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राजपथ | पीएम मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच कैसे रिश्ते हैं?

प्रधानमंत्री को पता है कि एक काडर को ट्रेनिंग देने में आरएसएस कितना जरूरी है.

संजय पुगलिया
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(फोटो: द क्विंट)
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पीएम मोदी और सरसंघचालक के बीच कैसे रिश्ते हैं? क्या दोनों के बीच किसी बात को लेकर असहमति होती है? ये सारे सवाल राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के मन में होते हैं. आरएसएस पर एक्सपर्ट के तौर पर मशहूर जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और RSS: A View to the Inside नाम की किताब लिखने वाले एंडरसन पीएम मोदी और सरसंघचालक के बीच के रिश्तों के बारे में कई अहम बातें बता रहे हैं.

जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वॉल्टर के. एंडरसन ने क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से खास बातचीत में बताया कि पीएम मोदी और भागवत कैसे कई सारी असहमति होते हुए भी साथ हैं.

एंडरसन बताते हैं,

मोहन भागवत के पास एक डिप्लोमेटिक नजरिया है, जो उन्हें एक दूसरे की स्थिति को समझने में मदद करता है.भागवत समझते हैं कि पॉलिसी बनाने के फैसले प्रधानमंत्री और पार्टी (बीजेपी) लेती है. प्रधानमंत्री को पता है कि एक कैडर को ट्रेनिंग देने में आरएसएस कितना जरूरी है. हर व्यक्ति एक-दूसरे को समझता है. वे एक ही उम्र के हैं.
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पीएम मोदी और मोहन भागवत के बीच कैसे रिश्ते?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सर-संघचालक मोहन भागवत के बीच रिश्ते कैसे हैं? RSS और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी या अाडवाणी से कितने भी मतभेद थे, लेकिन पहले BJP से रिश्ते को लेकर RSS कभी चिंतित नहीं रहा.

नहीं, वे बहुत चिंतित थे. तत्कालीन सरसंघचालक सुदर्शन को आडवाणी के साथ बड़ी समस्याएं थीं. और वह बहुत साफ साफ बोलने वाले थे. ऐसा नहीं है कि आरएसएस सरकार की हर बात से सहमत है इसलिए मतभेद नहीं है बल्कि मोहन भागवत काफी डिप्लोमेटिक हैं

हम लोग राजनीतिक कयास लगाते रहते हैं. मैं हमेशा कहता हूं कि अगर आप मोदी और भागवत के बीच के संबंध समझते हैं तो आप अगले चुनाव के बारे में नीतिगत दिशा, संभावित रणनीति और कम्युनिकेशन को डीकोड करने में सफल होंगे. क्या यह बराबरी का रिश्ता है? कौन किस पर भारी है?

ये मौके पर निर्भर करता है. दोनों एक दूसरे की इज्जत करते हैं. दोनों एक ही उम्र के हैं. मैं आपको एक उदाहरण देता हूं, जमीन और श्रम का मुद्दा इस सरकार के लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि सरकार सोचती है कि भूमि और श्रम कानून के सुधार से ग्रोथ होगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. ऐसा नहीं है कि विपक्षी पार्टियां ही सिर्फ इसके खिलाफ थीं. असली वजह ये है कि संघ परिवार के अंदर ही इसका विरोध हो रहा था. RSS का कृषि संगठन भारतीय मजदूर संघ इसके खिलाफ था.

सरकार ने एक संवैधानिक प्रावधान का इस्तेमाल किया जो कहता है कि भूमि और श्रम के कुछ क्षेत्रों में अगर केंद्र सरकार को जरूरत हुई तो वो अपनी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल सकते हैं. और उन्होंने ऐसा ही किया, कुछ राज्यों ने कानून पारित भी किया. लेकिन केंद्रीय स्तर पर उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि संघ परिवार के अंदर, बड़ी असहमति थी. आरएसएस की मोनोलिथ के रूप में छवि गलत है. वो मोनोलिथ नहीं है.

वॉल्टर के. एंडरसन पहले भी आरएसएस पर किताब लिख चुके हैं. जिसमें उन्होंने संघ के काम करने के उन तरीकों के बारे में बताया था जिनसे बीजेपी को आगे बढ़ाने में कामयाबी मिली है.

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