advertisement
वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास
ऐसे वक्त में जब देश में जरूरी सवाल नहीं पूछे जा रहे हैं. तब राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का ना होना कुछ अखर सा जाता है. ये वही दिनकर थे, जिन्होंने चीन के मसले पर अपनी पुरानी कविता की पंक्तियों से नेहरू पर तंज कसा था.
"रे रोक युधिष्ठर को न यहाँ, जाने दे उनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर."
ये तंज उन नेहरू पर भी था, जिन्हें दिनकर ने "लोकदेव" की उपाधि देते हुए "लोकदेव नेहरू" जैसी किताब लिखी थी. नेहरू ने भी उनकी मशहूर गद्य कृति "संस्कृति के चार अध्याय" की भूमिका लिखी थी.
रामधारी सिंह 'दिनकर' एक ऐसे कवि थे जिनके लिए राष्ट्र का मतलब सिर्फ भूगोल नहीं उसमें बसने वाली जनता थी. वीर रस की रचनाओं को लोगों की रगों तक उतारने और कई कालजयी रचनाओं की अनमोल धरोहर देने वाले रामधारी सिंह 'दिनकर' आजादी के पहले 'विद्रोही' और आजादी के बाद 'राष्ट्रकवि' के रूप में जाने जाते हैं.
"फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से शृंगार सजाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है "
बिहार के बेगूसराय का सिमरिया गांव. गांव में घुसते ही दीवारों पर लिखी कविताएं दिखने लग जाती हैं.
इतिहास की तारीख़ें बताने लगती हैं कि 23 सितंबर 1908 को इसी सिमरिया गांव में दिनकर का जन्म हुआ था. इसी गांव की गलियों में ढंग से खेलना भी शुरू नहीं हुआ था और दो साल के रामधारी के पिता रवि सिंह दुनिया से जा चुके थे. मां मनरूप देवी ने परवरिश की. 13 साल की उम्र में श्यामवती देवी से शादी हुई.
1947 में बिहार सरकार के जनसंपर्क विभाग में डिप्टी डायरेक्टर बने. पोस्ट ग्रेजुएशन किए बिना ही प्रतिभा के आधार पर कॉलेज में लेक्चरर नियुक्त हुए. 1952 में राज्यसभा सांसद बने. 12 साल तक सदस्य रहने के बाद भागलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति बने. केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय में हिंदी सलाहकार के तौर पर भी उन्होंने काम किया. दिनकर के दो पुत्र रामसेवक सिंह और केदार सिंह और 2 पुत्री विनता देवी और विभा देवी हैं.
दिनकर ने छात्र रहते हुए स्वाधीनता संघर्ष को करीब से देखा जिससे राष्ट्रवाद, आजादी, समाजवाद, साम्यवाद जैसी चीजों का असर उनके लेखन में देखने को मिला. उन्हें और मैथिलीशरण गुप्त को ही देश में 'राष्ट्रकवि' का गौरव प्राप्त हुआ है. दिनकर की पहली कविता 'विजय संदेश' 1928 में छपी थी. गुजरात में बारदोली आंदोलन सफल होने के बाद उन्होंने इस लिखा था. इसे बारदोली विजय के नाम से भी जाना जाता है.
26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर उनकी लिखी कविता 'सिंहासन खाली करो...' ने 25 साल बाद 1975 में फिर से पूरे देश को झकझोरने का काम किया था. कविता इमरजेंसी के खिलाफ हुए आंदोलन की गीत बन गई थी. जयप्रकाश नारायण ने खुद दिल्ली के रामलीला मैदान में दिनकर की इस कविता सुनाकर लोकतंत्र की रक्षा का आह्वान किया था.
सब से विराट जनतन्त्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो ।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से शृंगार सजाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।
दिनकर ने देशवासियों की रगों में कविताओं के जरिए तो जोश भरा ही, अनेक कालजयी निबंध लिखकर लोगों को जीवन जीने का सही तरीका भी सिखाया.
‘हिम्मत और जिंदगी’
"साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं. झुंड में चलना और झुंड में चरना, यह भैंसे और भेंड़ का काम है. सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मग्न रहता है."
दिनकर एक इंटरव्यू में अपनी शैली के बदलाव के बारे बताते हुए कहते हैं-
'उर्वशी' के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के मौके पर उन्होंने कहा था -
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रशंसक दिनकर ने जय प्रकाश नारायण पर भी कविता लिखी है. दिनकर की करीब 60 कृतियां हैं, जिनमें 33 काव्य और 27 गद्य ग्रंथ शामिल हैं. गद्य में ज्यादातर निबंधों का संकलन ही है.
महात्मा गांधी की हत्या को लेकर दिनकर ने कट्टरपंथियों को अपनी कविता से फटकारा भी था.
''लिखता हूं कुंभीपाक नरक के पीव कुण्ड में कलम बोर,
बापू का हत्यारा पापी था कोई हिन्दू ही कठोर."
दिनकर की ये कविताएं आज भी हर देशवासी को आंदोलित करने के लिए काफी है.
‘समर शेष है...’
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध
शक्ति और क्षमा
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो
दिनकर का सेंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का था. इन पंक्तियों से आप खुद ही इसका अंदाजा लगा सकते हैं.
शादी वह नाटक अथवा वह उपन्यास है,
जिसका नायक मर जाता है पहले ही अध्याय में.
ब्याह के कानून सारे मानते हो?
या कि आँखें मूँद केवल प्रेम करते हो?
स्वाद को नूतन बताना जानते हो?
पूछता हूँ, क्या कभी लड़ते-झगड़ते हो?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)