Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गोरखपुर पुलिस को इतना छुट्टा हो जाने की छूट कैसे मिली?

गोरखपुर पुलिस को इतना छुट्टा हो जाने की छूट कैसे मिली?

बेस्ट पुलिस होने का दावा करने वाले अपने ही आरोपी पुलिसवालों को ढूंढ़ने में इतने दिन नाकाम क्यों रही?

शादाब मोइज़ी
वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p>(फोटो : क्विंट हिंदी)&nbsp;</p></div>
i
null

(फोटो : क्विंट हिंदी) 

advertisement

उत्तर प्रदेश इतना सुरक्षित है कि मंदिर घूमने का सपना सजाया, भगवान के दर्शन की तैयारी की लेकिन जा मिले पुलिस वाले 'यमराज' से.. और वो भी कहीं और नहीं. बल्कि राम राज का सपना दिखाने वाले सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ के घर में.. यानी गोरखपुर में.

गोरखपुर (Gorakhpur) में एक व्यापारी मनीष गुप्ता (Manish Gupta) की हत्या हुई है.. सीएम साहब कई बार कह चुके हैं कि अपराधी डर से प्रदेश छोड़कर भाग गए.. अपराधी का पता नहीं, लेकिन उत्तर प्रदेश में पुलिस वाले जरूर फरार हैं... पुलिस, पुलिस को ढूंढ़ रही है और पुलिस है कि पुलिस को मिल नहीं रही. पुलिस है कि हत्या पर झूठी कहानी बना रही, पुलिस है कि एफआईआर से अपने साथियों का नाम हटा रही, पुलिस है कि पीड़ित से मामला रफादफा करने को कह रही.. ऐसा हो रहा है तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में पुलिस पर एक शख्स को पीट-पीटकर मार डालने का आरोप है. कानपुर के रहने वाले मनीष गुप्ता अपने दोस्तों के साथ गोरखपुर का विकास देखने आए थे. लेकिन पुलिस के अपराध का विकास देखने को मिला. स्मार्ट पुलिस का हाल देखिए. हत्या के कई दिनों बाद भी आरोपी पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है. जब मामला तूल पकड़ा, तब जाकर सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की.

इस पूरे मामले में पुलिस, अधिकारी, सरकार सब घेरे में हैं. सबके गुनाहों की कहानी आपको बताते हैं.

पुलिस के कारनामे

जिस पुलिस से लोग उम्मीद करते हैं कि वो हत्यारों को पकड़ेगी वही हत्या की झूठी कहानी बनाने लगी. पुलिस की थ्योरी देखिए. सबसे पहले पुलिस ने मनीष की मौत को एक दुर्घटना की तरह बताया. गोरखपुर के एसएसपी विपिन टाडा ने कहा,

"रामगढ़ताल पुलिस एक होटल पर जाकर चेकिंग कर रही थी, यहां तीन संदिग्ध युवक अलग-अलग शहरों से आकर ठहरे थे. इसी दौरान एक युवक की हड़बड़ाहट में कमरे में गिरने से चोट लग गई. दुर्घटनावश हुई इस घटना के बाद पुलिस इलाज के लिए उसे अस्पताल ले गई, जहां उसकी मौत हो गई."

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस के झूठ को किया बेनकाब

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तो कुछ और ही कहानी कह रही थी. मनीष गुप्ता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक उनकी बर्बरता से पिटाई की गई थी. उनके शरीर पर गंभीर चोट के निशान मिले हैं. वहीं सिर पर गहरी चोट भी लगी है. मतलब एसएसपी की कहानी झूठी थी.

सवाल है कि एसएसपी मनीष टाडा ने झूठी कहानी क्यों बनाई? क्यों बिना सच जाने मीडिया के सामने चोट लगने की थ्योरी बनाई गई? किसे बचाना था? सोचिए, पुलिस कितने अनप्रोफेशनल तरीके से काम कर रही है.

यही नहीं, एसएसपी साहब का एक और कारनामा देखिए. एक वीडियो सामने आया. जिसमें पुलिस अधिकारी मामले को रफादफा करने की बात कह रहे हैं.

वीडियो में मृतक मनीष गुप्ता की पत्नी समेत परिजनों को गोरखपुर के डीएम विजय किरण आनंद और एसएसपी डॉक्टर विपिन टाडा के साथ बातचीत करते हुए देखा और सुना जा सकता है. वीडियो में दोनों अफसर मृतक के परिवारवालों को FIR दर्ज नहीं कराने के लिए समझा रहे हैं.

