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उत्तराखंड (Uttarakhand) के पौड़ी जिले के एक हाई स्कूल के 17 वर्षीय छात्र हिमांशु और उनके दो दोस्तों को स्कूल जाने के लिए 5 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें एक घंटे का वक्त लगता है. उनके रास्ते पहाड़ियों से होते हुए जाते हैं. उनका कहना है कि भारी बारिश होने पर हम घर लौटने के लिए मजबूर हो जाते हैं. यहां पर काफी ठंड भी होती है और इस दौरान सुबह स्कूल जाना होता है.
बिरमोली के पहाड़ों की चोटी के गांव से हिमांशु के साथ उनके दो दोस्त आयुष और आकाश भी स्कूल जाते हैं. दोनों 12 वीं क्लास में हैं, और उनके एग्जाम होने वाले हैं.
आयुष का कहना है कि कुछ साल पहले, कंडाखल के स्कूल में पूरी तरह से स्टाफ नहीं था. हालांकि अब स्थिति बेहतर है और तीनों हर हफ्ते 5 किलोमीटर पैदल चलते हैं जिससे उनकी पढ़ाई अच्छे से हो सके.
ऐसा नहीं है कि चाक्यूं के लिए कोई रास्ता नहीं है लेकिन, सड़क संकरी है और कई जगहों पर उखड़ी हुई है. कई जगहों पर सड़क सिर्फ पत्थरों से बनी है.
इस शॉर्टकट में न केवल ढलानों के साथ फिसलन है बल्कि बार-बार धाराओं का सामना भी करना होता है जो मानसून के दौरान पार करने के लिए जोखिम भरा होता है.
उनकी केवल एक ही मुश्किल नहीं है, कोरोना महामारी की लगातार तीन लहरों के कारण पिछले दिनों स्कूल बंद होने की वजह से तीनों को ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा. हिमांशु कहते हैं कि हमारे यहां नेटवर्क की बहुत सारी प्रॉब्लम हैं. ज्यादातर छात्रों के पास घर पर सिर्फ एक फोन होता है, जिससे ऑनलाइन पढ़ाई मुश्किल से हो पाती है. हम अक्सर इस वजह से पढ़ाई से चूक जाते हैं.
यहां पर केवल छात्रों को ही मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता है उन्हें पढ़ाने वाले टीचर्स को भी हर दिन एक कठिन काम का सामना करना पड़ता है. कुछ शिक्षक कोटद्वार शहर से आते हैं, बिरमोली से 80 किलोमीटर के सफर में दो घंटे लगते हैं.
एक घंटे से अधिक समय तक चलने के बाद, तीनों आखिरकार चाक्यूं में अपने स्कूल पहुंचते हैं. स्कूल के गेट पर डार्ट लगाने से पहले आयुष कहते हैं कि हमें उम्मीद है कि सरकार हमारे घर के पास में एक स्कूल बनाएगी, ताकि हमारे भाई-बहनों को परेशानी न हो.'
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