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वीडियो एडिटर- पुरनेंदु प्रीतम
प्रोड्यूसर - मौशमी सिंह
पिछले 15 दिनों से किसान दिल्ली की सरहदों पर डटे हुए हैं. ‘न कम, न ज्यादा की चाहत’ के नारों के साथ 3 कृषि कानूनों का वापस लेने की मांग कर रहे हैं. सरकार की तरफ से किसानों को प्रस्ताव भी भेजे गए थे, जिसे किसान संगठनों ने ठुकरा दिया और साथ ही अपने आंदोलन को तेज करने का ऐलान कर दिया. इन सबके बीच कई सवाल उठते हैं कि किसान क्यों नहीं बीच के रास्ते का सोच रहे हैं, क्यों अपने आंदोलन में अंबानी-अडानी की चर्चा कर रहे हैं, और इतने दिन बीत गए हैं, फिर कैसे इनका आंदोलन आगे टिक पाएगा?
इन सवालों के जवाब को समझने के लिए हमने स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और जय किसान आंदोलन के नेता योगेंद्र यादव से बात की.
किसान कह रहे हैं हमारी सारी बातें मानी जाएं, सरकार भी मानने को तैयार नहीं हैं, फिर क्यों बीच का रास्ता नहीं निकालने की कोशिश हो रही है?
सरकार ने जब कानून बनाया तो कहा कि किसानों को तोहफा दिया गया है, अब वो तोहफा किसानों के हक में नहीं है तो किसान वो क्यों लें. किसान बीच के रास्ते की बात क्यों करें, जब साफ-साफ पिछले 3 महीनों से कहा जा रहा है कि इन कानूनों को वापस लिया जाए, तो फिर बीच का रास्ता क्यों चुनना है?
इतना बड़ा आंदोलन आगे कैसे चलेगा? किसी आंदोलन को सही रास्ते पर रखना बड़ा चैलेंज होता है, जब सरकार नहीं मान रही है तो इतने बड़े आंदोलन को कैसे आगे संभाला जा सकेगा?
ये आंदोलन आज से नहीं चल रहा है. सितंबर में जबसे बिल पास हुआ है तब से किसान विरोध कर रहे हैं. अब दिल्ली के बॉर्डर पहुंच गए हैं तो लोगों को लग रहा है कि कैसे चलेगा. किसान अपनी तैयारी कर के आए हैं. साथ ही किसानों का और हम सबका एक ही कहना है कि हमें शांति के साथ अपनी बात रखनी है. किसी हिंसा का सहारा नहीं लेना है. शांति से ही हर बात का हल निकालना है.
किसानों के आंदोलन में अडानी-अंबानी और जियो का विरोध, इन बातों की वजह से कहीं असल मुद्दे से तो नहीं भटक रहे हैं. या कहें कि आंदोलन की प्रमाणिकता कम तो नहीं हो जाएगी?
असल मुद्दे यही हैं कि किसानों पर ये कानून किसे खुश करने के लिए थोपे गए हैं? जिन लोगों की वजह से ये कानून लाया गया है बस उनका नाम लिया जा रहा है. कॉर्पोरेट को फायदा पहुंचाना मकसद है, नहीं तो फिर इस कानून की अचानक जरूरत क्यों पड़ गई. एग्री बिजनेस में कौन है, फार्म से जुड़े आउटलेट किसके हैं? किसानों के मान के स्टोरेज का काम कौन करता है? जो करता है उसका नाम ले रहे हैं किसान.
देश में संदेश तो ये जाएगा कि सरकार मिलने को बुला रही है, प्रस्ताव दे रही है, लेकिन किसान ही अब अड़े हुए हैं.
ये शब्दों का जाल है, किसान के नाम पर आप अड़ा हुआ कह रहे हैं, जबकि सरकार अड़ियल रवैया अपनाए हुई है. किसान अपना हक मांग रहा है, लेकिन इस तरह के शब्द गढ़े जा रहे हैं. सरकार को अपने अंदर झांकना चाहिए, अहंकार से निकलना चाहिए. नरेंद्र मोदी को पीएम नरेंद्र मोदी से बात करनी चाहिए, किसानों के हक के लिए अपने अहंकार को छोड़ना होगा.
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