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संपत सरल से सुनिए शरद जोशी का व्यंग्य - ‘है भी, मगर नहीं है’

व्यंग्य संग्रह ‘जादू की सरकार’ के अंश ‘है भी, मगर नहीं है’ आज भी अपने देश की सटीक तस्वीर पेश करता है

मौसमी सिंह
वीडियो
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शरद जोशी के व्यंग्य संग्रह ‘जादू की सरकार’ का एक अंश व्यंग्यकार संपत सरल की आवाज में 
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शरद जोशी के व्यंग्य संग्रह ‘जादू की सरकार’ का एक अंश व्यंग्यकार संपत सरल की आवाज में 
(फोटो: Altered by Quint Hindi)

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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

लेखक, व्यंग्यकार और पत्रकार शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने वाले प्रमुख व्यंग्यकारों में से एक हैं. शरद जोशी जो लिख गए, लगता है कि हर वक्त के लिए मौजूं है. 21 मई, 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में पैदा हुए शरद जोशी हमें 5 सितंबर, 1991 में छोड़ गए थे. शरद जोशी की पुण्यतिथि पर पेश है आज के दौर के मशहूर व्यंग्यकार संपत सरल की आवाज में जोशी जी के व्यंग्य संग्रह 'जादू की सरकार' का एक अंश-'है भी, मगर नहीं है'

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कुछ समय तक सरकारी नौकरी करने के बाद शरद जोशी ने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया था. शरद जोशी ने कहानियों के साथ ही लेख, व्यंग्य, उपन्यास, व्यंग्य कॉलम, हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएं और संवाद भी लिखे. इनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी समस्याओं का बेबाक चित्रण मिलता है.

उनकी कालजयी रचनाओं में अंधों का हाथी, राग भोपाली, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, टीवी सीरियल में मालगुड़ी डेज, सिंहासन बत्तीसी, लापतागंज, फिल्मों में छोटी सी बात, उड़ान, उत्सव, गोधूलि जैसी कई कृतियां हैं.

है भी, मगर नहीं है

नल है, मगर पानी नहीं आता
हैंडपंप हैं, मगर चल नहीं रहे
विभाग हैं, काम नहीं करते
टेलीफोन लगाया, लगा नहीं
अफसर हैं, मगर छुट्टी पर हैं
बाबू है, मगर उसे पता नहीं
आवेदन है, मगर मंजूर नहीं हुआ
रिपोर्ट लिखाई, कुछ हुआ नहीं
जांच हुई थी, रिपोर्ट नहीं आई


योजना स्वीकृत, मगर बजट मंजूर नहीं
बजट स्वीकृत, रुपया नहीं आया
पद है, पर खाली है
आदमी योग्य था, तबादला हो गया
ऑफिसर ठीक है, मगर मातहत ठीक नहीं
मातहत तो काम करना चाहते हैं

पर ऊपर से ऑर्डर नहीं आता
मशीन आ गई, बिगड़ी पड़ी है
कारखाना है, मगर बिजली नहीं है
करंट है, तार खराब है
मशीन ठीक है, बिजली नहीं है
बिजली है, मगर तार खराब है
उत्पादन हो रहा है, मगर बिक नहीं है
मांग है तो पूर्ति नहीं
पूर्ति है तो मांग नहीं
यात्री खड़े हैं, मगर टिकट नहीं मिल रहा
टिकट मिल गया, ट्रेन लेट है
गाड़ी आई, मगर जगह न थी
जगह मिली, सामान रखा था
एयर का टिकट लिया, मगर वेटिंग लिस्ट में है
सीट कंफर्म है, फ्लाइट कैंसल हो गई
घर पहुंचे, तो मिले नहीं
मिले, मगर जल्दी में थे


तार भेजा, देर से पहुंचा
चिट्ठी भेजी, जवाब नहीं आया
आए, मगर आते ही बीमार हो गए
इंजेक्शन दिया, मगर कुछ फर्क नहीं पड़ा
अस्पताल गए, बेड खाली नहीं था
बेड पर पड़े हैं, कोई पूछ नहीं रहा
शिकायत करें, मगर कोई सुनने वाला नहीं
नेता हैं, मिल नहीं सके
सुन लिया, मगर कुछ किया नहीं
शिलान्यास हुआ, इमारत नहीं बनी
बिल्डिंग है, दूसरे काम में आ रही
काम चल रहा है, मगर हमें क्या फायदा?
स्कूल है, बच्चे को एडमिशन नहीं मिली
पढ़ने गए थे, बिगड़ गए
टीम भेजी थी, हार गई
प्रोग्राम हुआ, मगर जमा नहीं
हास्य का था, हंसी नहीं आई
पूछा था, बोले नहीं

खबर थी, अफवाह निकली

अपराध हुई, गिरफ्तारी न हुई

संपादक के नाम पत्र भेजा था, छपा नहीं

कविता लिखी, कोई सुनने वाला नहीं

नाटक हुआ, भीड़ न थी
पिक्चर लगी, चली नहीं

किताब छपी थी, बिकी नहीं

बहुत ढूंढी, मिली नहीं

आई थी, खत्म हो गई

कुर्सी पर बैठा है, मगर ऊंघ रहा है

फाइल पड़ी है, दस्तखत नहीं हो रहे

फॉर्म भरा था, गलती हो गई

क्या बोले, कुछ समझ नहीं आता

आवाज लगाई, किसी ने सुना नहीं

वादा किया था, भूल गए

याद दिलाया, तब तक उनका विभाग बदल गया

फोन किया, साहब बाथरूम में थे

दफ्तर किया, मीटिंग में थे

डिग्री मिल गई, नौकरी नहीं मिली

अनुभवी हुए, तो रिटायर हो गए

पैसा बहुत है, मगर ब्लैक का है

पूंजी जुटाई, मगर मशीन के भाव बढ़ गए

फ्लैट खाली है, किराए से दे नहीं रहे

बेचना है, खरीददार नहीं मिल रहा

लेना चाहते हैं, मगर बहुत महंगा है

कर्फ्यू हटाओ, तो फिर झगड़े हो गए

स्थिति नियंत्रण में, मगर खतरा बना हुआ है

आदमी हैं, मगर मनुष्यता नहीं रही

दिल हैं, मगर मिलते नहीं

देश अपना हुआ, मगर लोग पराए हो गए

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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