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‘यूनिक’ आधार की जीत, हर चीज से लिंक करने की जिद की हार 

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आधार डेटा के इस्तेमाल के इरादों पर पानी फिर गया.

संजय पुगलिया
नजरिया
Updated:
(फोटो: Harsh Sahani)
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(फोटो: Harsh Sahani)

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राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आधार डेटा के इस्तेमाल के इरादों पर पानी फिर गया. अब हाईकोर्ट के आदेश के बिना ये नहीं हो सकता. मतलब डेटा के इस्तेमाल में मनमानी पर रोक लग ही गई.

आधार एक्ट में ऐसी कई आक्रामक कोशिशों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने पानी फेर दिया है. अब आधार के ऑथेंटिकेशन के डेटा को 6 महीने से ज्‍यादा अपने पास स्टोर नहीं किया जा सकता है. मतलब आधार का इस्तेमाल कर पूरी हिस्ट्री नहीं बनाई जा सकती है.

कोर्ट ने इसे सिर्फ एक मामले में जरूरी किया है, जिसका संबंध सरकारी खजाने से है. यानी कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया से सामाजिक कल्याण की योजनाओं का पैसा जा रहा है. लेकिन आधार न होने या कनेक्‍ट‍िविटी के कारण पुष्टि न हो पाने की स्थिति में किसी को लाभ देने से मना नहीं किया जा सकता. इसे इनकम टैक्स के लिए भी जरूरी किया गया है, क्योंकि खजाने में पैसा आ रहा है. PAN के लिए भी आधार जरूरी होगा.

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ये टेक्नोलॉजी की बड़ी इनोवेटिव छलांग है, जिससे नागरिकों को ताकत मिलती है. कोर्ट के फैसले से अब फोकस डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर और इसका इस्तेमाल करने वालों की काबिलियत पर जाना चाहिए. सरकार ने हल्ला खूब मचाया, लेकिन मजबूत और सुरक्षित डिजिटल ढांचा अभी भी नहीं बना है. इसीलिए सरकारी कमियों और गलतियों को कुछ लोग आधार की गलती या कमजोरी समझते रहे. कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वो डेटा प्रोटेक्शन कानून बनाए.

अभी जस्टिस श्रीकृष्ण समिति की जो सिफारिशें विचाराधीन हैं, उनमें ये रिस्क है कि सरकार 'बिग स्टेट' बने रहने की कोशिश करे. यहां भी राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर प्राइवेसी को चोट पहुंचने वाले प्रावधान आ सकते हैं. इसीलिए पब्लिक को बहुत चौकन्ना रहना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वो 'अवैध आप्रवासियों' को आधार न दे. यह प्रावधान तो पहले से ही है.

आधार ने शुरू से कहा कि ये भारत के रेजिडेंट्स के लिए है. ये नागरिकता तय करने का टूल नहीं है. बहुत बड़ी दिक्‍कत है कि सरकार और कोर्ट, दोनों इस मसले को हल कर ही नहीं पा रहे कि हम नागरिकता कैसे तय करें.

इस विषय पर जो बहस चल रही है, वो राजनीतिक और चुनावी कारणों से है. अभी तक सरकार इस मामले में अंधेरे में हाथ-पैर मार रही है.

कोर्ट ने यहां उसे बरी कर दिया है. लेकिन एक जज के कड़े रुख से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मामले में कोर्ट में फिर से  इस फैसले को रिव्यू करने की अपील हो सकती है. यानी ये बहस अभी खुली रहेगी और सिविल सोसायटी के कार्यकर्ता बड़ी बेंच में अपील में जा सकते हैं.

राजनीतिक क्लास के लिए इस फैसले का सबक ये है कि आधार को विकृत बनाने के पीछे राजनीतिक हित साधन का इरादा था. ये फैसला उनको बेनकाब करता है और चेतावनी देता है.

नीयत अच्छी हो, तो 130 करोड़ हिंदुस्तानियों के लिए सशक्तिकरण के, प्रशासन की काबिलियत बढ़ाने के और लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं. वो तभी संभव है, जब इस डेटाबेस का यूज हो, मिसयूज नहीं. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मिसयूज पर लगाम लगेगा.

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Published: 26 Sep 2018,06:55 PM IST

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