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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़: 2020 में भी मौजूं हैं जिनके शब्द

फ़ैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे’ को शाहीन बाग में प्रोटेस्ट के दौरान भी गाया जा रहा है

क्विंट हिंदी
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फ़ैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे’ को शाहीन बाग में प्रोटेस्ट के दौरान भी गाया जा रहा है
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फ़ैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे’ को शाहीन बाग में प्रोटेस्ट के दौरान भी गाया जा रहा है
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: आशीष मैक्यून

वीडियो प्रोड्यूसर: दीक्षा शर्मा

फैज़ अहमद फैज़- एक ऐसे शायर, जो आज के संदर्भ में भी उतने ही मौजूं हैं. जिनकी लिखी हुई कविता ‘हम देखेंगें’ को काफी पिछले कुछ दिनों से आंदोलनों का हिस्सा बनी हुई है. इसको शाहीन बाग में प्रोटेस्ट के दौरान भी गाया जा रहा है. हालात ये है कि सीएए को लेकर हो रही डिबेट शो की शुरुआत भी इसी कविता से की जा रही है.

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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ 20 वीं सदी के सबसे लोकप्रिय शायरों में से एक थे. उनकी रचनाएं रूमानियत से क्रांति तक के परिवर्तन को दिखाती हैं. उन्हें अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण राजनीतिक दमन का सामना करना पड़ा था.

फ़ैज़ का जन्म 1911 में पंजाब के सियालकोट में हुआ था, जहां उन्होंने चर्च मिशन स्कूल से अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की. उसके बाद उन्होंने अंग्रेजी और अरबी में लाहौर से मास्टर्स की डिग्री ली. कॉलेज के दिनों में, उन्होंने अपने अंदर के कवि को जगाए रखा.

जब 1936 में भारत में प्रोग्रेसिव आंदोलन ने गति पकड़ी, तो वो उन लोगों में से एक थे जो इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. फ़ैज़ ने अपनी कविता में जीवन के दुखों के साथ प्यार को भी उतनी ही खूबसूरती से उकेरा कि युवाओं के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

साहित्य के अलावा, उन्होंने शिक्षण और पत्रकारिता जैसे क्षेत्रों में भी काम किया. वे ब्रिटिश इंडियन आर्मी का भी हिस्सा रहे थे. फ़ैज़ के काम को पाकिस्तानी साहित्य का स्तंभ माना जाता है, जिसने देश में कला को विकसित करने में मदद की. एक तरफ जहां उन्होनें क्रांतिकारी छंदों को लिखा जो न्याय का आह्वाहन करते थे तो वहीं दूसरी तरफ भावपूर्ण कविताएं भी लिखी.

इस वीडियो में मशहूर गायिका स्मिता बेलूर और कवि-लेखक सुहैल अख्तर वारसी फ़ैज़ की नज्म ‘मुझ से पहली सी मुहब्बत..’ गाकर सुना रहे हैं. ढोलक पर सदानंद मलिक और हारमोनियम पर विनोद पडगे हैं.

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Published: 10 Feb 2020,04:30 PM IST

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