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Russia Ukraine Crisis: यूक्रेन पर मंडरा रहा हमले का खतरा,आखिर क्या चाहता है रूस?

रूस ने 2014 में यूक्रेन पर हमला किया था और उसके क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था.

मोहम्मद साक़िब मज़ीद
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Updated:
<div class="paragraphs"><p>यूक्रेन पर मंडरा रहा आक्रमण का खतरा, क्या चाहता है रूस?</p></div>
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यूक्रेन पर मंडरा रहा आक्रमण का खतरा, क्या चाहता है रूस?

(फोटो- अल्टर्ड बाई क्विंट हिन्दी)

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यूक्रेन (Ukraine) पर रूसी आक्रमण का खतरा लगातार बना हुआ है. अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों के बीच-बचाव के बाद भी यूक्रेन पर टला नहीं है. यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि रूस यूक्रेन पर 16 फरवरी को हमला कर सकता है. सोमवार, 14 जनवरी को फ्रांस के विदेश मंत्री जीन-यवेस ने कहा कि मॉस्को द्वारा अपनी सीमाओं पर हजारों सैनिकों को इकट्ठा करने बाद रूस, यूक्रेन पर बड़ा आक्रमण करने के लिए पूरी तरह से तैयार है. अमेरिका भी यूक्रेन में रूसी आक्रमण की चेतावनी दे चुका है. लेकिन रूस कह रहा है कि यूक्रेन पर हमला करने की उसकी कोई योजना नहीं है. लेकिन ये नौबत आई कैसे?

यूक्रेन पर मंडरा रहे इस संभावित खतरे को बेहद गंभीरता के साथ देखा जा रहा है क्योंकि रूस ने 2014 में यूक्रेन पर हमला किया था और उसके क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था. भारत सहित कई देशों ने अपने नागरिकों से यूक्रेन छोड़ने का आह्वान किया है. अमेरिकी सरकार के सैन्य अधिकारी, जनरल मार्क मिले ने चेतावनी दी है कि अगर रूस, युक्रेन पर आक्रमण करता है तो शहरी क्षेत्रों में खतरनाक लड़ाई होगी.

यूक्रेन बॉर्डर पर लाखों सैनिकों की तैनाती

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने यूक्रेन की सीमाओं पर लगभग 1 लाख सैनिकों को तैनात किया है. इसके अलावा 30 हजार से अधिक सैनिक बेलारुस में अभ्यास में लगे हुए हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक रूस ने यूक्रेन को तीन तरफ (पूर्वी यूक्रेन, बेलारूस और क्रीमिया) से घेर रखा है. इसके अलावा मॉस्को ने टैंक और भारी हथियारों के साथ मिसाइलें भी तैयार रखी हैं. पिछले हफ्ते अमेरिकी अधिकारियों ने कहा था कि यूक्रेन की सीमा पर 1 लाख रूस के सैनिकों को तैनात किया गया है

रूस के उप विदेश मंत्री ने हाल ही में मौजूदा स्थिति की तुलना 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट से की, जब अमेरिका और सोवियत संघ परमाणु संघर्ष के करीब आ गए थे.

रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने विद्रोहियों द्वारा संचालित किए जा रहे क्षेत्रों में लगभग 7 लाख पासपोर्ट भी सौंपे हैं, इसलिए अगर उसके उद्देश्य पूरे नहीं होते हैं तो वह अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी तरह की कार्रवाई को सही ठहरा सकता है.

रूस, यूक्रेन को क्यों धमकी दे रहा है?

यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है लेकिन रूस ने नाटो और यूरोपीय यूनियन, दोनों ऑर्गनाइजेशन की ओर यूक्रेन के बढ़ते कदम का लंबे वक्त से विरोध किया है. रूस की मुख्य मांग अब यह है कि यूक्रेन नाटो में नहीं शामिल होगा. लेकिन यूक्रेन का कहना है कि नाटो में शामिल होने की बात उसके संविधान में शामिल है.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में यूक्रेन के राजदूत वादिम प्रिस्टाइको ने बताया कि नाटो में शामिल होना यूक्रेन के संविधान का एक हिस्सा है.

जब 2014 की शुरुआत में यूक्रेन के रूस समर्थक राष्ट्रपति को हटाया गया, तो रूस ने यूक्रेन के दक्षिणी क्रीमियन प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया और अलगाववादियों का समर्थन किया, जिन्होंने पूर्वी यूक्रेन के बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया. उसके बाद से ही विद्रोहियों ने यूक्रेन की सेना से संघर्ष किया है, जिसमें अब तक लगभग 14 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है.

रूस नाटो से क्या चाहता है?

रूस नाटो के साथ अपने संबंधों को फिर से स्थापित करना चाहता है. उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव ने कहा कि हमारे लिए यह सुनिश्चित करना बिल्कुल जरूरी है कि यूक्रेन कभी भी नाटो का सदस्य न बने.

