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वीडियो प्रोड्यूसर: सोनल गुप्ता
कैमरापर्सन: त्रिदीप मंडल, सुमित बडोला
वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
19 जुलाई को राघव बहल की नई किताब 'Super Century: What India Must to Do To Rise by 2050 'लॉन्च की गई.
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में किताब पर कई दिग्गजों ने चर्चा की. किताब पर चर्चा के लिए राघव बहल के साथ पैनल में रहे आरबीआई के पूर्व गवर्नर और संसद सदस्य डॉ. बिमल जालान, लेखक गुरुचरण दास, एमपी और IIM बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर राजीव गौड़ा, जर्नलिस्ट और नेशनल सिक्योरिटी एक्सपर्ट प्रवीण स्वामी. इस चर्चा की मॉडरेटर रहीं ब्लूमबर्गक्विंट की मैनेजिंग एडिटर मेनका दोशी.
2050 तक बड़ी इकनॉमी बनने के लिए क्या करे भारत? इस पर पैनल में मौजूद एक्सपर्ट्स ने राय रखी.
मेनका दोशी ने किताब के एक अंश का जिक्र करते हुए टिप्पणी की कि किताब में एक जगह उन्हें थोड़ी नाउम्मीदी महसूस हुई .
किताब का वो अंश है, “भारत के तेज विकास के लिए आर्थिक उदारीकरण और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुलेपन के बावजूद दिल्ली कभी उन सतर्क, संरक्षात्मक और आत्मकेन्द्रित मानसिकता की भावनाओं से नहीं उबरी जिन्होंने आधुनिक भारत को आकार प्रदान किया.”
उन्होंने इसे लेकर राघव बहल से सवाल किया- आप ऐसा क्यों मानते हैं कि दिल्ली इस नजरिये ,इस सोच से बाहर नहीं निकल पाई है? क्या आपको वास्तव में उम्मीद है, और वो क्या है जिसकी बदौलत हम इस रवैये से उबर पाएंगे?
राघव बहल इसका जवाब देते हैं, हमें अब वक्त चाहिए. बदलाव के लिए हमने जितना सोचा था उससे ज्यादा वक्त लगेगा. जब मैं कहता हूं हम जो बन सकते हैं वो नहीं बने हैं अगर आप इन पंक्तियों से इतर, पूरी किताब पढ़ें, तो पाएंगे कि मेरी बड़ी निराशा सरकार को लेकर है. मुझे लगता है कि भारत के पिछड़ेपन की वजह भारत सरकार है. ये बहुत दखल देती है, हर चीज में दखल देती है. बाजार की ताकतों और उद्यमों पर शक करती है. नए कारोबारियों को लेकर इसे बहुत संदेह है और ये एक भारी समस्या है.
लेखक गुरुचरण दास सरकार की क्षमता को भारत की मुख्य समस्या बताते हैं. चर्चा के दौरान उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि भारत की मुख्य समस्या सरकार की क्षमता है. सिर्फ केन्द्र बनाम राज्य का मसला नहीं है. सरकार की क्षमता का मसला है. एक उदारवादी लोकतांत्रिक सरकार के तीन आधार स्तम्भ होते हैं:
हमारी सारी ऊर्जा जवाबदेहियों पर खर्च होती है. हमारे देश में हर महीने चुनाव का मौसम होता है इस वजह से कार्यपालिका को देश चलाने के लिए जरूरी वक्त नहीं मिलता. हमने आर्थिक सुधार किए, लेकिन ब्रिटेन की तरह नहीं. वहां भी 70 के दशक के आखिरी सालों और 80 के दशक के शुरुआत में मार्ग्रेट थैचर ने आर्थिक सुधार किए. हम उन्हें दक्षिणपंथी आर्थिक सुधारक मानते हैं लेकिन उन्होंने सरकार में सुधार किए. ये काम उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में किया. पीएम मोदी का भी ये दूसरा कार्यकाल है. देखते हैं कि वो क्या करते हैं?
वहीं राजीव गौड़ा सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं.
राजीव गौड़ा के साथ इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए राघव बहल कहते हैं,
राजीव गौड़ा- मेरे ख्याल से उसके पास कोई चारा नहीं है. आप जैसा प्रोत्साहन देते हैं, व्यापारी वैसा ही व्यवहार करता है. वो उसी सिस्टम को आगे बढ़ाता है. अगर आप उसे भ्रष्ट होने को कहेंगे तो वो भ्रष्ट होगा लेकिन अगर आप पारदर्शी व्यवस्था बनाएंगे तो उसके लिए भ्रष्टाचार का कोई रास्ता नहीं बचता.
