कुछ साल पहले एक राजनेता ने मुझसे पूछा, “क्या आप व्यापार और राजनीति के बीच का अंतर जानते हैं?” मेरे हैरान चेहरे को देख उन्होंने उत्तर दिया, “राजनीति में, नंबर 2 होने का कोई महत्व नहीं है.
राजनीति में नंबर 2 आने पर कोई उपहार नहीं मिलता. यदि कुछ मिलता है तो वो है अगले 5 साल, यह जानने और समझने के लिए कि आप से क्या गलत हुआ है. सत्ता से बाहर आना वास्तव में निराशाजनक होता है, खासकर तब जब आप कभी इस पर आसीन थे. इसलिए चुनाव व्यापार का नवीन रूप है और राजनेता इसके चतुर उद्यमी. इस प्रतियोगिता में प्रधानमंत्री पद का विजेता बनना ट्रोफी जितने जैसा है. प्रतियोगिता में नंबर-1 बने रहने के लिए राजनेता हर तरह की चाल, कूटनीतियां और रणनीतियां बनाते हैं.
कुल 9 कारण है- 3 वभिन्न संख्याएं, 3 कूटनीतियां और 3 रणनीतियां जो भारत के अगले प्रधानमंत्री का निर्णय लेंगे.
3 संख्याएं
330-230-130:
यह वही कुल संख्याएं हैं, जिस पर बीजेपी और कांग्रेस मिलकर लोकसभा की 543 सीटें जीत सकते हैं. बाकी की सीटें उन क्षेत्रीय पार्टियों के खाते में जाती हैं जो इन दो राष्ट्रीय पार्टियों से गठबंधन में हो सकती है या नहीं भी हो सकती है. इसलिए महत्वपूर्ण मुकाबला वह है, जहां कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे के खिलाफ सीधे चुनाव लड़ेंगी. प्रत्येक सीट का परिणाम दोनों पार्टियों के बीच के अंतर को दो से बड़ा करता है.
नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बने रहने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि बीजेपी की 282 सीटों की संख्या 230 से कम न हो, यानि की कांग्रेस को 100 से कम सीट मिले.
राहुल गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री बनने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि कांग्रेस 44 सीटों की संख्या बढ़ा कर 130 सीटों पर पहुंचे, यानी बीजेपी को 200 से कम सीट मिले. इस तरह बीजेपी और कांग्रेस को मिलाकर 330 सीट हुई, बीजेपी का लक्ष्य होगा 230 से अधिक सीटों पर जीत हासिल करना और कांग्रेस का लक्ष्य होगा 130 से अधिक सीटों पर जीत हासिल करना.
10 करोड़ और 67 करोड़:
भारत में अपंजीकृत मतदाताओं की संख्या 10 करोड़ है इनमें से 7.5 करोड़ 18-24 वर्षीय युवा हैं, जबकि अन्य 2.5 करोड़ पुराने मतदाता हैं जिन्होंने विभिन्न कारणों से मतदान के लिए अपना पंजीकरण नहीं किया है. भारत में 18-24 वर्षीय युवाओं में से आधे से ज्यादा के नाम मतदाता सूची में नहीं हैं. यह संख्या करीब 7.5 करोड़ है.
यह 10 करोड़ लापता मतदाता, उन 33 करोड़ भारतीयों का हिस्सा है जो मतदान नहीं करते. अगले 34 करोड़ वह अनिश्चित मतदाता है, जिनका मत किसी भी मुख्य पार्टी को जाने की संभावना कम है. कुल मिलाकर इनकी संख्या 67 करोड़ है- भारत में पात्र मतदाताओं का दो तिहाई हिस्सा. इन्हें कोई भी लपक सकता है. यह भाजपा के समर्थकों से 4 गुना और कांग्रेस के समर्थको से 8 गुना अधिक है.
128:
दो बड़े राज्यों में चार मजबूत दलों के साथ कुल सीटों की संख्या– उत्तर प्रदेश में 80 और महाराष्ट्र में 48 सीटें. बाजेपी ने 94 सीटों पर जीत हासिल की और सहयोगी पार्टी ने 20 पर, जिससे बीजेपी को 128 में से कुल 114 सीटों पर जीत हासिल हुई.
बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवारों की संख्या अगले चुनाव में उनकी सफलता का निर्धारण करेगी. जितने ज्यादा उम्मीदवार मुख्य पार्टी से होंगे, उतना उनकी जीतने की संभावना होगी. इसलिए अगला चुनाव इन 128 सीटों पर विपक्षी एकता के स्तर पर निर्भर करता है.
3 कूटनीतियां
लहर का निर्माण:
2014 की तरह चुनावी लहर राष्ट्रीय जनादेश सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है. यदि ऐसा नहीं होता है तो हमें सदन में मजबूत जनादेश देखने को नहीं मिलेगा.
पिछले 40 सालों में भारत में सिर्फ 3 बार चुनावी लहर देखने को मिली है- 1977 में (आपातकाल के बाद, जिसने जनता पार्टी को सत्ता में लाया), 1984 में (इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, राजीव गांधी की अगुवाई में कांग्रेस सत्ता में आई) और 2014 में (जहां नरेंद्र मोदी की बीजेपी 30 साल में पहली बार वह पार्टी बनी, जिसे पूर्ण बहुमत से जीत हासिल हुई). राजनैतिक पार्टियों को चुनावी लहर पसंद है- चूंकि बहुमत हासिल करने के लिए यह मतदाताओं को एकत्रित करती हैं. अगले चुनाव में राष्ट्रीय लहर देखने मिलेगी या विभिन्न राज्यों के परिणामों का जोड़ होगा?
