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राजस्थान सरकार नहीं 'उड़ा' पाए पायलट, अब तीन रास्ते हैं

राजस्थान में लग रहा है कि कांग्रेस ने सरकार बचा ली है लेकिन उसे अपना कुनबा बचाना बाकी है

वैभव पलनीटकर & संतोष कुमार
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राजस्थान में लग रहा है कि कांग्रेस ने सरकार बचा ली है लेकिन उसे अपना कुनबा बचाना बाकी है
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राजस्थान में लग रहा है कि कांग्रेस ने सरकार बचा ली है लेकिन उसे अपना कुनबा बचाना बाकी है
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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राजस्थान के रेगिस्तान में सियासी आंधी आई और लगा कि ये गहलोत सरकार को उड़ा ले जाएगी. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि अशोक चक्र ने इस आंधी की हवा टाइट कर दी है. 24 घंटे पहले सचिन पायलट खेमा कह रहा था कि गहलोत सरकार अल्पमत में है लेकिन 24 घंटे बाद गहलोत ने मीडिया के सामने विक्ट्री साइन दिखाई. लेकिन मामला यहां खत्म नहीं शुरु होता है.

राजस्थान में लग रहा है कि कांग्रेस ने सरकार बचा ली है लेकिन उसे अपना कुनबा बचाना बाकी है. जरा मरूभूमि की इस सियासी रणभूमि को समझिए...कितने किरदार हैं? कौन कहां खड़ा है? किस हाल में अड़ा है?

अशोक गहलोत

जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई. न्यूज एजेंसी ANI ने बताया कि विधायक दल की बैठक में 107 विधायक शामिल हुए हैं. मीडिया के सामने बाकायदा विधायकों की परेड कराई गई. बता दें कि राजस्थान विधानसभा में 200 सीट हैं. कांग्रेस के 107 विधायक हैं, जबकि बीजेपी के 72 विधायक हैं. वहीं निर्दलीय 13 और अन्य 8 हैं. यानी बहुमत का आंकड़ा 101 का है, मतलब अगर कांग्रेस को सरकार में रहना है तो कम से कम 101 विधायकों का समर्थन जरूरी है. और गहलोत ने फिलहाल इससे ज्यादा विधायकों को खड़ा कर दिया है.

केंद्र से जो तीन पर्यवेक्षकों का दल पहुंचा वो भी गहलोत के साथ खड़ा दिखा. रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कह दिया कि अगर पायलट को कोई परेशानी हैं तो बात करें, पार्टी न तोड़ें. कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा है कि उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट फोन कॉल का जवाब नहीं दे रहे हैं. तो ऐसा लग रहा है कि गहलोत ने न सिर्फ अपनी सरकार बचाई बल्कि केंद्रीय नेतृत्व को भी भरोसे में रखा है.

याद रखना चाहिए कि राज्यसभा चुनाव के बाद से ही गहलोत एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहे थे. पहले उस चुनाव में तीन में से दो सीटें निकाल ले गए. फिर बाकायदा SOG को बागियों और दुश्मनों के पीछे लगाया. खरीद फरोख्त की कोशिश में कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए.
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सचिन पायलट

सचिन पायलट के पास यहां से तीन ऑप्शन बचते हैं. पहला तो ये कि वो कांग्रेस आलाकमान से बात करें और मतभेद खत्म करने का कोई रास्ता निकालें. संभव है ज्योतिरादित्य सिंधिया एपिसोड बाद कांग्रेस आलाकमान दो कदम आगे बढ़ाएगा और पायलट को बेहतर डील मिलेगी.

दूसरा ऑप्शन ये है कि सचिन पायलट कांग्रेस से इस्तीफा दें और बीजेपी जॉइन करें. पहले गहलोत की जोड़-तोड़ करके सरकार गिरवाएं और फिर बीजेपी की सरकार बनवाएं. लेकिन इसके लिए उन्हें उन 30 विधायकों का साथ चाहिए होगा जिसका कि रविवार को उनके खेमे ने दावा किया था. लेकिन गहलोत के दावे को सही मानें तो 30 विधायक फिलहाल सचिन के पास हैं नहीं...और ये हो भी जाए तो क्या बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री बनाएगी?

पायलट के पास तीसरा ऑप्शन है कि वो कांग्रेस से इस्तीफा दें और अपनी खुद की पार्टी बनाएं. राजस्थान की पॉलिटिक्स समझने वाले लोग बताते हैं कि राजस्थान में चूंकि कांग्रेस और बीजेपी दो ही अहम पार्टियां हैं तो वहां पर रीजनल पार्टी के लिए अच्छा स्कोप है.

कांग्रेस

चाहें गहलोत जीतें, चाहें पायलट की हार हो, नुकसान सिर्फ एक को होना है, और वो है कांग्रेस. घर की लड़ाई और बीजेपी की चतुराई से कांग्रेस कर्नाटक और मध्य प्रदेश गंवा चुकी है. अब दांव पर राजस्थान है. आज भले ही पायलट-गहलोत के युद्ध में सरकार शहीद होने से बच गई लेकिन गारंटी कोई नहीं है. क्योंकि ऐसा लग रहा है कि सचिन पायलट के लिए अब ये लड़ाई स्वाभिमान की लड़ाई हो गई है. चाहे उनके पास नंबर हों या न हों, अब वो बागावत कर चुके हैं और बीच बगावत से पैर खींचना उनके लिए आसान नहीं होगा.

कोई ताज्जुब नहीं कि इस खुली बगावत के बावजूद कांग्रेस ने ये कहकर पायलट के लिए गुंजाइश बाकी रखी है कि परिवार में झगड़े होते हैं तो लोग एक साथ बैठकर मामले को सुलझा लेते हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी भी सचिन पायलट से बात करने की कोशिश कर रही हैं. प्रदेश कार्यलय के दफ्तर से पायलट के जो पोस्टर हटाए गए थे, उनकी भी वापसी हुई है.

बीजेपी

पायलट और गहलोत की सियासी झड़प को क्या महायुद्ध में बदलने के लिए क्या बीजेपी हथियार सप्लाई कर रही है. गहलोत का तो यही आरोप है. लेकिन बीजेपी का कहना है कि वो तो मूक दर्शक है. बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा - राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी फिल्म के एक्टर, विलेन और स्क्रिप्ट राइटर हैं‘’

लेकिन बीजेपी की चुनौती सिर्फ गहलोत को कमजोर करना नहीं है. ये भी देखना होगा कि अगर पायलट बीजेपी में जाते हैं तो पार्टी का प्रदेश नेतृत्व इसको किस तरह लेता है. आखिर बीजेपी के मयान में दो-दो तलवारें कैसे फिट होंगी? हो सकता है यही सवाल पायलट के रास्ते में रोड़ा बन कर खड़ा हो. बावजूद इसके कांग्रेस में कलह के बीच दिल्ली से लेकर जयपुर तक आयकर छापे पड़े तो कुछ लोगों ने तुरंत में इसमें तख्तापलट का एंगल जोड़ा.

बहरहाल अब देखना ये होगा कि क्या राजस्थान की पॉलिटिक्स में ट्विटस्ट आना बाकी है? क्योंकि पायलट अभी चुप हैं. क्या ये तूफान से पहले की शांति हैं?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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