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ये जो इंडिया है ना, यहां, रुड़की में 26 अप्रैल को नफरत की महापंचायत नहीं हुई. आनंद स्वरूप और सिंधु सागर जैसे लोगों को नफरती भाषण की अनुमति नहीं मिली. उन्हें हिरासत में ले लिया गया. यतीन्द्रानंद गिरि, प्रबोधानंद और परमानंद महाराज जैसे अन्य नफरत फैलाने वाले भी नजर नहीं आए. इस बार, उत्तराखंड पुलिस सिर्फ खड़ी रहकर देखती नहीं रही. उन्होंने दिसंबर 2021 को हरिद्वार (Haridwar) में हुए 'नफरती संसद' को दोहराने की अनुमति नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट भी चुप नहीं रहा, कोर्ट ने उत्तराखंड के शीर्ष अधिकारियों को कार्रवाई का आदेश दिया.
नफरत से निपटने के लिए बस इतना ही जरूरी है कि कानून का शासन सुनिश्चित कीजिए.
ये जो इंडिया है ना...यहां, जब हमारी अदालतें, हमारी सरकार, हमारी पुलिस, अपना काम करती है, तब नफरत को मौका नहीं मिल पाता है.
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