बड़े विचार:
किसी भी पार्टी के समर्थन में चुनावी लहर निर्माण करने के लिए 1 या 2 बड़े विचारों की आवश्यकता होती है. वास्तव में घोषणापत्र के बारे में किसे कोई दिलचस्पी नहीं है. अगले चुनाव में कौन-से बड़े विचार हो सकते हैं? 1997 से लेकर अब तक का कांग्रेस के 60 साल का रिकॉर्ड? 2014 से आम जनता को अच्छे दिन देने वाली भाजपा का रिकॉर्ड? भ्रष्टाचार? शासन? खुद नरेंद्र मोदी?
विशेष मतदाताओं के समूह पर ध्यान केंद्रित करना:
किसी बड़े विचार को बेचने के लिए राजनीतिक पार्टियां विशेष समूह के मतदाताओं पर ही ध्यान केंद्रित करती है, जिनसे उन्हें समर्थन मिलने की संभावनाएं होती है. इसलिए यह देश के सभी मतदाताओं के बारे में नहीं बल्कि मतदाताओं के विशेष समूह के बारे में होता है. यह मतदाताओं का वह न्यूनतम मिक्षण है, जो अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से एक मत ज्यादा दिलाने में सहायता करते हैं, जिससे वह पार्टी चुनाव जीतती है जिसे ज्यादा मत मिले होते हैं. बहुत समय से बीजेपी के मतदाताओं का विशेष समूह मध्यमवर्गीय था, लेकिन अब यह परिवर्तित होकर गरीब वर्ग हो रहा है.
3 रणनीतियां
ध्रुवीकरण का खेल:
चुनाव फूट डालो और राज करो का खेल है. बाजार की तरह राजनेता व उनकी राजनैतिक पार्टी अपने मतदाताओं के विशिष्टीकरण देख यह सुनिश्चित करते हैं कि वे किसे मतदान दे. इसलिए धुव्रीकरण की आवश्यकता होती है. जाति, समुदाय और वर्ग-मतदाताओं को विभाजित कर विशेष मतदाताओं के समूह को एकजुट करता है. आशावाद की अनुपस्थिति में, राजनैतिक पार्टी अपने समर्थन में मत हासिल करने के लिए गुस्सा, डर और जूनून का इस्तेमाल करती हैं.
जमीनी स्तर की रणनीतियां:
भारत में 10 लाख मतदान केंद्र हैं, जिनमें प्रत्येक पर करीब 1000 मतदाता हैं, जो लगभग 250 परिवारों से आते हैं. हर चुनाव में टॉप-डाउन मीडिया अभियान के अतिरिक्त मायने रखता है, जमीनीस्तर पर रणनीतियां, खासकर मतदान दिन के करीब. डाटा और विश्लेषणों की सहायता से अपने मतदाताओं का पहचान कर, चुनाव के दिन उन्हें मतदान के लिए बाहर निकालना, अंतिम विजेता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. ऐसा करने के लिए, पार्टियों को ऐसे मजबूत समूह की आवश्यकता है जो बूथ कार्यकर्ता के रूप में नए मतदाताओं का पंजीकरण करें और अपने समर्थकों व अनिश्चित मतदाताओं को मतदान के लिए घर से निकलने को प्रेरित करे.
डिजिटल मीडिया का खेल:
2014 से एक बड़ा परिवर्तन यह देखने को मिला कि भारत भर में स्मार्टफोन और डेटा कनेक्टिविटी का अद्भुत विकास हुआ है. नतीजतन, फेसबुक और वाट्सएप विषय और विचार साझा करने के लिए प्राथमिक तरीके बन गए हैं. आए दिन हम देखते है कि जब कभी कोई बड़ा समाचार सामने आता है तो, रचनात्मक सामग्री बड़े पैमाने पर उभर कर आती है. सभी मतदाताओं में से आधे से ज्यादा और भारत में हर घर में कम से कम एक व्यक्ति अब स्मार्टफोन के माध्यम से डिजिटल रूप से जुड़ा हुआ है. भारत को डिजिटल बनने में भले ही समय हो लेकिन भारत का डिजिटल चुनाव जल्द आ रहा है.
यह है, वह संख्याएं, कूटनीतियां और रणनीतियां, जो भारत के अगले प्रधानमंत्री का निर्णय करेंगी. आने वाले चुनाव में जो कुछ होगा वह हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक भविष्य को निर्धारित करेगा, जो अतीत में देखे गए परिणामों से कहीं ज्यादा होगा. भारत एक युवा देश है. हमने पिछले कई दशकों में उन नीतियों पर अपना समय बर्बाद किया है, जिन्होंने हमारे समृद्धि के मार्ग पर बाधा डाली है. यह चुनाव एक और परिर्वतन प्रदान करने का अवसर है. इसलिए यह आवश्यक है कि हम राजनेताओं और उनके दलों के खेल के बारे में जागरूक रहें और अपनी सूझ से मतदान दें देश के पहले प्रधानमंत्री को, जो समृद्धि को बढ़ावा दे.
(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिए नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHA पर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)
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