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वीडियो एडिटर- राहुल सांपुई
कैमरा- अभिषेक रंजन
“रिया करती थी काला जादू. सुशांत के पैसों पर था उसका काबू. कंगना ने शिवसेना को धोयाचीनी एप बंद होने पर चीन 'फूट-फूट' कर रोया.” बड़े-बड़े अक्षर, धारदार म्यूजिक, आग के उठते शोलों के बीच चीखता एंकर. ये सब कुछ टीवी चैनल आपको परोस रहे हैं और आप ने भी इसे बड़े ही मजे के साथ डकारा है, लेकिन इसी बीच एक बेकार सी, बिना किसी काम की खबर भी आई, जो शायद आपको दिखाया नहीं गया क्योंकि तर्क यही है कि आप ये सब देखना नहीं चाहते हैं.
खबर है कि पिछले 4 महीनों में 66 लाख व्हाइट कॉलर जॉब करने वाले मतलब सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, एकाउंटेंट समेत कई सेक्टर के पेशेवरों की नौकरियां चली गई. शहरों में रहने वाले हर दस में से एक शख्स बेरोजगार हो गया है.
इंडस्ट्रियल वर्कर से लेकर देश की इकनॉमी की रीढ़ Unorganised sector में काम करने वालों की कहानी और डरावनी है. जहां नौकरी के लिए ज्वाइंनिंग लेटर मिलना चाहिए था वहां युवाओं को 'आत्मनिर्भर' का 'क्रैश कोर्स' कराया जा रहा है, जहां बेरोजगारी पर आवाज बुलंद होनी चाहिए थी वहां रिया तू ने ये क्या किया और कंगना vs शिवसेना किया जा रहा है वहां हम तो पूछेंगे- जनाब ऐसे कैसे?
देश भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है. बेरोजगारी दर बढ़ती जा रही है. इसी बीच सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ताजा रिपोर्ट आई है, रिपोर्ट के मुताबिक,
मतलब पढ़े-लिखे सैलरीड क्लास की नौरकी स्वाहा हुई है. मतलब ये बहाना भी नहीं लगा सकते कि इन लोगों के पास डिग्री नहीं है तो नौकरी पर कौन रखता.
CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 के बाद से रोजगार अपने सबसे निचले स्तर पर है. सीएमआई ने यह सर्वे जारी किया है. यह सर्वे हर चार महीने में किया जाता है. सीएमआईई के मुताबिक,
देश में जॉब क्रिएशन का हाल भी काफी खसता है. पिछले वित्त वर्ष सिर्फ 1.70 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं. कोई ताज्जुब नहीं कि हर साल 2 करोड़ नौकरियों के आने का सपना देखने वाले देश के पढ़-लिखे युवा आए दिन कभी घंटी, कभी थाली बजाकर तो कभी दीए और मशाल जलाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. चलिए आपको वो बताते हैं जो टीवी चैनल आपसे छिपा रहे हैं.
अब आप कहेंगे ये सब कोरोना की वजह से हुआ है. चलिए इसपर भी आपकी आंखों पर चढ़ी पट्टी उतारते हैं. साल 2019, लोकसभा चुनाव. हिंदू-मुसलमान के मुद्दे के बीच उस वक्त भी बेरोजगारी के आंकड़े छिपा लिए गए थे. लेकिन central statistics office (सीएसओ) ने मोदी सरकार की ताजपोशी के अगले ही दिन बेरोजगारी के आंकड़े जारी कर कहा था कि भारत में बेरोजगारी की दर 45 साल में सबसे ज्यादा है. मतलब बेरोजगारी की बीमारी तो पुरानी है लेकिन कोरोना ने ICU में पहुंचा दिया है.
पिछले कुछ दिनों से #बेरोजगार_दिवस, #नौकरी_दो, #9Bje9minuteindia, #बेरोजगार_मांगे_रोजगार जैसे हैशटैग चल रहे हैं. लेकिन सरकार के पास कोरोना, ग्लोबल मंदी, लॉकडाउन का बहाना है. भले ही सरकार बेरोजगारी से निपटने के लिए 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज को हर बहस में ढाल की तरह इस्तेमाल करती हो लेकिन दरअसल यह एक तरह का लोन पैकेज था. लोगों को हाथ में पैसा चाहिए था. जब हाथ में पैसा होगा तो लोग खरीदारी करेंगे. लोग खरीदेंगे तो कंपनियां सामान बनाएंगी. और जब सामान बनाएंगी तो उन्हें बनाने वाले हाथ चाहिए होंगे यानी लोगों को नौकरी मिलेगी.
लेकिन खाली पॉकेट और माथे पर बेरोजगार का टैग लिए घूम रहे युवा जब बिहार चुनाव में बड़े-बड़े पोस्टर, लाखों रुपए की एलसीडी स्क्रीन और जुमलों की बोछार से सामना करेंगे तो पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?
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