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अगला पीएम बनने की रेस में नरेंद्र मोदी कौन-से कार्ड खेल सकते हैं?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि दूसरा विकल्प क्या है? अगर मोदी नहीं, तो कौन? अगर बीजेपी नहीं तो कौन?

राजेश जैन
नजरिया
Updated:
2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले राजेश जैन
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2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले राजेश जैन
(फोटो: NAYI DISHA)

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जैसा कि आपने मेरी पिछली व्याख्या में देखा था, अगले चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने रहने के लिए यह सुनिश्चत करना होगा कि एनडीए के सहयोग के साथ बीजेपी को 230 से अधिक सीटें मिले. 230 से कम सीटें हासिल होने पर बीजेपी में अंदरूनी संर्घष देखा जा सकता है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने खराब प्रर्दशन की नैतिक जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता होगी. इसके अलावा कई क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी, जिनका समर्थन देने के लिए अपनी कुछ शर्तें होंगी.

मेरा विश्वास है कि बीजेपी को तकरीबन 215 से 225 सीटें हासिल होंगी, जिससे बीजेपी को 272+ के जादुई आंकड़े को हासिल करने के लिए कई तरह के श्रृंखलाबद्ध कार्यों को अंजाम देना होगा. इसे हासिल करने के लिए बीजेपी क्या करेगी?

यह कुल वह 10 कार्ड है, जिसे बीजेपी अगले चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाए रखने के लिए खेल सकती है.

1. करिश्मा कार्ड

राजनैतिक गलियारों में नरेंद्र मोदी एक मात्र राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रसिद्ध हैं. हर महत्वाकांक्षी दावेदार को व्यवस्थित रूप से बीजेपी के भीतर और बाहर खत्म कर दिया गया. प्रधानमंत्री अपने समर्थकों के बीच एक पंथ की तरह जाने जाते हैं.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि- दूसरा विकल्प क्या है? अगर मोदी नहीं, तो कौन? अगर बीजेपी नहीं तो कौन?

यहां तक की राज्य के चुनाव भी प्रधानमंत्री के नाम पर लड़े जा रहे हैं. इतिहास का चक्र एक बार फिर 1970 और इंदिरा गांधी के काल में पहुंच गया है. इसलिए यह व्यक्तिगत ज्यादा और बाकी सब कम हो गया है. हालांकि लोगों में अंसतोष की भावना अधिक है लेकिन इतना गुस्सा नहीं है कि आम जनता किसी और को चुने.

सवाल यह है कि क्या करिश्मा के आधार पर 2014 की तरह अधिक से अधिक लोगों को बीजेपी को मतदान देने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा या वह घर पर ही रहेंगे? सबसे ज्यादा ध्यान विशिष्ट चयनकर्ताओं पर होगा विशेषकर ग्रामीण महिलाओं और पहली बार मतदान करने वालो पर.

2. कांग्रेस कार्ड

चुनाव विकल्पों का खेल है. मतदाताओं को मौजूदा विकल्पों में से चयन करना होता है. भारत में अधिकतर मतदाताओं के लिए, यह चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहता है. इसलिए बीजेपी को मतदाताओं की नजर में अच्छे बने रहना है और यह याद दिलाना है कि कांग्रेस भारत के लिए किस तरह खराब रही है.

इसलिए कांग्रेस पर अलग-अलग तरह के हमले बढ़ सकते हैं. इसके अलावा एक और मुद्दा यह होगा कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद देश को समृद्धि की राह पर ले जाने के लिए बीजेपी का रिकॉर्ड.

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3. भ्रष्टाचार कार्ड

कांग्रेस को लक्ष्य बनाने के साथ-साथ पिछले कुछ सालों में बीजेपी सरकार ने एक धारणा बनाई है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं. बेशक, भारत में भ्रष्टाचार कभी दूर नहीं हो सकता . यह सिर्फ गायब हो जाता है क्योंकि यह वितरित होने की बजाय, केंद्रीकृत हो जाता है. (वरना राजनीतिक पार्टियां विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कैसी करती है? हर राष्ट्रीय पार्टी को अगले लोकसभा चुनाव के लिए 10-15,000 करोड़ रुपयों की आवश्यकता होती है. आपको क्या लगता है यह पैसा कहां से आता है?)

बीजेपी इस मुद्दे पर कड़ी मेहनत करेगी. भ्रष्टाचार के लिए कुछ बड़े राजनेताओं और व्यापारियों को जेल करा अपना ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रखेगी, जैसा कि हाल की कुछ घटनाओं में देखने को मिला है.

