Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019UP पुलिस पर क्यों हो रहे हमले? ये है कड़वी सच्चाई

UP पुलिस पर क्यों हो रहे हमले? ये है कड़वी सच्चाई

UP पुलिस खुद सुरक्षित नहीं तो कैसे करेगी महिलाओं की सुरक्षा

शादाब मोइज़ी
वीडियो
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(फोटो: कामरान अख्तर/क्विंट हिंदी)
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(फोटो: कामरान अख्तर/क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर- राहुल सांपुई

कैमरा- शिव कुमार मौर्या

  • कासगंज में शराब माफिया का पुलिस पर हमला, कॉन्स्टेबल की हत्या
  • मथुरा में शराब माफिया पर छापा मारने गई पुलिस टीम पर हमला, सब इंस्पेक्टर समेत 2 पुलिसवाले घायल
  • होली के दौरान विवाद, बागपत में पुलिस वाले पर हमला

ये वो कुछ हेडलाइन हैं जिसमें सिर्फ यूपी पुलिस पर हुए हमले का जिक्र है. मतलब यूपी में अब 'ठोक' देने की नीति गुंडे और अपराधी भी अपना रहे हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध का हाल भी बुरा है. यूपी में अगर पुलिस अपनी भी सुरक्षा नहीं कर पाएगी तो आम लोग तो पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

योगी सरकार के 4 साल पूरे

19 मार्च 2021 को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के 4 साल पूरे हो गए हैं. 4 साल पूरे होने के मौके पर सरकार बार-बार अपराध और अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति का जिक्र कर रही है. लेकिन अपराधियों से आम जनता तो दूर पुलिस भी बच नहीं पा रही है.

2 जुलाई 2020 को कानपुर में गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने गए आठ पुलिस कर्मियों का शहीद होना या उससे पहले 3 दिसंबर 2018 को बुलंदशहर में कथित गौकशी मामले में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या. या अभी हाल ही में कासगंज में सिपाही देवेंद्र सिंह की हत्या का मामला हो.

अब भले ही पुलिस इन घटनाओं के बाद मुजरिमों को ‘ठोक’ दे रही हो, लेकिन सवाल जस का तस है. क्या इन सबसे क्राइम रुक जाएगा? शायद नहीं. चलिए आपको पुलिस के हालात की कुछ कड़वी सच्चाई बताते हैं.

2018 और 2019 में यूपी में देश के किसी भी राज्य से ज्यादा महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए. 2019 में देश में महिलाओं के खिलाफ कुल 3,91,601 मामले सामने आए, जिसमें से सिर्फ यूपी में 59853 मामले दर्ज हुए हैं, मतलब देश में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध का करीब 15 फीसदी. जबकि साल 2018 में यूपी 59,445 मामले दर्ज किए गए थे और 2017 में 56011.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में साल 2017 में अपराध के 3,10,084 मामले दर्ज हुए थे, वहीं ये 2018 में बढ़कर 3,42,355 हो गए और 2019 में 3,53,131.

यूपी सरकार की दलील है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां आबादी ज्यादा है लेकिन आबादी ज्यादा है तो ज्यादा पुलिस क्यो नहीं?

गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने 16 मार्च 2021 को लोकसभा में बताया कि 1 जनवरी, 2020 तक देश में 5,31,737 पोस्ट पुलिस डिपार्टमेंट में खाली थे, जिसमें सबसे ज्यादा खाली पोस्ट उत्तर प्रदेश में हैं. ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (BPR & D) के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में पुलिस की स्वीकृत पद 26,23,225 है, जबकि असल में सिर्फ 20,91,488 पोस्ट पर ही भर्ती हुई. अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां स्वीकृत पद 4,15,315 थी, लेकिन असल में 3,03,450 पोस्ट भरे हुए हैं और 1,11,865 पद खाली हैं. मतलब पुलिस डिपार्टमेंट में करीब 27 फीसदी लोगों की कमी है.
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संयुक्त राष्ट्र कहता है कि एक लाख की आबादी पर कम से कम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए. यूपी में एक लाख की आबादी पर स्वीकृत पद है 182 और असल में तैनात हैं 152.

महिलाओं के लिए कितना सुरक्षित यूपी?

