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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
आज से पहले चुनार के ऐतिहासिक किले को ज्यादातर लोग देवकी नंदन खत्री के ‘चंद्रकांता’ सीरियल की वजह से भी जानते होंगे. लेकिन सिर्फ 26 घंटे में ही इस पहचान के मायने बदल गए. इसकी वजह बनीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी. सोनभद्र नरसंहार को लेकर धरने पर बैठी प्रियंका गांधी का ऐसा रूप और ऐसा अंदाज शायद पहले कभी नहीं दिखा.
सोनभद्र हिंसा के पीड़ितों से मिलने पर अड़ीं प्रियंका ने 40 डिग्री तापमान और बेहिसाब उमस की भी परवाह नहीं की. प्रियंका पूरे 26 घंटे तक चुनार किले में बने गेस्ट हाउस में कार्यकर्ताओं के साथ डटी रहीं. प्रियंका गांधी ने कांग्रेसियों को समझा दिया कि सिवाय संघर्ष के सत्ता हासिल कर पाना मुमकिन नहीं है.
लेकिन सवाल ये है कि कांग्रेसियों का जोश कितने दिनों तक बरकरार रहेगा?
राजनीति में एंट्री लेने के बाद प्रियंका गांधी का पहला बड़ा आंदोलन, जिसे सुपर-डुपर हिट कह सकते हैं. इस आंदोलन में प्रियंका की एक जिद थी, कार्यकर्ताओं के लिए जोश था तो पीड़ितों को इंसाफ दिलाने का जुनून.
लंबे समय बाद ऐसा लगा कि कांग्रेसी पसीना बहा रहे हैं. वर्ना सड़क पर यूं उतरना और किसी मुद्दे को लेकर घंटों तक संघर्ष करना नेताओं की नई पीढ़ी ने सीखा ही नहीं. एयर कंडीशंड कमरों में बैठकर मीडिया के कैमरों पर बाइट देना कांग्रेसियों की आदत बन चुकी थी. लेकिन प्रियंका गांधी ने सोनभद्र हिंसा के सहारे कांग्रेसियों को संघर्ष का रास्ता दिखाया, जिस पर चलना हर किसी की मजबूरी भी है और वक्त का तकाजा भी. पहले ही हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस के लिए ये प्रदर्शन ऑक्सीजन की तरह है.
ऐसा नहीं है कि राजनीति में आने से पहले प्रियंका सियासत की समझ नहीं रखती थीं, उन्होंने जानबूझकर खुद को अमेठी और रायबरेली तक समेटकर रखा था. हालांकि, लोकसभा चुनाव में उनकी एंट्री फीकी जरूर रही. उनकी अगुवाई में उत्तर प्रदेश के अंदर कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर सिमट गई.
लोकसभा चुनाव 2019: उत्तर प्रदेश
अमेठी का अभेद्य किला ढह गया. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आप प्रियंका गांधी को खारिज कर सकते हैं. सोनभद्र हिंसा को लेकर प्रियंका ने जिस तरह के तेवर दिखाए, सरकार के खिलाफ जो स्टैंड लिया, उससे साफ है कि अगले दो सालों तक योगी सरकार को कांग्रेसियों के संघर्ष का सामना करना पड़ेगा. सोनभद्र से जाते-जाते प्रियंका ने ये भी जता दिया कि ये तो अभी ‘ट्रेलर’ है. कार्यकर्ताओं से ये कहते हुए लौटीं कि ‘अभी तो जा रही हूं लेकिन लौट के फिर आऊंगी’. प्रियंका के इन शब्दों के मायने आप यूं निकाल सकते हैं-
भारतीय राजनीति में विरोधी हमेशा तंज कसते हैं कि “राहुल गांधी और प्रियंका, गरीबी के मायने क्या समझें. दोनों तो चांदी के चम्मच लेकर पैदा हुए हैं.”
लेकिन जिस वक्त मिर्जापुर जिला प्रशासन ने प्रियंका गांधी को सोनभद्र जाने से रोका और उन्हें चुनार गेस्ट हाउस लेकर आई, उसे शायद इस बात का एहसास नहीं रहा होगा कि ये मामला इतना तूल पकड़ लेगा.
अधिकारियों को लगा कि दूसरे नेताओं की तरह प्रियंका गांधी भी रोके जाने के बाद फोटो सेशन कराएंगी और लौट जाएंगी. लेकिन प्रियंका तो कुछ और ही ठानकर दिल्ली से चली थीं. सोनभद्र जाने से मना करने पर अधिकारियों ने गिरफ्तारी की बात कही तो प्रियंका का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उन्होंने निजी मुचलका भरने से इंकार कर दिया और साफ-साफ कह दिया कि ‘बगैर पीड़ितों से मिले हिलूंगी नहीं चाहे मुझे जेल ही क्यों ना जाना पड़े’
19 जुलाई की शाम गहराती जा रही थी और चुनार गेस्ट हाउस में कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ बढ़ने लगी थी. गेस्ट हाउस के एक हिस्से में प्रियंका धरने पर डटी थीं. भयंकर गर्मी और उमस से लोग ऊपर से नीचे तक भीग चुके थे. हिम्मत जवाब देती जा रही थी लेकिन चट्टान की तरह डटी प्रियंका को देख कांग्रेसी जोश में आ जाते.
एक वक्त ऐसा भी आया, जब गेस्ट हाउस में बिजली गुल हो गई. ना पंखा, ना बत्ती, फिर भी प्रियंका टस से मस ना हुईं. अंधेरे में ही आंदोलन की अलख को जगाए रखा. प्रियंका के तेवर देख अधिकारियों को ना निगलते बन रहा था और ना ही उगलते. जिला प्रशासन बार-बार प्रियंका से अनुरोध करता रहा कि गेस्ट हाउस में एयर कंडिशन नहीं है, वाराणसी लौट जाइए.
आलम ये था कि वाराणसी जोन के एडीजी मिर्जापुर डीएम और एसपी रात एक बजे तक प्रियंका गांधी को समझाते रहे लेकिन वो कुछ भी सुनने को तैयार नही हुईं. उन्होंने साफ कह दिया कि वो पिकनिक मनाने नहीं आई हैं पीड़ितों को इंसाफ दिलाने पहुंची हैं. प्रियंका ने पूरी रात पंखे के सहारे गुजारी. कुल मिलाकर कहें तो प्रियंका ने बगैर सोए सरकार के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को जगाने का काम किया.
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