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है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज
अहल-ए-नजर समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद
अल्लामा इकबाल के इमाम-ए-हिंद यानी राम का हिंदुस्तान जल रहा है. वो भी मर्यादा-पुरूषोत्तम राम के जन्मदिन के मौके पर. अधार्मिक नारे, पत्थरबाजी, आगजनी और हिंसा.. मध्यप्रदेश से लेकर गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, बंगाल तक ये चल रहा है. सवाल है कि ये सब होने क्यों दिया जा रहा है? क्या अब देश में त्योहार का मतलब खुशी, मेलजोल, नहीं बल्कि दूसरे धर्म के खिलाफ नारे लगाना है, पत्थरबाजी करना है? क्यों इस देश के बड़े नेता इस नफरत को रोकने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? शहर दर शहर हिंसा का एक ही पैटर्न दिख रहा है फिर क्यों पुलिस इसे रोकने में कामयाब नहीं हो रही है? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
हिन्दुओं के आराध्य श्री राम के जन्मोत्सव के तौर पर राम नवमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दौरान कई इलाकों में शोभा यात्रा और जुलूस निकाला जाता रहा है. लेकिन इस साल रामनवमी के मौके पर 10 अप्रैल को कई राज्यों से साम्प्रदायिक हिंसा की खबर आई.
पहले आपको घटना की जानकारी देते हैं फिर उन सवालों पर आएंगे जिससे आंख चुराया जा रहा है.
मध्य प्रदेश के खरगौन शहर में रामनवमी के जुलूस के दौरान उपद्रव हुआ. एमपी कांग्रेस के नेता केके मिश्रा का कहना है कि जुलूस जब तालाब चौक पहुंचा तब डीजे पर गाने बज रहे थे, गाने के द्वारा एक समुदाय विशेष को उत्तेजक बाते कहीं गईं और उसके बाद तनाव बढ़ा. पुलिस ने स्थिति को कंट्रोल में करने के लिए आंसू गैस के गोले भी छोड़े. जिसके बाद कई इलाक़ों में कर्फ्यू लगा दिया गया. इस हिंसा में एसपी समेत कई पुलिसकर्मी घायल भी हुए हैं.
पश्चिम बंगाल के बांकुरा में भी राम नवमी जुलूस के दौरान काफी बवाल हुआ. स्थानीय पुलिस ने जुलूस में हिस्सा लेने वाले लोगों को कानून का पालन करने को कहा और मस्जिद के सामने से मार्च न निकालने की सलाह दी थी. लेकिन लोगों ने इनकार किया और पुलिस बैरिकेडिंग हटाकर अपना रास्ता बना लिया. पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ लोगों ने पथराव किया. हावड़ा में भी जुलूस के दौरान दो गुटों के बीच झड़प हो गई.
गुजरात के आणंद जिले के खंभात और साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में भी रामनवमी पर सांप्रदायिक झड़पें हुई हैं. गुजरात में हुए हंगामें में एक शख्स की मौत भी हो गई.
झारखंड के लोहरदगा और बोकारो से भी ऐसी ही खबरें आई हैं. राज्य में भी एक शख़्स की मौत हुई है.
बिहार में रामनवमी के मौके पर मुजफ्फरपुर जिले के साहेबगंज विधानसभा में डाक बंगला मस्जिद पर भगवा झंडा लहराने का वीडियो भी सामने आया है लेकिन अब तक दंगा भड़काने की कोशिश करने वालों को पुलिस ने नहीं पकड़ा है.
महाराष्ट्र में भी ऐसी ही कोशिश की गई. महाराष्ट्र के गृह मंत्री दिलीप वालसे पाटिल कह रहे हैं कि कुछ लोग जाति के नाम पर दंगा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वो इसका फायदा उठा सकें.
इससे पहले राजस्थान के करौली (Karauli) में नए साल के जुलूस पर पथराव हुआ, आगजनी हुई. हिंसा पर पुलिस ने सात दिन की जांच के बाद एक रिपोर्ट दी है. डीजीपी एम एल लाठर ने बताया कि रैली को बिना डीजे और नारेबाजी के निकालने की अनुमति दी गई थी. इसके बावजूद भी अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्र में रैली में शामिल लोगों ने भड़काऊ नारेबाजी की. जिसके बाद पथराव शुरू हुआ.
उकसावा चाहे किसी भी तरह का हो, हिंसा पर उतारू हो जाना उचित नहीं है, ऐसा करने वालों को सजा मिलनी ही चाहिए. लेकिन भड़काऊ नारे, भड़काऊ गाने? आखिर श्रीराम की भक्ति में इन चीजों का क्या काम? इसका मकसद क्या है?
चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं. उत्तर प्रदेश के सीतापुर में ख़ुद को महंत कहने वाला बजरंग मुनि दास मस्जिद के सामने जाकर मुस्लिम महिलाओं को खुलेआम रेप की धमकी देता है. सोशल मीडिया पर लोग विरोध करते हैं तो पुलिस FIR दर्ज करती है लेकिन चार दिन बाद भी वो गिरफ्तार नहीं होता है. सवाल है क्यों?
एक और नाम है यति नरसिंहानंद. 3 अप्रैल को दिल्ली के बुराड़ी ग्राउंड में आयोजित हिंदू महापंचायत में यति नरसिंहानंद सरस्वती ने भड़काऊ भाषण दिया. हरिद्वार में हुए धर्म संसद में भड़काऊ भाषण मामले में जमानत पर जेल से बाहर यति नरसिंहानंद ने आम हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने के लिए भी उकसाया.
जो भूल गए हैं उन्हें बता दें कि यह वही देश है जहां बंगाल में रामनवमी की रैली में हिंदू, मुसलमान एक साथ चलते हैं. गुजरात में रोजेदारों के लिए मंदिर के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, मेरे शहर दरभंगा में आज भी मुसलमान रामनवमी में हिंदुओं को पानी, जूस और शरबत पिलाते हैं.. वहीं मुहर्रम के जुलूस में हिंदू पानी और शरबत बांटते हैं. ये वही देश है जहां उन्नाव में एक तरफ राम, सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार होते हैं. 'राम जी की निकली सवारी, राम जी की लीला है न्यारी,' जैसे गीत गूंज रहे होते हैं. और और इन सबके बीच जिस रथ पर राम जी सवार हैं उसकी डोर कुर्ता, पजामा और सफेद दाढ़ी वाले रज्जाक मियां थामते हैं.
तो अब ये नई हवा किधर से चली है? रामनवमी जुलूस में भड़काऊ नारे ही नहीं, नवरात्रों में मीट बैन की हुंकार क्यों है? किस कानून के तहत है?
असल सवाल ये है कि त्योहार की खुशी को मातम में बदलने की साजिश में जुटे लोगों को रोकने के लिए हर बात पर ट्वीट करने वाले, बयान देने वाले बड़े नेता क्यों नहीं आगे आते? जो लोग इन नफरतों पर चुप हैं उनसे साहिर लुधियानवी ने पूछा था-
जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कुचे, ये गलियां, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं...
और हम पूछ रहे हैं जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं और क्यों नहीं पूछ रहे जनाब ऐसे कैसे?
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