पिछले कुछ दिनों में उन्नाव से लेकर कानपुर में महिलाओं के साथ हुई बर्बरता को आंकड़े में नहीं समेटा जा सकता है. हाथरस में रेप पीड़िता की मौत के बाद रात में ही बिना उसके परिवार के सहमति शव जलाने का मामला हो या इसी साल दो मार्च की रात गोरखपुर में एक युवती से गैंगरेप मामले में पुलिस का कार्रवाई नहीं करना, और तो और एफआईआर तब दर्ज हुआ जब रेप का वीडियो वायरल हो गया और बड़े अधिकारियों को हस्तक्षेप करना पड़ा.

पुलिस रिफॉर्म की जरूरत

पुलिस सुधारों को लेकर कई कमीशन और कमेटी बनी. जैसे गोर समिति, पद्मनाभैया समिति और मलीमठ समिति. इन आयोगों और समितियों ने पुलिस रिफॉर्म को लेकर कई बातें कही हैं. यही नहीं सितंबर, 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों की आनाकानी को देखते हुए पुलिस सुधारों के लिए निर्देश जारी किये थे, लेकिन उन पर आज तक कागजी खानापूर्ति से आगे कोई बात नहीं हुई है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने 2020-21 के बजट में 2100 करोड़ रुपए पुलिस, फायर डिपार्टमेंट और फॉरेंसिक लैब के लिए आवंटित किए हैं, जिसमें करीब 200 करोड़ पुलिस मॉडर्नाइजेशन के नाम पर है. इससे पहले 2018-19 के बजट में भी करीब 200 करोड़ के करीब पुलिस मॉडर्नाइजेशन के नाम पर आवंटित हुए थे.

लेकिन फिर भी पुलिस की सोच महिलाओं के मामले में मॉडर्न होती नहीं दिख रही है और न ही अपराध पर लगाम लगता दिख रहा है.

एनकाउंटर पर वाह-वाही क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक साल 2017 से लेकर अब तक यूपी पुलिस ने एनकाउंटर में 135 लोगों को मार गिराया है और 3039 अपराधी घायल हुए है. साथ ही 16661 को गिरफ्तार किया है. वहीं इन एनकाउंटर में 13 पुलिस वालों की जान गई और 1093 पुलिस वाले घायल हुए हैं.

सरकार एनकाउंटर को अपनी सक्सेस स्टोरी के तौर पर पेश करती आई है. लेकिन शायद पुलिस और सरकार एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट का बयान नहीं पढ़ पाई है. सुप्रीम कोर्ट ने Om Prakash and others v. State of Jharkhand 2012 केस की सुनवाई में कहा था,

‘सिर्फ इसलिए कि कोई आरोपी खतरनाक अपराधी है, पुलिस को उसे जान से मार देने का अधिकार नहीं मिल जाता. पुलिस का काम आरोपी को गिरफ्तार करना और उन पर मुकदमा चलाना है. इस अदालत ने बार-बार बंदूक का ट्रिगर दबाने में आनंद पाने वाले पुलिस वालों चेतावनी दी है, जो अपराधियों को मार गिराने के बाद घटना को एनकाउंटर का नाम दे देते हैं.ऐसी हत्याओं की निश्चित तौर पर भर्त्सना की जानी चाहिए. अब इन सबके बीच सबसे अहम बात ये है कि पुलिस का काम जनता के बीच अपराध रोकना है, जनता को डराना या इंसाफ से दूर करना नहीं.’

अब पुलिस डिपार्टमेंट को आत्मंथन की जरूरत है. साथ ही पुलिस डिपार्टमेंट में खाली पदों को भरने से लेकर ट्रेनिंग, जेंडर सेंसेटाइजेशन, ओवर वर्क, पुलिस रिफॉर्म और सरकार की नहीं जनता की पुलिस बनने का वक्त है. पुलिस और राजनीतिक मैच फिक्सिंग का विकेट गिराने की जरूरत है. कानून का धौंस नहीं बल्कि कानून की ताकत बताने की जरूरत है. धर्म और जाति के आधार पर कार्रवाई की नहीं बल्कि 'सबका साथ, सबकी सुरक्षा और सबका विश्वास' के साथ काम करने की जरूरत है. नहीं तो लोग पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

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