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सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट
जवाब आप भी जानते हैं और मैं भी. तो मैं नहीं पूछूंगी कि हमारे बीच रहने वाले ये नेशनल लीजेंड्स, ये 'भगवान' क्यों चुप रहते हैं?
ये क्यों नहीं उन तमाम लोगों के लिए उदाहरण बनते हैं जो इनके मैच का टिकट खरीदने के लिए एक दिन भूखा रह जाते हैं, या बस इनकी एक झलक पाने के लिए एग्जाम मिस कर देते हैं. ये अपने फैन्स को जरूरी मुद्दों पर अपनी राय क्यों नहीं बताते ताकि उन्हें भी अपनी राय बनाने में मदद मिले. वो क्यों तब भी सिर्फ विज्ञापनों में नजर आते हैं, जब इनके चेहरों की जरूरत इससे कहीं ज्यादा के लिए पड़ती है.
क्योंकि कॉलिन कैपरनिक होने के लिए, न सिर्फ आपको एक रीढ़ की जरूरत है
बल्कि आपको अपने करियर को जोखिम में डालने के लिए तैयार रहने की भी जरूरत होती है. सब कुछ खोने के लिए आपको तैयार रहना पड़ता है.
हां, आप ये तर्क दे सकते हैं कि असहमति की आवाज बनना बाकी देशों में कहीं ज्यादा आसान है. लेकिन, आपको क्या लगता है ये कैसे हुआ होगा? मुहम्मद अली को उदाहरण बनना पड़ा ताकि दूसरे लोग फॉलो कर सकें, कैपरनिक ने आवाज उठाई और अपने पेशेवर करियर, कॉन्ट्रैक्ट्स और लाखों डॉलर खो दिए.
हमारे लिए वो बड़ा, महान, मार्गदर्शक, वो रोशनी कहां है जो नेतृत्व करना सिखाता है?
सचिन और विराट और कुंबले ने बड़े मुद्दों पर जो चुप्पी इस देश को पिछले एक दशक में दी है, रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट के बाद उनके ट्वीट इसकी भरपाई नहीं कर सकते. हमारे दिग्गज बोलते हैं. लेकिन रटा हुआ.
क्योंकि 'एक राष्ट्र के रूप में एकजुट रहने’ की अपील तब क्यों नहीं की जब इंसानों की लीचिंग गाय के नाम पर की जा रही थी
या भारतीयों की नागरिकता को लेकर धर्म या जन्म के क्षेत्र के आधार पर डराया जा रहा था
आप इन 280 कैरेक्टर्स का इस्तेमाल तब बोलने के लिए और हां, जान बचाने के लिए क्यों नहीं कर सकते थे? आप बदलाव ला सकते थे, क्योंकि आप हमारे बीच रहने वाले 'भगवान' हैं, आपमें वो शक्ति है
अगर आप किसी चीज में तर्क देखते हैं, तो शायद बाकी लोग भी फॉलो कर सकते हैं, लेकिन कम से कम बोलें तो. हो सकता है कि आपके ओहदे से कोई बोले तो लोग बात करेंगे, एक चर्चा शुरू होगी. तो कोई चर्चा शुरू कीजिए. हमें आपसे कॉपी पेस्ट से ज्यादा चाहिए. लोकतंत्र को लाइव करने में हमारी मदद कीजिए.
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