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RBI का फैसला,जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों का ₹3.4+ लाख करोड़ का लोन होगा सेटल

Compromise Settlement को मंजूरी मिलना मतलब Wilful Defaulters के कर्ज को सेटल करना है, बैंक यूनियन ने इसका विरोध किया

प्रतीक वाघमारे
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<div class="paragraphs"><p>RBI का फैसला,जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों का ₹3.5+ लाख करोड़ का लोन होगा सेटल</p></div>
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RBI का फैसला,जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों का ₹3.5+ लाख करोड़ का लोन होगा सेटल

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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आप बैंक से 50 लाख का लोन लेते हैं, फिर आपका लोन चुकाने का मन ना करें और बैंक आपसे कहे कि कोई सेटलमेंट कर लीजिए और आप 25 लाख देकर बच निकल जाते हैं तो आपको लगेगा कि ऐसा नहीं हो सकता.

लेकिन ये सच है, ऐसा ही हो रहा है. मोटा कर्ज उठाने वाले कुछ डिफॉल्टर्स अब अपने लोन को कम में ही सेटल कर बच निकल सकेंगे.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंक (Bank) समेत कर्ज देने वाली संस्थाओं (Lenders) को विलफुल डिफॉल्टर्स (Wilful Defaulters) और फ्रॉड अकाउंट (Fraud) वालों को कॉम्प्रोमाइज सेटलमेंट (Compromise Settlement) के तहत अपने कर्ज को सेटल करने की अनुमति दे दी है. आरबीआई की बात का क्या मतलब है?

रिजर्व बैंक ने कहा है कि दो तरह के कर्जदार एक, विलफुल डिफॉल्टर्स, दूसरे, फ्रॉड अकाउंट जो कर्ज नहीं लौटा रहे, उनसे कुछ पैसा वसूल कर बाकी लोन माफ कर दिया जाए, मतलब अगर किसी ने एक करोड़ का लोन लिया है और वह लोन नहीं चुका रहा तो उससे कुछ हिस्सा (1 लाख, 20 लाख, 50 लाख, 80 या 90 लाख) लेकर लोन को सेटल कर दिया जाए यानी राइट ऑफ किया जाए. राइट ऑफ का मतलब बैंक अपने रजिस्टर से ये हटा दे कि उसे अब 1 करोड़ का लोन वसूलना है. इसी प्रक्रिया को कॉम्प्रोमाइज सेटलमेंट कहते हैं.

लेकिन विलफुल डिफॉल्टर्स क्या होते हैं?

ऐसे कर्जदार जो लोन चुकाने की भरपूर क्षमता रखते हैं लेकिन फिर भी वो लोन नहीं लौटाते उन्हें विलफुल डिफॉल्टर्स कहते हैं. क्विंट हिंदी से बातचीत में अर्थशास्त्री शरद कोहली कहते हैं, मान लीजिए अगर कोई विलफुल डिफॉल्टर व्यापारी है तो उसका व्यापार बढ़िया चल रहा हो, काफी प्रोफिट कमा रहा हो, बड़ी गाड़ियों में घूमता हो, बंगले में रहता हो, बैलेंस शीट अच्छी हो लेकिन फिर भी लोन चुकाने से मना कर दे तो वह विलफुल डिफॉल्टर कहलाएगा.

वहीं शरद कोहली ने समझाते हुए ये भी बताया कि, ऐसे विलफुल डिफॉल्टर्स का लोन सेटल तो हो रहा है लेकिन इनके खिलाफ जो केस दर्ज हुआ है उसपर कार्रवाई जारी रहेगी. इन पर आईपीसी की धाराओं के तहत ही केस चलेगा. लेकिन उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि, क्या ये विलफुल डिफॉल्टर्स बैंक के सामने मांग नहीं रखेंगे कि इनके खिलाफ केस खत्म हो?

विलफुल डिफॉल्टर अपराधियों को RBI एक और फायदा दे रही है:

इस समझौते में कायदे से तो ये होना चाहिए कि लोन न चुकाने वाले को आगे कभी लोन नहीं मिलना चाहिए या लोन मिलने में कठिनाइयां आनी चाहिए, लेकिन रिजर्व बैंक ने ऐसे अपराधियों के लिए कूलिंग पीरियड 12 महीने का तय किया है. इसका ये मतलब हुआ कि समझौते के बाद एक साल तक वो कहीं से भी लोन नहीं ले पाएंगे लेकिन उसके बाद वे लोन लेने के लिए फिर से योग्य हो जाएंगे.

रिजर्व बैंक का ये कदम काफी चौंकाने वाला है, क्योंकि एक ऐसा अकाउंट जो कर्ज चुकाने में पूरी तरह से सक्षम है वो बच निकल जाएगा और फिर लोन लेने के लिए एलिजिबल भी हो जाएगा. सरकार और आरबीआई ने इस पर विवाद बढ़ने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया या स्पष्टिकरण नहीं दिया है.