4. गठबंधन का कार्ड

चुनाव पूर्व गठबंधन पर मुहर लगाना महत्वपूर्ण है. एक संबद्ध पार्टी की जीती जाने वाली प्रत्येक सीट एक ऐसी सीट है जो विपक्ष के पास नहीं जाती है. इस तरह से +2 लाभ सुनिश्चित किया जाता है. 2004 के अनुभव के आधार पर यह बात बीजेपी से अच्छा कोई नहीं जानता. महाराष्ट्र में शिवसेना, बिहार में जेडीयू, आंध्रप्रदेश में टीडीपी और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (अन्य छोटी पार्टियों के साथ) का समर्थन देना जारी रहेगा, इसलिए चुनाव के पहले यह धारणा बना लेना सही नहीं होगा कि बीजेपी ही अगले चुनाव की एकमात्र विजेता है.

कुछ राज्यों में बीजेपी के नजरिए से चुनाव पूर्व गठबंधन पर मुहर लगाना काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन यह बहुत मजबूत नहीं है, अगर क्षेत्रीय दलों का मानना है कि बीजेपी को स्वयं से बहुमत पाने की संभावना नहीं है, फिर वे चुनाव होने तक का इंतजार कर सकते हैं.

बीजेपी के मुताबिक और पार्टियों की संख्या के आधार पर, जिन पार्टियों की सरकार बनाने की आवश्यकता होगी, वे समझौता करने की बेहतर स्थिति में होंगे, खासकर कुछ बड़े राज्यों के दल.

5. कटिंग कार्ड

चुनाव का छोटा सा ज्ञात तथ्य है वोट कटर्स का महत्व और स्थानीय मौन गठबंधन. हर चुनाव में कई उम्मीदवार और पार्टियां होती हैं. उनका एक मात्र काम होता है मत को बांटना, जिससे मुख्य पार्टी के उम्मीदवारों के जीतने की संख्या कम हो जाए. भारतीय चुनाव में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम का यही तथ्य है.

हाल ही में गुजरात विधानसभा चुनावों में एनसीपी और बसपा जैसे दलों ने बहुत अच्छी तरह से इस काम को अंजाम दिया और कुछ सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों को आगे बढ़ने में सहायता की. यह भारत के सबसे बड़े राज्य के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो सकता है, उत्तर प्रदेश की 80 सीटों के साथ. बीजेपी ने 71 सीटें जीती हैं, जिसमें 2 अतिरिक्त सीटें सहयोगी पार्टी की हैं. बीजेपी का मुख्य उद्देश्य होगा कि बड़े राज्यों में बीजेपी के खिलाफ अन्य पार्टियां गठबंधन बना कर नहीं स्वतंत्र चुनाव लड़े.

उत्तर प्रदेश में मायावती की बसपा महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. वह सीधे बीजेपी के साथ सहयोग नहीं करेगी और अपने बलबूते वह बहुत सी सीटें नहीं जीत सकतीं, लेकिन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मजबूत उम्मीदवारों को स्थापित करने से, वह निश्चित रूप से बीजेपी को कई और सीटें जीतना आसान कर सकती है.

6. उम्मीदवारों का कार्ड

जीत हासिल करने के अलावा एक तकनीक है किसी अन्य पार्टी के विशिष्ट सीटों से उम्मीदवारों को खरीदना. कोई भी राजनेता ज्यादा दिनों तक सत्ता से बाहर रहना पसंद नहीं करता. बीजेपी के मानकों के आधार पर उनके राष्ट्रीय दावेदार कांग्रेस हैं, इसलिए बीजेपी राज्य स्तर पर कांग्रेस को कमजोर करने का हर प्रयास करेगी और उन कांग्रेस की सीटों का बीजेपी में विलय करेगी, जिन पर उनके जीतने की संभावना कम है.

आखिरकार, दोनों दल वैचारिक रूप से ज्यादा अलग नहीं है. कमांड, नियंत्रण और अधिकार उनके शासन काल में केंद्रीय स्तंभ रहे हैं. लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार स्थानीय उद्यमी होते हैं, अगर उन्हें ऐसा लगता है कि कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन कर रही है तो वे बीजेपी में शामिल नहीं होंगे. सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए एक तकनीक और है कि उम्मीदवारों का फेर-बदल करना. यह स्थानीय उम्मीदवारों के क्रोध को निर्देशित करने में सहयोग करता है.

बीजेपी शायद 2019 में ऐसा ही करेगी क्योंकि अधिकतर सांसद मोदी लहर के कारण चुनाव जीते हैं और न हीं उनका कोई अच्छा-खासा ट्रैक रिकॉर्ड है. उनका आना-जाना लगा रहता है.

7.जाति का कार्ड

यह अमीर के खिलाफ गरीबों का दांव लगाने की पुरानी तकनीक है. हमारी फिल्मों ने यह अतीत में किया था, और हमारे राजनेता इस के स्वामी हैं. यह संदेश है, “अमीर अपने पैसे को अवैध तरीके से बनाते हैं और बहुत अधिक हिट हो जाते हैं. देखो, मैं टैक्स लगाकर उनके लक्ष्य को कठिन बना रहा हूं, और अब आपको वह पैसा दूंगा.”

