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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा & संदीप सुमन
सवर्ण आरक्षण, कर्जमाफी और CBI-RBI की बड़ी-बड़ी खबरों के बीच एक और खबर है UPSC छात्रों के आंदोलन की. UPSC छात्रों के इस आंदोलन की खबरें जो मीडिया में चल रही हैं, उसे देखकर आपको ऐसा लग सकता है कि सिर्फ दिल्ली में ही ये प्रदर्शन चल रहा है. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है. यूपी के इलाहाबाद, बिहार के पटना, गुजरात के अहमदाबाद, कर्नाटक के बेंगुलरु जैसे तमाम शहरों के वो छात्र जो IAS, IPS बनने का ख्वाब देखकर अपनी जिंदगी के कई साल तैयारी में बिता देते हैं, वो ठगा महसूस कर रहे हैं. दिल्ली की सड़कों पर नारे लगाने, तख्तियां लेकर प्रदर्शन करने का मकसद इतना है कि देश की संसद और सियासतदानों तक आवाज पहुंच सके.
छात्र इस बात से नाराज हैं कि UPSC ने पिछले कुछ साल में परीक्षा के सिलबेस और नियमों में ऐसे-ऐसे बदलाव कर दिए, जिससे ये परीक्षा नहीं, एग्जाम सिस्टम का GST बन गया है. जीएसटी समझ रहे हैं न आप, जिसके बार-बार नियम-कानून और स्लैब बदलते रहते हैं. अब ये छात्र परीक्षा में और चांस दिए जाने की मांग कर रहे हैं. अपनी मांग क्विंट को समझाते हुए सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुटे और UPSC का इंटरव्यू दे चुके बिहार के अभिषेक बताते हैं कि
अब ये बदलाव हुए क्या-क्या, इसे आइए जानते हैं
दरअसल, UPSC ने सिविल सर्विसेज परीक्षा के सिलेबस में 2011 में एक बड़ा बदलाव किया,
2011 के बदलाव का असर ये हुआ कि इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट और साइंस बैकग्राउंड से आने वाले छात्र सिविल सर्विसेज की प्रारंभिक परीक्षा आसानी से पास करने लगे, जबकि ह्यूमैनिटीज बैकग्राउंड (इतिहास, भूगोल, राजनीति शास्त्र आदि) के छात्रों के सामने बड़ा बैरियर खड़ा हो गया. इस बात को लेकर भी छात्रों ने आंदोलन किया, सड़क पर उतरे....
आयोग ने दूसरा बड़ा बदलाव 2013 में किया. अब तक मेन एग्जाम में 2 ऑप्शनल सब्जेक्ट ( के कुल 4 पेपर) के साथ जनरल स्टडीज के पेपर (कुल 2 पेपर ) होते थे. अब मेंस एग्जाम से एक ऑप्शनल सब्जेक्ट हटा दिया गया और उसकी जगह जनरल स्टडीज के एक्स्ट्रा पेपर जोड़ दिए गए. इस तरह ऑप्शनल सब्जेक्ट की वैल्यू अचानक घट गई, जबकि जनरल स्टडीज का महत्व और बढ़ गया.
अब आते हैं साल 2015 पर आयोग ने अपनी 'भूल' को सुधारते हुए CSAT को सिर्फ क्वालीफाइंग कर दिया. पहले CSAT में हासिल अंक प्रारंभिक परीक्षा में जुड़ जाते थे, जबकि अब इसे सिर्फ क्वालीफाई करना जरूरी हो गया.
अब छात्रों का तर्क है कि साल 2015 जिनके लिए परीक्षा देने का आखिरी मौका था, उनका करियर प्रभावित हुआ. जिनके लिए 2016 या 2017 आखिरी मौका रहा, उनकी तैयारी का भी एक बड़ा हिस्सा आयोग के फैसले से प्रभावित हुआ. इसी ग्राउंड पर वे साल 2019, 2020 और 2021 में एक्स्ट्रा चांस दिए जाने की मांग कर रहे हैं.
लेकिन ये सारी बात आप जब सुन चुके हैं, तो शायद इस कविता का मतलब आपको समझ आ
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है.
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