डॉ. बिमल जालान- मै जो सबसे अहम बात कहना चाहता हूं वो ये है कि हमारी बुनियाद काफी मजबूत है. हमारे यहां भारी निवेश है. हमारे पास अच्छी तकनीक, जमीन और श्रम मौजूद है, फिर भी हम दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक हैं. हम जो कहते हैं उसे पूरा करने में नाकाम रहते हैं. क्यों? क्योंकि हम जिम्मेदार नहीं हैं. हम नीतियों का ऐलान कर देते हैं, लेकिन उनके प्रति जिम्मेदारियां नहीं निभाते हम नीतियां लागू कर देते हैं. लेकिन उनके प्रति जिम्मेदार नहीं होते.
पत्रकार और राष्ट्रीय सुरक्षा विषय के जानकार प्रवीण स्वामी कहते हैं, मुझे लगता है कि राघव की किताब रणनीतिक रोडमैप तैयार करने की दिशा में बेहद अहम है. हालांकि रोडमैप तैयार करने के लिए आप क्या करते हैं, इसको लेकर मैं राघव से ज्यादा निराशावादी हूं.
प्रवीण स्वामी- “इमारतें बनाने में हमारा कोई सानी नहीं. आप छत्तीसगढ़ के मलकानगिरी जिले में देखें, किसी भी आदिवासी बहुल गांव में देखें, आपको बेहतरीन इमारतें मिलेंगी. इसके अलावा कुछ नहीं. सड़क से पचास किलोमीटर दूर स्कूल की एक इमारत होगी, लेकिन वहां कोई शिक्षक नहीं होगा. बॉस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप की सीमा बंसल ने हरियाणा, जो दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है इस बारे में में उम्दा काम किया है. उन्होंने पाया कि हाई स्कूलों के ज्यादातर शिक्षक चौथी क्लास की गणित की परीक्षा भी पास नहीं कर पाएंगे. हर कोई इस बात से सहमत है कि जजों की कमी है. आप दिल्ली विश्वविद्यालय में थर्ड ईयर लॉ के छात्रों को जांचें, आप पाएंगे कि वो किसी भी भाषा में सवाल का जवाब नहीं दे पाएंगे, चाहे हिन्दी हो या अंग्रेजी. निचली अदालतों के फैसले पढ़ने की कोशिश करें मुझे अफसोस है कि काम के सिलसिले में इन्हें रोज पढ़ना पड़ता है. मुझे तीन-चौथाई समय यही समझने में लगता है कि जज कहना क्या चाहते हैं. वास्तव में बेहद दुखद स्थिति है. ट्रम्प के साथ व्यापारिक अनबन के बाद चीन क्या कर रहा है? चीन ने अपने यहां अमेरिका के अध्ययन के लिए 400 नए पीएचडी पोजीशन शुरु किए. हमारे यहां पिछले एक दशक में किसी भी भारतीय लेखक या सरकार द्वारा पड़ोसी देश से जुड़ा कोई आर्टिकल किसी भी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में नहीं छपा है.”
2050 तक बड़ी इकनॉमी बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए? क्या नरेंद्र मोदी की नीतियां भारत को सुपर इकनॉमी बनाने के रास्ते को आसान करेगी?
प्रवीण स्वामी- ज्ञान के क्षेत्र में निवेश शुरु करें और ये काम गंभीरतापूर्वक करें.
राघव बहल: विदेश नीति के मामले में पीएम मोदी की ऊर्जा और जोखिम उठाने की क्षमता की तारीफ करनी होगी. जब हम बालाकोट की बात करते हैं, तो ज्यादातर बहस इस मुद्दे पर होती है कि क्या हमने उन्हें वाकई मारा या हमने कितने लोग मारे. लेकिन ये असली मुद्दा नहीं था. असल मुद्दा ये था कि भारत ने सीना तानकर कहा कि हां, हमने पाकिस्तान के खिलाफ पाकिस्तान के अंदर जवाबी कार्रवाई की. आप चाहे एक व्यक्ति को मारें या 350 को, इसकी ज्यादा कीमत नहीं. यहां आपकी विदेश नीति में बदलाव देखने को मिलता है. ये उन्होंने अमेरिका के साथ भी किया. यहां उन्होंने एक मजबूत रणनीतिक मंशा दिखाई. साथ ही रूस, ईरान जैसे देशों के साथ अपने रिश्ते बनाए रखने में भी काफी हद तक कामयाब रहे. उन्होंने चीन के साथ हालांकि बराबरी का रिश्ता नहीं बनाया है लेकिन कई मुद्दों पर हम बराबर के दर्जे पर खड़े हैं. लिहाजा मैं सोचता हूं कि उनकी विदेश नीति काफी ऊर्जावान है. जापान के साथ भी उन्होंने अच्छी नीति अपनाई है. जब वो सत्ता में आए थे तो हमने सोचा था कि वो अर्थव्यवस्था में कमाल करेंगे और विदेश नीति सीखेंगे. हो सकता है मेरी बात ज्यादा लगे लेकिन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में उन्होंने निराश किया और मुझे लगता है कि विदेश नीति के मामले में उन्होंने बेहतर किया.
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