advertisement
संघ के तीन दिनों की लेक्चर सीरीज में सरसंघचालक मोहन भागवत की बातें शहद जैसी लगी. बनी बनाई लीक से हटकर और कुछ लकीरें मिटाने की कोशिश भी. पहले आप सुनिए कि ऐसा उन्होंने क्या कह दिया:
बातें बहुत अच्छी हैं, अब बस संघ परिवार इन्हें सच्ची भी कर दे तो तारीफ पूरा देश करेगा. लेकिन, जिस शिद्दत से ये बातें कही गई हैं, जिस वक्त कही गई हैं, उससे कुछ शक भी होता है...इसीलिए एक भारतीय मुसलमान के दिल में कई सवाल हैं जिनके जवाब भी ऐसे ही मंचों से दिए जाने चाहिए. विस्तार से दिए जाने चाहिए पर मिलते कहीं नहीं.
ये सवाल है लॉयल्टी का, जो हमसे हर दिन मांगी जाती है.
आपको पता है अगर कोई मुसलमान गलती से नुसरत फतेह अली खान के गानों की तारीफ कर दे, शाहिद आफरीदी के सिक्सर का फैन हो, इमरान खान को पीएम बनने पर ट्विटर पर बधाई दे दे, या फिर हरे रंग की टी-शर्ट पहन ले तो रिएक्शन आता है देखों अपने सही रंग में आ गया. ये तो पाकिस्तानी ही है. भाई कैसे? हम भी इंसान हैं. हमारी भी पसंद-नापसंद हैं. आइफिल टावर मुझे भी पसंद आ सकता है. मेहदी हसन की गजलों का मैं भी फैन हो सकता हूं. वसीम अकरम की आउट स्विंगर पर ताली बजाने का मुझे भी मन कर सकता है. क्या ये नेचुरल नहीं है. किसी और का रिएक्शन नेचुरल और हम करें तो हम पाकिस्तानी हो गए....तो ये लॉयल्टी टेस्ट बंद होना चाहिए. तत्काल होना चाहिए.
संघ और इससे जुड़ी संस्थाओं के नेताओं के भाषणों और लेखों में मुस्लिम का मतलब विलेन. ये ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं...पॉपुलेशन का बैंलेंस खराब करने वाले हैं, कई शादी करने वाले, आतंकवादी, उपद्रवी...तथ्यों को खूब तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है.
हमें विलेन करार देने के पीछे कोई ठोस सबूत हैं, कोई तगड़ी रिसर्च है? जब कोई सही आंकड़े और रिसर्च पेश करता है तो उल्टा उन्हें स्यूडो सेक्यूलर बताकर झुठला दिया जाता है.
क्या इस तरह की बातें बंद होगी? क्या संघ से जुड़े लोग सर्टिफिकेट बांटना बंद करेंगे?
तीसरे सवाल से पहले आपको एक कहानी बताता हूं. मैं बचपन में छुट्टियों में अपनी नानी के यहां जाया करता था. जहां गाय के साथ भैंस भी थीं. जिस गाय पर संघ से जुड़े लोग ट्रेडमार्क लगा कर बैठे हैं ना उन गायों को चारा खिलाने के लिए हम सबसे आगे बढ़ते थे और वहां एक नहीं दो नहीं दसियों गाय थीं. उन गायों का दूध आसपास के हिंदुओं को भी दिया जाता था. लेकिन अब उसी गाय के नाम पर लोगों को मारा जा रहा है.
अच्छा लगा सुनकर जो आपने कहा-
लेकिन इन लिंचिंग्स को आप रोकेंगे कैसे? कथित गोरक्षकों की वजह से जो लोग मरे हैं क्या उनके परिवार को आप यकीन दिलाएंगे कि आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा होगी?
ये सवाल प्यार का है. प्यार जो मजहबी दीवारों से ऊपर होता है, प्यार कभी ये नहीं पूछता कि तुम हिंदू हो या मुसलमान ? लेकिन आपने तो उसे भी लव जिहाद कह दिया. जब भारत में हिंदू और मुसलमान साथ रहेंगे तो उनमें प्यार भी होगा और शादी भी और आपने ही कहा है हम सब भारतीय हैं. तो क्या अब भी दो अलग-अलग धर्म के लोगों के प्यार को आप लव जिहाद कहेंगे?
टोपी, दाढ़ी, अहमद, खान जैसे सरनेम की वजहों से जिन मुसलमानों को देश के कई हिस्सों में रहने को घर या नौकरी नहीं मिलती, उनके साथ आप खड़े होंगे?
मेरा सवाल अब भी वही है. क्या सच में बदलाव होगा या फिर आपने कह दिया और बाकी सबने एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया!
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)