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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
कैमरा पर्सन: अभिषेक रंजन
5 साल का वक्त.. 1200 करोड़ से ज्यादा का खर्च...करीब 62 हजार सरकारी अफसरों की मेहनत.. और नतीजा असम की कुल आबादी के 6% से भी कम. यानी आसान शब्दों में कहें तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया. मैं बात कर रहा हूं NRC यानी ‘Needless Register of Citizens’.. ओह माफ कीजिएगा National Register of Citizens की, जिसे लेकर आजकल असम में बवाल मचा है.
असम में नागरिकता रजिस्टर की आखिरी लिस्ट आने के बाद सूबे के लोगों से लेकर सियासी पार्टियों तक में हड़कंप है. आखिरी लिस्ट से मतलब ये है कि इस लिस्ट में जिसका नाम नहीं है वो असम का या भारत देश का नागरिक नहीं है, बांग्लादेशी ‘घुसपैठिया’ है. हालांकि अब भी उन लोगों के पास अपील के लिए 4 महीने का वक्त है लेकिन वो बात बाद में.
पहले बात सियासी पार्टियों में मचे हड़कंप की. कांग्रेस और ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन जैसी विपक्षी पार्टियों को तो छोड़ो असम में खुद बीजेपी के नेता एनआरसी की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं. और इसकी वजह है भारी गड़बड़ियां.
वो मुद्दा एक फर्जी एक्सरसाइज था?
अगर नतीजा यही आना था तो फिर इसकी मंशा क्या थी?
और 6 फीसदी क्यों? हालात तो ये है कि घुसपैठियों की तादाद 19 लाख से गिरकर और नीचे आने वाली है.
वैसे कसूर सिर्फ बीजेपी का ही क्यों निकाला जाए?
यानी सियासत के इस हमाम में सब नंगे हैं.
26 जून 2019 तक असम के कुल 41 लाख 10 हजार 169 लोग एनआरसी से बाहर थे. इन तमाम लोगों का पक्ष जानने के लिए पूरे राज्य में फॉर्नर ट्रिब्यूनल्स बनाए गए. सुनवाई के लिए लोगों को दस्तावेज जुटाने पड़े. वकीलों की मदद लेनी पड़ी.
दिल्ली के RIGHTS & RISKS ANALYSIS GROUP ने एक रिपोर्ट जारी कर NRC का अर्थशास्त्र बताया है. रिपोर्ट के मुताबिक फॉर्नर ट्रिब्यूनल्स की सुनवाई, वकीलों की फीस वगैरह पर एनआरसी से बाहर हुए हर इंसान ने 19 हजार 65 रुपये खर्च किए. अब इसे 41,10,169 से गुणा किया जाए तो कुल खर्च हुआ 7,836 करोड़ (78,360,371,985) रुपये. और ये सब उस राज्य में हुआ जिसकी प्रति व्यक्ति आय देश की प्रति व्यक्ति आय से करीब 35 फीसदी कम है.
एनआरसी से बाहर लोग फॉर्नर ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटा सकते हैं. अगर फॉर्नर ट्रिब्यूनल ने उन्हें विदेशी माना तो उन्हें फौरन डिटेंशन कैंप में ले लिया जाएगा. डिटेंशन कैंप से निकलने के ले वो लोग गुवाहाटी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की शरण ले सकते हैं. आखिरकार कोर्ट ही ये फैसला कर सकता है कि आप भारतीय हैं या विदेशी नागरिक.
यानी इस पूरी प्रक्रिया में अभी कई साल लग सकते हैं. और आखिर तक ‘घुसपैठियों’ की संख्या घटकर कितनी हो चुकी होगी- भगवान जाने. लेकिन तब तक ‘अतिथि देवो भव’ की फिलॉसफी वाले इस देश में सियासत का रजिस्टर वोटरों की संख्या काफी बढ़ा चुका होगा.
आखिर में एक सवाल जो हैदराबाद में NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के वाइस चांसलर फैजान मुस्तफा ने अपने एक वीडियो में उठाया- बांग्लादेश से आए बौद्ध चकमा शरणार्थियों के समर्थन में National human Right Commission ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. क्या बांग्लादेशियों के मामले में वो ऐसा करेगा?
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Published: 03 Sep 2019,10:49 PM IST