देश के दो सबसे बड़े बैंक यूनियनों ने RBI के इस कदम का विरोध किया

छह लाख बैंक कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर कॉन्फेडरेशन (AIBOC) और ऑल इंडिया बैंक एंप्लोइज असोसिएशन (AIBEA) ने इसका कड़ा विरोध किया है. बैंक यूनियन का मानना है कि, "ये न केवल बेईमान कर्जदारों को रिवॉर्ड दे रहा है बल्कि ईमानदार कर्जदारों को भी गलत संदेश भेजता है ..."

उन्होंने ये भी कहा कि RBI का ये कदम न्याय और जवाबदेही के सिद्धांतों का अपमान है.

बैंक यूनियन ने अपने बयान में आगे कहा कि, "ध्यान देने वाली बात ये है कि विलफुल डिफॉल्ट का बैंकों की वित्तीय स्थिरता और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. उन्हें समझौते के तहत अपने कर्ज को निपटाने की अनुमति देकर, आरबीआई अनिवार्य रूप से उनके गलत काम को माफ कर रहा है और आम नागरिकों और मेहनती बैंक कर्मचारियों के कंधों पर उनके गलत कामों का बोझ डाल रहा है."

अर्थशास्त्री शरद कोहली ने क्विंट हिंदी से कहा कि, ये दोनों देश की बड़ी बैंक यूनियन हैं जिसके सवालों पर रिजर्व बैंक को जरूर ध्यान देना होगा.

बता दें कि, पिछले 2 दशकों से इस तरह की योजना के तहत सरकार लोगों के कर्ज को सेटल करती आ रही है. शरद कोहली ने बताया कि, ऐसा पहले भी कई बार हुआ है, पिछली बार 2019 में ऐसा हुआ था. लेकिन इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा, बैंक के कुछ कर्मचारी इसका गलत फायदा उठा सकते हैं.

मेरी नजर में बैंक यूनियन की चिंता जाहिर है और रिजर्व बैंक का ये फैसला वाकई चौंकाने वाला है, इसमें सबसे बड़ी समस्या यही है कि विलफुल डिफॉल्टर्स का फायदा हो रहा है, आप अपराधियों के साथ बैठ कर समझौता कैसे कर सकते हैं. जो मेहनत से लोन चुकाता है उस तक आप क्या संदेश पहुंचाना चाह रहे हैं?
अर्थशास्त्री शरद कोहली

क्विंट हिंदी से बातचीत में शरद कोहली ने कहा कि देश में पहले से ही डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT), बैड बैंक (Bad Bank) और एनसीएलटी जैसे संस्थान बने हैं जो लोन रिकवरी का काम करते हैं, फिर क्यों रिजर्व बैंक लोन सेटलमेंट को मंजूरी दे रही है? साथ ही शरद कोहली ने कहा कि, रिजर्व बैंक ने कहा कि विलफुल डिफॉल्टर्स के कर्ज का 'कुछ' पैसा रिकवर किया जाए, यहां रिजर्व बैंके ने 'कुछ' को परिभाषित ही नहीं किया है.

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देश में कितने विलफुल डिफॉल्टर्स का कितना बकाया है? 

आरबीआई द्वारा रजिस्टर्ड क्रेडिट इंफॉर्मेंशन कंपनी ट्रांसयूनियन सिबिल के मुताबिक:

  • दिसंबर 2022 तक देश में 15,778 विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट मौजूद हैं

  • इन अकाउंट का 3,40,570 करोड़ रुपये का बकाया है

  • दिसंबर 2021 तक 14,206 अकाउंट का 2,85,583 करोड़ रुपये बकाया है

  • दिसंबर 2020 तक 12,911 अकाउट का 2,45,888 करोड़ रुपये बकाया है

किस बैंक के पास कितने विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट?

  • स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के पास 1,883 विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट हैं जिनका 79,296 करोड़ रुपया बकाया है.

  • पंजाब नेशनल बैंक (PNB) के पास विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट का कुल 38,360 करोड़ रुपए का बकाया है.

  • यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के पास विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट का 35,266 करोड़ रुपया बकाया है.

  • IDBI के पास विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट का 23,601 करोड़ रुपए का बकाया है

  • बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) के पास विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट का 23,879 करोड़ रुपए बकाया है.

  • विलफुल डिफॉल्ट अकाउंट में पब्लिक सेक्टर की बैंक्स की हिस्सेदारी 85 फीसदी है, जिनका 2,92,666 करोड़ रुपए बकाया है.

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