advertisement
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ (Meerut) में सबसे बड़े कैंची व्यापारियों का हाल बेहाल है. कैंची बनाने वाले और व्यापारियों का कहना है कि हमें परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है. उन्होंने बताया कि बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम करना होता है, हमें गर्मियों में आग के सामने काम करना पड़ता है, जिससे बहुत मुश्किल होती है. बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम करने से सांस की बीमारी हो जाती है.
द क्विंट से बात करते हुए मेरठ के 'परमात्मा कैंची' के प्रोपराइटर सनी कंसल कहते हैं -
उन्होंने कहा कि कैंची अगर 5 सौ रूपए में बिके तब भी बहुत सस्ती है, लेकिन यह 100 और 150 रूपए में बिकती है. आज से 4-5 साल पहले यहां से ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका भी माल जाता था, लेकिन आज हम फेल हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि तीन साल हो चुके हैं मैंने किसी एक्सपोर्टर को माल नहीं दिया है.
इस पर सनी कंसल ने कहा- नहीं, चुनाव से कैंची बाजार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि कैंची इंडस्ट्री चुनाव का मुद्दा नहीं है. जो मुसलमान वर्कर्स हैं मुसलमान कैंडीडेट को वोट करेंगे और जो हिन्दू हैं वो बीजेपी को वोट करेंगे. चुनाव से हमारे कारोबार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.
मेरठ के कैंची बनाने वाले सैफुद्दीन कहते हैं कि कैंची का पीतल पहले 300 रुपए में मिलता था और अब 500 या 550 रुपए में मिलता है. लोहा पहले 40 रुपए था और आज 60-70 रुपए किलो में मिलता है. कैंची में लगने वाले मैटेरियल की मंहगाई डबल हो चुकी है.
कैंची बनाने वाले मुजम्मिल कहते हैं कि चीन के सामानों ने हमारे कारोबार पर असर डाला है. हम बैकफुट पर आ चुके हैं क्योंकि चीन के कैंचियों की कीमत कम है और हल्की भी है.
मेरठ की एक कैंची फैक्ट्री में वर्कर मिराजुद्दीन कहते हैं कि पहले हम सारा दिन काम करते थे लेकिन आज सिर्फ 4-5 घंटे का काम रह गया है, जिससे हम लोगों के लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया है.
उन्होंने बताया कि हमें बिना किसी सुरक्षा उपकरण के हमें काम करना होता है. टेक्नोलॉजी की कमी के कारण भी कैंची बाजार पर बुरा असर पड़ रहा है.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)