अब सवाल है कि दोनों ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या पुलिस का काम यही है? एक और बड़ा सवाल डीएम विजय किरण आनंद और एसएसपी डॉक्टर विपिन टाडा पर कोई एक्शन क्यों नहीं हुआ? कौन उन्हें बचा रहा है और क्यों?

अभी पुलिस वालों के एक और कारनामे देखिए. मृतक मनीष गुप्ता की पत्नी ने आरोप लगाए हैं कि FIR के लिए उन लोगों ने छह पुलिस वालों के खिलाफ शिकायत की थी, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने जबरन 3 नाम हटवा दिए. अब सोचिए कि ये मामला तो इतना तूल पकड़ चुका था फिर भी पुलिस अपराधियों को बचाने में लगी थी. अगर आम गरीब इंसान का मामला होगा तो पुलिस चुपके-चुपके क्या करती होगी. घटना के सोशल मीडिया पर वायरल होने और गंभीर आरोपों के बाद यूपी पुलिस की तरफ से बताया गया कि, फिलहाल 6 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया है. आगे की जांच जारी है.

साल 2021 में यूपी पुलिस पर लगे 5 मर्डर के आरोप

पुलिस के कुछ और कारनामे देखिए. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, साल 2021 में 5 मर्डर के आरोप यूपी पुलिस पर लगे हैं.

फरवरी 2021 में जौनपुर में कृष्ण यादव नाम के एक व्यक्ति को लूटपाट के एक मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था. लेकिन हिरासत में उसकी मौत हो गई. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI को जांच अपने हाथ में लेने के निर्देश दिए. कोर्ट ने ये संकेत देते हुए निर्देश जारी किये थे कि, वरिष्ठ अधिकारी आरोपी पुलिसकर्मियों को बचाने और सबूत मिटाने में शामिल थे.

इसी तरह इसी साल मार्च में अंबेडकर नगर से SWAT टीम ने आजमगढ़ के जियाउद्दीन को कथित तौर पर हिरासत में लिया था, जिसके बाद उसकी मौत हो गई और SWAT प्रभारी समेत 8 पुलिसकर्मियों पर हत्या का आरोप लगा. जियाउद्दीन के परिवार ने आरोप लगाया कि जब वो अपने रिश्तेदार के यहां जा रहा था तब पुलिस ने हिरासत में लेकर उसे टॉर्चर किया, जिससे जियाउद्दीन की मौत हो गई.

यही नहीं साल 2018 मे नोएडा में एक सब इंस्पेक्टर ने जितेंद्र यादव नाम के एक जिम ट्रेनर का फर्जी एनकाउंटर किया. मामला प्रोमोशन की लालच का था. जितेंद्र बच गए लेकिन बिस्तर पर पहुंच गए.

अब आपको पुलिस के कामकाज के कुछ आंकड़े देते हैं..

मार्च 2017 के बाद से, जब से उत्तर प्रदेश में बीजेपी सत्ता में आई, यूपी पुलिस ने 8,472 मुठभेड़ों में 3,302 कथित अपराधियों को गोली मारकर घायल किया है. इन मुठभेड़ों में मरने वालों की संख्या 146 है. इनमे से कई पर इनाम थे, लेकिन जब पुलिस इस तरह लोगों को मारेगी तो एनकाउंटर पर सवाल उठेंगे. अगर पुलिस को ही कथित इंसाफ करना है तो अदालत की जरूरत ही क्या.

उत्तर प्रदेश में मनीष गुप्ता की मौत ने एक बार फिर पुलिस के स्याह रूप को सामने लाया है.

सवाल है कि पुलिस वालों को गुनाह करने की ताकत कहां से मिल रही है? क्यों अब तक एसएसपी डीएम पर एक्शन नहीं हुआ? बेस्ट पुलिस होने का दावा करने वाले अपने ही आरोपी पुलिसवालों को ढूंढ़ने में इतने दिन नाकाम क्यों रही? अदालत के रहते हुए ठोक देने की नीति क्यों? क्या इसी छूट के कारण यूपी पुलिस छुट्टा हो गई है?

खाली ऐलान कर देने से की गुनहगार को सजा मिलेगी, पूरी गड़बड़ी ठीक नहीं होगी. होनी होती तो गोरखपुर हत्याकांड के हल्ले के बीच ही बुलंदशहर का एक पुलिसवाला दूसरे इलाके में जाकर कारोबारी को उठा न लाता, बेतरह पीटता नहीं. जहां मूल गलती है उसे ठीक नहीं करेंगे तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT