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वीडियो एडिटर: कुनाल मैहरा/ विवेक गुप्ता
सोशल सेक्टर के NGO को अधिकतर कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के अंतर्गत फंड मिलता है लेकिन अब ये फंड काफी कम हो गए हैं. इसके अंतर्गत के फंड पीएम केयर्स फंड में डायवर्ट कर दिए जा रहे हैं. जिसकी वजह से इन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.
सोशल एक्टिविस्ट और नीति आयोग के सदस्य अमोद कंठ कहते हैं कि CSR के अंतर्गत 2018-19 में देशभर में 11,800 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन अप्रैल 2020 से CSR डोनेशन के 10,000 करोड़ रुपये PM CARES फंड में डाले गए.
प्रयास NGO के डायरेक्टर विश्वजीत घोषाल कहते हैं, "अचानक से हम महसूस कर रहे हैं कि अधिकांश पैसे देने वाले दबाव में हैं, PM CARES फंड के कारण या देश के प्रति प्रतिबद्धता के कारण, उनका रिस्पॉन्स या हमारे लिए सपोर्ट 50% हो गया है"
सरकार ने COVID-19 राहत कार्यों के लिए PM CARES फंड लॉन्च किया था. अमोद कंठ कहते हैं कि अचानक से सरकार एक कार्यक्रम बनाती है, PM CARES की तरह और उस कार्यक्रम के भीतर आप फंड को डायवर्ट करते हैं. ये गलत है. कंपनी अधिनियम 2013 के तहत सीएसआर की संपूर्ण भावना और प्रोविजन अलग हैं. ये उन संगठनों के लिए है, जो सेवाएं देते हैं. मुझे लगता है कि इस साल,फंडिंग में निश्चित रूप से 40-50% की कटौती हुई है. हम बहुत परेशानी में हैं. हम नहीं जानते कि स्थिति से कैसे निपटा जाए क्योंकि हमारी फंडिंग और संसाधन बिल्कुल बंधे हुए हैं.
अशोका यूनिवर्सिटी के एक सर्वे में अप्रैल-मई 2020 में 50 NGO के प्रमुख से बात की गई. रिपोर्ट के मुताबिक-
प्रयास में काम करने वाली देवी के तीन बच्चे प्रयास में ट्यूशन के लिए आते हैं. महामारी की वजह से देवी के पास कोई काम नहीं है. देवी की तरह ही वहां कई लोग हैं. उन्हें उम्मीद है कि प्रयास की तरह ही NGO उनकी मदद करेंगे.
फंड की कमी को देखते हुए प्रयास और दूसरे NGO अपने प्रोजेक्ट को जारी रखने के लिए दूसरे रास्ते की तलाश कर रहे हैं. विश्वजीत घोषाल कहते हैं, “हमें फंड और संसाधन जुटाने के अन्य क्षेत्रों का पता लगाने की जरूरत है ताकि हमारे कार्यक्रमों को जारी रखा जाए. हम अपने गवर्निंग बोर्डके सदस्यों के पास जा रहे हैं और उनका समर्थन प्राप्त कर रहे हैं. हम प्रत्येक व्यक्ति, शुभचिंतक, समर्थक के रूप में एक-दूसरे से संपर्क कर रहे हैं क्योंकि अब हर पैसा मायने रखता है और एक-एक पैसे की हमारे लिए कीमत है.”
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