1971 तक मतदाता सूची/स्वीकार्य दस्तावेजों में आवेदक/आवेदकों के परिजनों का नाम होने की शर्त तय की गई थी. स्वीकार्य दस्तावेजों में जन्म प्रमाण पत्र, रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, भूमि रिकॉर्ड, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पीआरसी, पासपोर्ट, एलआईसी पॉलिसी, सरकारी लाइसेंस या प्रमाण पत्र, एजुकेशनल सर्टिफिकेट और कोर्ट के रिकॉर्ड्स आदि शामिल थे.
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