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गांधी के देश में ‘ब्रांड गोडसे’ और ‘प्रज्ञा’ की डिमांड में

गांधी के देश में ‘गोडसे’ भी बिकता है

रोहित खन्ना
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गांधी के देश में ‘गोडसे’ भी बिकता है
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गांधी के देश में ‘गोडसे’ भी बिकता है
(फोटो: अरूप मिश्रा/क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

16 मई 2019, प्रज्ञा ठाकुर ने हिस्ट्री के टेस्ट में जवाब दिया- 'नाथूराम गोडसे देशभक्त था'. ये गलत जवाब था! स्कूल के प्रिंसिपल ने कह दिया कि प्रज्ञा ने जो किया है उसके लिए मैं कभी उसे माफ नहीं कर पाऊंगा. जैसे प्रिंसिपल साहब ने कहा हो कि हाथ बढ़ाओ, एक छड़ी खाओ और अच्छी बच्ची की तरह संसद में जाओ.

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लेकिन प्रज्ञा ठाकुर तो ठहरी प्रज्ञा ठाकुर...

27 नवंबर 2019 को तुम फिर खड़ी हो गई और कहा- गोडसे देशभक्त था... बहुत बुरी बात! तुम्हे स्कूल के डिबेट पैनल से निकाला जाता है, लाओ बढ़ाओ हाथ एक और छड़ी खाओ. प्रज्ञा घर लौटी तो मम्मी ने पूछा- बेटा तुम्हारा दिन कैसा रहा? तो प्रज्ञा ने जवाब दिया- वही रोज का 'हाथ पर एक छड़ी'. राष्ट्रपिता के हत्यारे को सराहने वाली प्रज्ञा को जो सजा मिली है वो ऐसी ही लगती है- बस हाथ पर एक छड़ी

उधर सरकार की थोड़ी आलोचना करते कार्टून या मीम्स बना देने के गुनाह में बहुत सारे लोग या तो गिरफ्तार कर लिए गए या उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है. कई लोगों की नौकरी चली गई है.

बहुत नाइंसाफी है ना.. हां है, लेकिन आदत डाल लीजिए.

जिस देश में इतिहास को कहानी और कहानी को इतिहास बनाने की कोशिश हो रही हो, वहां के नए बदले हुए सच से सामना और समझौता कर लीजिए. देश में एक नई इंडस्ट्री काम कर रही है, इसका काम है प्रतीकों को तोड़ना और नए प्रतीकों को खड़ा करना, नेहरू को तोड़ो, सरदार पटेल को जोड़ो, टीपू सुल्तान को तोड़ो, गोडसे को जोड़ो, लिस्ट लंबी है. जरूरी है कि हम इसे समझें या समझने की कोशिश तो करें

एक उदहारण लेते हैं- नाथूराम गोडसे

साफ तौर पर एक मुहिम चल रही है, नाथूराम गोडसे को हीरो बनाने की उसे आयकन बनाने की, ये देखने की कोशिश हो रही है कि अगर हम गांधी के हत्यारे गोडसे को देशभक्त बताएं तो कुछ लोग इस आईडिया को खरीदने के लिए तैयार हैं या नहीं? तो बात ये है कि गोडसे ने गांधी को मारा क्योंकि वो देशभक्त था, उसपर देशभक्ति का भूत सवार था, गोडसे ने गांधी को मारा जरूर, लेकिन उसकी नीयत अच्छी थी

और ब्रांड गोडसे को सर्टिफिकेट देने के लिए ब्रांड प्रज्ञा ठाकुर से बेहतर कौन हो सकता है? क्यों नहीं आतंकवाद की आरोपी की छवि को प्रज्ञा के खिलाफ नहीं, उसके पक्ष में इस्तेमाल किया जाए? कोर्ट में उसके वकील भले ही लड़े कि 2008 के मालेगांव ब्लास्ट में उसने 10 बेगुनाह लोगों की जान नहीं ली...लेकिन परसेप्शन की दुनिया में जो ब्रांड बिल्डिंग की दुनिया है, वहां इस छवि को लेकर शर्मिंदा होने की क्या जरूरत?

परसेप्शन की दुनिया में प्रज्ञा की पैकेजिंग देशभक्त के रूप में हो रही है, एक ऐसी देशभक्त जो जरूरत पड़े तो देशद्रोहियों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करने का हौसला रखती है. देखा जाए तो इसी छवि के सहारे प्रज्ञा ठाकुर ने दो बार मध्य प्रदेश के सीएम रह चुके दिग्विजय सिंह को 2019 लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट पर साढ़े तीन लाख वोटों से हरा दिया

फिलहाल तो बीजेपी से लेकर संघ तक, गोडसे को कोई अभी तक मान्यता तो नहीं दे रहा है, लेकिन एक अनहोनी तो हो चुकी है, गोडसे के भक्तों में से एक ने संसद के अंदर गोडसे वंदना की है! हां, वो अब इनकार कर रही है, हां वो माफी भी मांग रही है, हां संसद के रिकॉर्ड से इस बात को हटा दिया गया है, हां वो डिफेंस पैनल से हटा दी गई है, हां राजनाथ सिंह से लेकर जेपी नड्डा ने कड़ी निंदा की है

लेकिन एक बात क्लियर है कि गोडसे नाम के 'मंदिर' की बुनियाद की पहली ईंट लग चुकी है, देश के किसी कोने में उसे महज कुछ लोग नहीं पूज रहे हैं, गोडसे की वंदना संसद में खड़े होकर एक सांसद कर रही है.

ये जो इंडिया है ना, जहां इतिहास की किताब में गांधी को पूजा जाता है, उस इंडिया को तय करना है कि क्या किताबों में अब एक चैप्टर गोडसे द हीरो के नाम से भी जुड़ जाना चाहिए क्या?

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