Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019वीडियो | चीन सिर्फ ताकत का सम्मान करता है, भारत को ये समझना होगा

वीडियो | चीन सिर्फ ताकत का सम्मान करता है, भारत को ये समझना होगा

क्या चीन से रिश्ते सुधारने में काम आएंगे इतिहास के सबक?

राघव बहल
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वीडियो एडिटर- मोहम्‍मद इब्राहिम

प्रधानमंत्री मोदी का काम करने का जुनून कभी धीमा नहीं पड़ता. पर आखिरकार उन्होंने भी एक वीकेंड की छुट्टी मना ही ली. वो भी चीन के वुहान में!

मोदी ने ईस्ट लेक में नाव पर सैर की और झील किनारे चहलकदमी का आनंद भी लिया. उन्होंने इत्मीनान के साथ लंच किया, जहां गुजराती टेबल मैट बिछाए गए थे और लंच में परोसे गए व्यंजन भी गुजराती थे (हालांकि उन्हें चीन के शेफ ने बनाया था). उनके मेजबान ने आग्रह किया कि वो खूबसूरत चीनी महिलाओं की बनाई एक्जॉटिक चाय पीकर देखें और ये भी बताया कि 'दंगल' और 'सीक्रेट सुपरस्टार' जैसी बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्में देखना उन्हें कितना पसंद है.

राष्ट्रपति शी जिनपिंग यानी दुनिया के सबसे शक्तिशाली शख्स (ठीक है...मान लिया कि वो दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं, लेकिन उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है) ने पहले से अभिभूत दिख रहे अपने मेहमान का दिल जीतने के लिए सब कुछ किया...अब तो सिर्फ गुजराती में बातें करना ही बाकी रह गया था.

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग यानी दुनिया के सबसे शक्तिशाली शख्स ने पहले से अभिभूत दिख रहे अपने मेहमान का दिल जीतने के लिए सब कुछ किया(फोटो: MEA) 
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शी जिनपिंग के दिमाग में चल क्या रहा है?

पिछले दो से ज्यादा सालों के दौरान चीन लगातार भारत की 'चिकन नेक' के इर्द-गिर्द अपना फंदा और कसता रहा है. हिंद महासागर में उसकी तेजी से आधुनिक हो रही नौसेना की टोह लेने वाली हरकतें भी लगातार बढ़ी हैं. मालदीव, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार में उसने हम पर बढ़त हासिल कर ली है, जिसका चरम बिंदु था 'भूटान के लिए' डोकलाम में हुआ टकराव. (इसके अलावा 2017 के दौरान चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का 425 बार उल्लंघन भी किया, जो पहले से कहीं अधिक है.)

डोकलाम में भारत भले ही अपने रुख पर डटा रहा, लेकिन माना जा रहा है कि मोदी को ये फिक्र है कि अगर 2019 से पहले डोकलाम जैसी कुछ और घटनाएं हो गईं, तो कट्टरपंथी ट्रोल्स पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ सकती है. ट्विटर/टीवी पर नफरत और युद्ध का उन्माद भड़काने वाले ये योद्धा बड़ी मेहनत से पाले गए हैं, जिनके भस्मासुर बनने का खतरा हो सकता है. इनके दबाव में अगर मोदी को फौजी कार्रवाई का दुस्साहस करने के लिए मजबूर होना पड़ा और दांव उल्टा पड़ गया, तो 2019 की रेस हाथ से निकलने का खतरा है. लिहाजा वो अमन की अर्जी दे रहे थे.

लेकिन राष्ट्रपति शी जिनपिंग का क्या? उन्होंने अपना एक वीकेंड ढोकला खाने में क्यों 'इनवेस्ट' किया? जबकि वो चाहते तो अपनी पसंदीदा नॉनवेज डिश 'स्टेक' का आनंद ले सकते थे. रहस्य के पर्दे में घिरे रहने वाले चीनी नेताओं के व्यक्तित्व की थाह लेना हमेशा ही बड़ा मुश्किल होता है.

