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तिरंगा,राष्ट्रगान और प्रदर्शन की पाठशाला,किसान आंदोलन में ‘स्कूल’

पाठशाला में कई बच्चे ऐसे हैं जो पहले कभी स्कूल ही नहीं गए.

शादाब मोइज़ी
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सावित्री बाई फुले पाठशाला में तिरंगा बनाकर दिखाते बच्चे
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सावित्री बाई फुले पाठशाला में तिरंगा बनाकर दिखाते बच्चे
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर- पूर्णेंदु प्रीतम

“आज कलम का वजन उठा लोगे, कल आपको पत्थर का वजन नहीं उठाना पड़ेगा.” गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में 12 साल के बच्चे के मुंह से निकली ये बात हमें उससे बात करने पर मजबूर कर देती है. 12 साल के संतोष को बड़े होकर एयर फोर्स में जाना है. उसे देश के लिए कुछ करना है. संतोष की तरह और भी कई बच्चे किसान आंदोलन की ‘छांव’ में पढ़ रहे हैं.

दरअसल, दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन जारी है, ऐसे में आंदोलन में अपने माता-पिता के साथ बच्चे भी आए हैं, आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है, इसी को देखते हुए एक सामाजिक संगठन ने गाजीपुर बॉर्डर पर 'सावित्री बाई फुले पाठशाला' की शुरूआत की है, ताकि बच्चों की पढ़ाई जारी रहे.

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इस पाठशाला में आंदोलन में आए किसानों के बच्चों के साथ-साथ आसपास के बच्चे भी पढ़ाई करते हैं.

सावित्रीबाई फुले पाठशाला के सदस्य महेंद्र यादव बताते हैं, "हम यहां कृषि और शिक्षा दोनों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, किसान आंदोलन भी जारी है और पढ़ाई भी, यहां करीब 70-80 बच्चे पढ़ाई करने आते हैं. यहां सिर्फ किसान ही नहीं कूड़ा बीनने या आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चे भी पढ़ने आते हैं. दो शिफ्ट में पढ़ाई होती है."

“कई बच्चे पहली बार करने आ रहे पढ़ाई

पाठशाला में मौजूद शिक्षक देव कुमार बताते हैं कि यहां बच्चों को स्टेशनरी का सामान दिया जाता है, फ्री में पेंसिल, पेपर, कलर और बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है. देव कहते हैं, “इन बच्चों को पढ़ाना मुश्किल काम तो है लेकिन अच्छा लग रहा है. इनमें से कई बच्चे तो स्कूल गए हैं या थोड़े किताब की दुनिया से वाकिफ हैं, लेकिन कुछ बच्चे कभी स्कूल ही नहीं गए. इसलिए थोड़ा मुश्किल है समझाना. यहां बच्चों को फ्री में पेंसिल, पेपर दिए जाते हैं. बच्चे भी अब खुद आने लगे हैं, और यही सबसे बड़ी कामयाबी है कि उन्हें पढ़ने में दिल लग रहा है.”

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