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(ये कॉपी 2019 में बनी थी. मुहर्रम पर इसे दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.)
वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है. इसी महीने में ऐसी कई सारी चीजें हुई, जिसने इस्लामिक इतिहास और मुसलमानों की जिंदगी में बहुत कुछ बदल दिया. कहा जाता है कि इसी महीने में आदम अलैहिस्सलाम जिन्हें कुछ लोग एडम कहते हैं वो पैदा हुए थे. इनके अलावा और भी कई सारे प्रोफेट और पैगम्बर पैदा हुए थे. लेकिन इन सबके अलावा शिया मुसलमान इसे 'गम का महीना' कहते हैं. सवाल ये है कि इसे गम का महीना क्यों कहते हैं?
दरअसल, इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन मुहर्रम के इसी महीने की 10 तारीख को इराक के कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे, उनके साथ 71 लोग और थे, जिन्हें यजीद की फौज ने मार दिया था. इसमें इमाम हुसैन के 6 महीने के बेटे अली असगर भी थे.
इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद की बेटी फातिमा और हजरत अली के बेटे थे. हजरत अली को शिया मुसलमान अपना पहला इमाम मानते हैं, मतलब लीडर और सुन्नी मुसलमान अपना चौथा खलीफा.
मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? इसकी डिटेल जानने के लिए हम थोड़ा इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, हम तारीख के उस हिस्से में चलते हैं, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का राज था. ये खलीफा पूरी दुनिया के मुसलमानों के प्रमुख नेता होते थे.
पैगंबर मोहम्मद के दुनिया से गुजर जाने के लगभग 50 साल बाद दुनिया में जुल्म, अत्याचार का दौर आ गया था. सीरिया के गर्वनर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, लेकिन वो करप्ट और तानाशाह था. तब इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया. इससे नाराज यजीद ने अपनी सेना से कहा कि जो उनका हुक्म ना माने उसका सर कलम कर दो.
इमाम हुसैन की शहादत के अलावा उनकी बातें आज भी बहुत कुछ सिखाती हैं.. उनकी बातों में अच्छी सोसाइटी बनाने का मंत्र छिपा है.
इज्जत के साथ मरना... जिल्लत के साथ जिंदगी गुजारने से बेहतर है
अक्ल उस वक्त तक कामिल (पूरा) नहीं है, जब तक हक की पैरवी ना की जाए
सच के रास्ते पर रहो चाहे वो रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों ना हो..
बेहतरीन शासक या राजा वो है, जो जुल्म को मिटाए और इंसाफ को जिंदा करे
अपने भाई या साथी के बारे में वो बातें उनके पीठ पीछे कहो जो तुम खुद के लिए सुनना पसंद करते हो
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