दरअसल, बात ये है कि शी जिनपिंग आजकल 'बार-रूम बैटल' में 'तेज रफ्तार से फायरिंग करने वाले काउ ब्वॉय' डोनाल्ड ट्रंप के सामने खुद को निहत्था और बौखलाया हुआ महसूस कर रहे हैं. क्या उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच सुलह की संभावनाओं में चीन को दरकिनार कर दिया गया है? इसमें दोनों के एकीकरण और परमाणु हथियारों के खात्मे जैसी बातें भी शामिल हैं, जिनके बारे में पहले कोई सोच भी नहीं सकता था.

क्या अमेरिका की आक्रामक टैरिफ पॉलिसी से होने वाले संभावित आर्थिक नुकसान को चीन ने कम करके आंका था? चीन इस नुकसानदेह ट्रेड वॉर को खत्म करने के लिए जिस तरह उतावला दिख रहा है, उससे तो यही लगता है. तो क्या अमेरिका ने इस बड़े मुकाबले का पहला राउंड जीत लिया है, जिसकी वजह से चीन को अपनी आगे की चाल काफी सोच-समझकर चलनी पड़ रही है?

चीन के दोहरेपन से रहना होगा सावधान

वुहान के सकारात्मक नतीजों से किसी को इनकार नहीं करना चाहिए या उस पर संदेह नहीं करना चाहिए. चीन अगर भारत को 'आर्थिक ग्लोबलाइजेशन और कई ध्रुवों वाली दुनिया की रीढ़' के तौर पर बराबरी का दर्जा देने की मेहरबानी कर रहा है, तो ये अपने आप में एक बड़ी जीत है. लेकिन चीन के चालाकी भरे दोहरेपन से सावधान रहना भी जरूरी है.

जमाना बदला और रिश्ते भी बदल गए

जिन्हें वुहान के खुशनुमा माहौल से बरसों पहले की बातें याद हैं, उन्हें ध्यान होगा कि 1940 के दशक में दोनों देशों को औपनिवेशिक गुलामी से नई-नई आजादी मिलने के फौरन बाद क्या हुआ था. यहां मैं आपको अपनी किताब सुपरइकनॉमीज:अमेरिका, इंडिया, चाइना, एंड द फ्यूचर ऑफ द वर्ल्ड (पेंग्विन एलन लेन 2015) में लिखी कुछ बातें बताना चाहता हूं:

इतिहास की कुछ बातें डरावनी और अजीब होती हैं: 'शांति प्रिय' भारत की तरफ से आत्मिक संबंधों, गहरे आपसी लगाव और पंचशील जैसी बातें, उधर चीन का चोरी-छिपे सड़कें बनाना (पहले अक्साई चिन में और अब डोकलाम में), सीमाओं पर टकराव....इन सबका अंत हुआ 1962 के शर्मनाक युद्ध से!

मेरा इरादा सनसनी पैदा करने का नहीं है. युद्ध की आशंका बहुत कम है. खासतौर पर इसलिए, क्योंकि भारत अब एक न्यूक्लियर पावर है और हमारी सेना पहले से बहुत ज्यादा मजबूत हो चुकी है. लेकिन एक बात आज भी उतनी ही सच है, जितनी 1950-60 के दशक में थी: चीन सिर्फ ताकत का सम्मान करना जानता है, और भारत को अपनी ताकत बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. फिर चाहे वो अपने दम पर हो या दूसरों से गठजोड़ की बदौलत. अगर हम चाहते हैं कि चीन हमें गंभीरता से ले, तो वुहान में बने सारे खुशनुमा माहौल के बावजूद हमें ऐसा ही करना होगा.

वरना, भाई-भाई के नारे की वापसी एक बार फिर से खतरनाक साबित हो सकती है.

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