नोटबंदी के समय काले धन को लेकर भी यही धारणा बनाई गयी थी. बीजेपी ने बड़ी ही चतुराई से अपने वोट बैंक अमीर वर्ग और मध्यम वर्ग से परिवर्तित कर गरीब वर्ग कर लिया है, जिनकी संख्या ज्यादा है, जो मतदान देते हैं और वफादार मतदाता है. जिससे बड़ी संख्या में अमीरों पर प्रहार किया जा रहा है. इन सबमें सबसे ज्यादा नुकसान मध्यमवर्गीय लोगों का होता है.

बीजेपी की धारणा शायद यह है कि चुनावों से पहले ही कुछ सपोर्टों के साथ उनका समर्थन खरीदा जा सकता है क्योंकि राजनेताओं को लगता है कि मध्यवर्गीय, हालिया उपहारों को छोड़कर ज्यादा याद नहीं रखता.

उनकी धारणा के अलावा, दूसरा विकल्प क्या है? मध्यवर्गीय किसे मतदान देंगे? भ्रष्ट कांग्रेस को? मध्यवर्गीय वोट बीजेपी के लिए है तो मुस्लिम वोट कांग्रेस के लिए होता है जिसका हमेशा से फायदा उठाया जाता है.

8. पैसों का कार्ड

बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना और न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषणाओं के साथ राज्य स्तर पर कृषि ऋण में छूट का मुख्य उद्देश्य देश के गरीब और किसानों के हाथों में अधिक से अधिक पैसे उपलब्ध कराना मुख्य उद्देश्य है. इसे मुफ्त में उपहार मत कहिए लेकिन वास्तव में यह यही है.

चूंकि बीजेपी सरकार के पहले 6 महीनों में वास्तविक संरचनात्मक सुधार नहीं किए गए, भारतीय समृद्धि के रास्ते पर नहीं हैं. इसलिए, उनके मतों को खरीदा जाएगा. अन्य योजनाएं जैसे कि मुद्रा के तहत गरीब वर्ग को मुद्रा का वितरण किया जाएगा. अगर सब कुछ विफल हो जाता है तो हमेशा कि तरह जन धन वापसी योजना की घोषणा की जा सकती है जिससे प्रत्येक 30 करोड़ जन-धन खाते में 5000 रूपये का भुगतान किया जाएगा. इसके लिए अमीर, मध्यम वर्ग और व्यवसायियों पर अधिक से अधिक करों को थोपा जाएगा.

9. समुदाय का कार्ड

वोटों के लिए हिंदी-मुस्लिम विभाजन का शोषण और ध्रुवीकरण एक पुरानी कहानी है. कई दशकों से कांग्रेस ने मुस्लिम वोट बैंक का खेल खेला है, शुरूआत से ही 15 प्रतिशत समर्थन चुनाव में उन्हें मिलता आया है. बीजेपी को इस बात का एहसास हुआ कि सिर्फ जाति स्तर पर एकत्रीकरण, मुकाबला करने के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्हें जाति से ऊपर उठकर अधिक संख्या में ध्रुवीकरण और मतदाताओं को एकजुट करने की आवश्यकता है, इसलिए इसमें सबसे पहले आता है-धर्म.

अयोध्या राम मंदिर का निर्णय इस दिशा में उन्हें बढ़ने के लिए सही मौका देगा. इसके अलावा ट्रिपल तलाक पर ध्यान केंद्रित कर बीजेपी नें मुस्लिम वोट बैंक को भी विभाजित करने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है. लोग अपने जाति के बारे में न सोचते हुए धर्म के बारे में सोचे इसके लिए अधिक प्रयासों की जरूरत होगी, जैसे-जैसे हम चुनाव के नजदीक होंगे वैसे-वैसे मतदाता पोंलिग बूथ के नजदीक.

10. देश का कार्ड

बाहरी धमकी की डर से ज्यादा ऐसा कुछ नहीं है जो देश की जनता को एकजुट कर सके. जैसे कि भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद पर, एक साल पहले तक काफी कुछ बातें कही गई. यह मुद्दा चीन के आक्रमक प्रवेश के कारण बदल गया. चीन भारत में वैसा ही कर सकता है जैसा कि रशिया ने अमेरिका में किया था. अपने अनुसार परिणाम लाने के लिए हस्तक्षेप करना. डोकलाम सिर्फ पहला कदम है असल में पाकिस्तान में अब चीन का कवच (सुरक्षा) है, इसलिए सीमा के जरिए राष्ट्रवादी भावनाओं को झटका लगाया जा सकता है.

इसके साथ ही मैंने उन 10 कार्ड पर भी चर्चा की है जिसका उपयोग अगले चुनाव में राहुल गांधी अगले प्रधानमंत्री बने रहने के लिए कर सकते हैं .

(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिए नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHA पर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है)

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Published: 28 Feb 2018,10:34 PM IST

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