advertisement
वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
14 फरवरी 2019 को कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों के एक काफिले पर आत्मघाती हमले में 40 जवान शहीद हो गए. उनकी शहादत को एक साल हो गए है. हमने कुछ शहीदों के परिवार से बात की और ये समझने की कोशिश की कि उनका जीवन कितना बदल गया है.
आगरा के रहने वाले कौशल कुमार रावत 1990 में CRPF में शामिल हुए थे. उनका दार्जलिंग से जम्मू में तबादला हुआ था. घर में अकेले कमाने वाले थे. रावत के परिवार में उनके दो बेटे, एक बेटी, पत्नी और मां हैं.
पटना के संजय कुमार सिन्हा 8 फरवरी 2019 को घर से 15 दिन में लौटने का वादा कर के गए थे.
घर में रोजी-रोटी कमाने वाले अकेले शख्स थे. उनके परिवार में दो बेटियां, एक बेटा पत्नी और उनके माता-पिता हैं.
संजय के पिता महेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि कोई कमा कर खिलाने वाला नहीं है. कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. सरकार को देखना चाहिए.
उन्नाव के अजीत कुमार आजाद 10 फरवरी, 2019 को घर से निकले थे. आजाद 5 भाइयों में सबसे बड़े थे. उनके परिवार में दो बेटियां, उनके माता-पिता और उनकी पत्नी हैं. आजाद की मौत के बाद उनकी पत्नी को नौकरी दी गई.
बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर भारत ने पुलवामा हमले का जवाब दिया. लेकिन 40 CRPF जवानों का परिवार आज भी उनकी कमी महसूस कर रहा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)