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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
खून में लथपथ पुलिस वाले, गोलियों की आवाज, पुलिस के आने से पहले गुंडे हथियारों से लैस, पुलिस पर ताबडतोड़ फायरिंग, फिर अपराधियों का भाग जाना, ये न गैंग्स ऑफ वासेपुर, न मिर्जापुर वेब सीरीज का सीन नहीं है, ये कानपुर की असली वारदात है. 3 जुलाई 2020. उत्तर प्रदेश के कानपुर का बिकरू गांव, कुख्यात अपराधी ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर 8 पुलिस वालों को अपनी गोली का शिकार बना दिया.
उत्तर प्रदेश पुलिस की एक टीम हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को पकड़ने गई थी, लेकिन इससे पहले ही पुलिस वालों पर विकास दुबे के लोगों ने हमला कर दिया.दुबे की तैयारी देखकर कहा जा सकता है उसे पुलिस रेड की खबर थी. मतलब जिस विकास दुबे पर 60 आपराधिक मामले दर्ज हैं उसकी पुलिस महकमे में इतनी पैठ थी की उसे खबर पहले ही मिल जाए?
कोई ताज्जुब नहीं कि 2001 में इसी बीजेपी की सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला की थाने में घुसकर हत्या करने का आरोप लगने के बाद भी दुबे का कुछ न बिगड़ा और अब उसने आठ पुलिसवालों को शहीद कर दिया. आज उस योगी सरकार की पुलिस विकास दुबे को तलाश रही है, जो चिल्ला-चिल्ला कर कहती है कि अपराधी या तो जेल में हैं या प्रदेश छोड़ कर भाग गये हैं. सवाल है कि फिर क्यों विकास दुबे ने ये हिमाकत की.
आज ऑपरेशन ददुआ याद आ रहा है, जब माया सरकार ने ददुआ को मार कर उसका 40 साल का साम्राज्य उखाड़ फेंका था. ये वही ददुआ था जिसे हर सरकार ने संरक्षण दिया था. ददुआ को मारकर लौट रही पुलिस टीम पर हमला कर के ददुआ के चेले ठोकिया डकैत ने आधा दर्जन से ज्यादा पुलिस वालों को मौत के घाट उतार दिया था. कहानी फिर वही है, बस माफिया बदल गया है, तब ददुआ नाम था, अब नाम है विकास दुबे, तब माया सरकार थी और अब सरकार है योगी आदित्यनाथ की. यूपी में अपराधियों का राजनीतिक लगाव पुराना रहा है और फेहरिस्त बड़ी लंबी है.
1985 में चिल्लूपार विधानसभा सीट तब चर्चा में आ गई, जब हरिशंकर तिवारी ने जेल के अंदर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीत लिया. कहते हैं पूर्वांचल में राजनीति का अपराधीकरण गोरखपुर से शुरू हुआ था तो हरिशंकर तिवारी इसके पीछे थे. 80 के दशक में गोरखपुर में तिवारी के खिलाफ दर्जनों मामले दर्ज हुए. हत्या, रंगदारी, किडनैपिंग. हरिशंकर तिवारी लगातार 22 साल तक चिल्लूपार विधानसभा सीट से MLA बने रहे. बीएसपी, एसपी और बीजेपी हर सरकार में मंत्री रहे.
चार बार विधायक और दो बार सांसद. डीपी यादव ने 1970 में अवैध शराब का कारोबार शुरू किया. अपराध की दुनिया में ग्राफ बढ़ता गया, अपराध की फाइल दबती गई. 1992 में उस पर दादरी के विधायक महेंद्र भाटी की हत्या का आरोप लगा. फिर भी समाजवादी पार्टी ने विधायक बनाया तो बीजेपी ने राज्यसभा सांसद, लेकिन कुछ दिन बाद बीजेपी ने दूरी बना ली.
पूर्वी यूपी के वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर और मऊ में आज भी अच्छा खासा दबदबा है. अपराध के जगत से राजनीति का सफर तय करने वाले अंसारी मऊ विधानसभा क्षेत्र से पांचवीं बार विधायक हैं. अंसारी पर हत्या, किडनैपिंग और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं.
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, यूपी की राजनीति में 1993 में एंट्री ली. तब से लेकर अब तक विधायक बने हुए हैं. उन पर डीएसपी जियाउल हक सहित कई लोगों की हत्या का आरोप है. कल्याण सिंह सरकार में मंत्री रहे. पूरे प्रतापगढ़ इलाके में धौंस है.
1980 के करीब राजनीति शुरू की. कांग्रेस ब्लॉक प्रमुख बने, ज्ञानपुर सीट से 2002, 2007 और 2012 में विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट से जीता. विजय मिश्रा के ऊपर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. रौब ऐसा कि 2017 विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद चुनाव जीते.
अतीक अहमद जब पहली बार इलाहाबाद पश्चिम से चुनाव लड़ रहे थे तब हाईकोर्ट के मशहूर युवा वकील जैनुल आबदीन जनता दल के टिकट से चुनाव की तैयारी कर रहे थे, लोग उनकी जीत तय मान रहे थे. लेकिन नोमिनेशन से पहले जैनुल आबदीन की हत्या हो गई और इलाहाबाद को अतीक अहमद नाम का विधायक मिला. 2004 में फूलपुर से सपा सांसद बने. कई गंभीर मामले हैं. फिलहाल जेल में हैं.
सियासत और जुर्म का कॉकटेल. पूर्वांचल का वो माफिया जिसे करीब करीब हर राजनीतिक दल ने गले लगाया. कांग्रेस में रहे, बीजेपी सरकार में मंत्री बने. जेल से भी चुनाव जीता. फिलहाल कवियित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे.
तो ये है उत्तर प्रदेश की सियासत और क्राइम की दोस्ती. क्या इस बार 8 पुलिसवालों की जान दुश्मन यही दोस्ती बनी. आशंका तो यही है. पुलिस कह रही है दुबे को पकड़ लेगी. ऐसा हुआ तो भी कोई और 'विकास' कर जाएगा. सियासत और अपराध के कनेक्शन को खत्म किए बिना. खतरा बना रहेगा.
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Published: 04 Jul 2020,04:56 PM IST