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त्रिपुरा से लेकर तमिलनाडु तक और उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक देश में महापुरुषों की मूर्तियां गिराने का एक खतरनाक चलन चला है. संसद से लेकर सड़क तक बवाल मचा है.
त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार बनने के बाद बेलोनिया सब डिविजन में रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति को गिराया गया. उसके बाद तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति के जनक और दलितों के आदर्श माने जाने वाले पेरियार की मूर्ति पर हथौड़ा चला.
कोलकाता में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति की शामत आई, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की मूर्ति तोड़ दी गई.
सिलसिले को देखने पर लगता है कि मामला डिजाइन के तहत है. क्या बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव का ट्वीट मजाक में था, जिसमें वो कहते हैं कि लेनिन की मूर्ति त्रिपुरा में गिराई जा रही है रशिया में नहीं.
हालांकि ट्वीट बाद में हटा लिया गया लेकिन वो अपना काम कर चुका था. पेरियार की मूर्ति गिरने से पहले भी बीजेपी के नेता एच राजा ने पहले ही उसकी घोषणा कर दी थी.
वीएचपी के विनोद बंसल ने तो आग में घी नहीं, पेट्रोल का पूरा ड्रम उड़ेल दिया. ट्वीट कर कहा कि क्रूर शासकों के गुलामी के चिन्हों को भारत की जनता आखिर कब तक ढोएगी? सेक्यूलरिस्टों का बस चलता तो स्वतंत्रता के बाद रानी विक्टोरिया, जॉर्ज पंचम, साईमन जैक आदि को भारत में पूज रहे होते.
नहीं ये सिर्फ गुस्सा नहीं है. ये एक विचारधारा की दूसरी विचारधारा से नफरत का नंगा नाच है.
लव जिहाद और गोरक्षा के नाम पर हत्याएं हो रही हैं. पहलू खान या जुनैद को तो भूले नहीं होंगे आप.
कोई कह सकता है कि केंद्र सरकार इन मसलों को लेकर चिंतित है. आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मूर्ति गिराने की घटनाओं की कड़ी निंदा की है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं को ऐसी घटनाओं से दूर रहने की कड़ी चेतावनी दी है.
लेनिन की मूर्ति गिरने के करीब 48 घंटे बाद हुई प्रधानमंत्री की दखलंदाजी के बावजूद मेरठ में अंबेडकर का मूर्ति भंजन तो कुछ और ही कहता है.
अगर ऐसा है तो ये देश के लिए बेहद खतरनाक है. इस संस्कृति को हवा देने वालों को समझना होगा कि गुंडों की कोई विचारधारा नहीं होती.
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