मॉस्को ने नाटो देशों पर यूक्रेन को हथियारों से लैस करने और अमेरिका पर रूस के विकास को रोकने के लिए तनाव पैदा करने का आरोप लगाया. पुतिन ने कहा कि क्या उन्हें लगता है कि हम बस आलस्य से बैठे रहेंगे?

राष्ट्रपति पुतिन के मुताबिक पश्चिमी देशों ने 1990 में वादा किया था कि नाटो एक इंच भी पूर्व में नहीं विस्तार करेगा, लेकिन फिर भी ऐसा किया गया.

रिपोर्ट्स के मुताबिक यह बात सोवियत संघ के पतन से पहले हुई. तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव से किए गए वादे में केवल पूर्वी जर्मनी को रीयुनिफाइड करने के संदर्भ में कहा गया था.

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रूस, यूक्रेन से क्या चाहता है?

यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था, जो दिसंबर 1991 में अलग हो गया. यूक्रेन में आज भी आबादी का लगभग छठा हिस्सा रूसी भाषा बोलता है. रूस ने क्रीमिया पर ऐतिहासिक दावा करते हुए कब्जा कर लिया है.

पिछले दिनों राष्ट्रपति पुतिन ने रूस और यूक्रेन को एक राष्ट्र कहकर पुकारा था. यानी रूस आज भी यूक्रेन पर ऐतिहासिक हक जमाना चाहता है. पिछले दिनों पुतिन ने यूक्रेन के नेताओं पर जनता में रूसी विरोधी भावनाओं को उत्पन्न करने का आरोप लगाया था.

रूस चाहता है कि यूक्रेन यूरोपीय यूनियन के साथ अपने रिश्तों को खत्म कर दे और नाटो का हिस्सा न बने. रूस इस बात से भी यूक्रेन से नाराज है कि यूक्रेन के कारण अमेरिका की सेना और बाकी दुश्मन देश उसके बॉर्डर तक पहुंच रहे हैं.

बता दें कि यूक्रेन ने रूस से अपनी रक्षा करने के लिए अमेरिका से हथियारों का सौदा भी किया है.

क्या रूसी कार्रवाई को रोका जा सकता है?

रूस के राष्ट्रपति व्लादमिर पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से कई बार बात की है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रोन का कहना है कि पुतिन ने उनसे मैराथन वार्ता के दौरान वादा किया था कि संघर्ष को बढ़ाने में उनकी भागीदारी नहीं होगी.

व्हाइट हाउस ने जोर देते हुए कहा है कि सीमा पर रूस के पास साइबर हमले और अर्धसैनिक बलों सहित अन्य हथियार भी हैं. लेकिन पिछले दिनों जनवरी में 70 यूक्रेनी सरकारी वेबसाइटें बंद हो गईं थी, तो रूस ने यूक्रेन द्वारा लगाए गए आरोपों से इनकार किया कि इसके पीछे उसका हांथ नहीं था.

क्या यूक्रेन को मिल पाएगा पश्चिमी देशों का समर्थन?

अमेरिका और अन्य नाटो सहयोगी देशों ने स्पष्ट कर दिया है कि यूक्रेन में लड़ाकू सैनिकों को भेजने की उनकी कोई योजना नहीं है, बल्कि वे समर्थन की पेशकश कर रहे हैं.

पेंटागन ने युद्ध के लिए तैयार 8,500 सैनिकों को अलर्ट पर रखा है और जर्मनी, रोमानिया और पोलैंड में 3,000 अतिरिक्त सैनिकों को तैनात कर रहा है. अन्य नाटो सहयोगियों ने गठबंधन के पूर्वी हिस्से पर अपना समर्थन बढ़ा दिया है.

पोलैंड ने निगरानी ड्रोन, मोर्टार बम और पोर्टेबल वायु रक्षा प्रणालियों की पेशकश की है.

यूके, डेनमार्क, कनाडा, चेक (Czeck) गणराज्य और बाल्टिक गणराज्यों ने भी सुरक्षा सहायता की पेशकश की है.

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर रूस, यूक्रेन पर हमला करता है तो वह व्लादमिर पुतिन पर व्यक्तिगत प्रतिबंधों पर विचार करेंगे. यूके ने भी चेतावनी दी है कि क्रेमलिन और उसके आसपास के लोगों के पास छिपने के लिए कहीं जगह नहीं होगी.

शेयर मार्केट पर यूक्रेन संकट का असर

रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव के कारण भारत सहित वैश्विक बाजार में बिकवाली का दबाव देखने को मिल रहा है. यूक्रेन पर रूस के हमले की आशंका बढ़ने के बाद 14 फरवरी को शेयर बाजारों में भारी गिरावट दर्ज की गई और इसने भारत के प्रमुख सूचकांकों S&P, BSE सेंसेक्स और NSE निफ्टी-50 को भारी नुकसान पहुंचाया. दोनों सूचकांकों ने 10 महीनों में अपनी सबसे तेज गिरावट दर्ज की.

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Published: 15 Feb 2022,04:20 PM IST

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