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पंजाब punjab शब्द के मायने में जाए तो यह पंज और आब से मिलकर बना है. पंज का अर्थ पांच और आब यानी पानी. पांच नदियाें वाला पंजाब स्वाभाविक तौर पर सहज, परिश्रमी और खुद को गौरवांवित महसूस करने वाले किसान समुदायों की धरती है. यहां की धरती में जन्मे लोग सदियों से आक्रमणकारियों के हमले से रक्षा करते रहे हैंं, जो इसकी सैन्य संस्कृति व परंपरा को अच्छी तरह से बयान करता है. इसकी सभ्यतागत-सांस्कृतिक-धार्मिक विविधता और सांसारिक ज्ञान भयानक निराशा या अंधेरे के सामने आशावाद का स्रोत है, जिसे स्थानीय लोगों द्वारा 'चढ़दी कला' (शाश्वत आशावाद) कहा जाता है.
पंजाबियत संस्कृति में छोटे दिल यानी संकीर्णता का कोई स्थान नहीं है. लार्जर दैन लाइफ वाली पंजाबियत आशा और विश्वास पर आधारित है.
यहां सिकंदर महान के अंत से बहुत पहले और 1947 के दर्दनाक विभाजन के बाद, 'चढ़दी कला' की भावना सबसे अधिक जख्मी, आक्रमण झेलने वाली और बार-बार विभाजित हुई धरती में जन्मी और पोषित हुई.
पंजाबियों ने तराई क्षेत्र में, मुंबई की गलियों या गोरखपुर में ही नहीं समुद्र के पार दुनियाभर (अब जॉर्जिया जैसे आकर्षक देशों में भी) में भी सफलता अर्जित की है. नतीजतन पंजाब, देश के बाकी हिस्सों की तरह, अपने राजनेताओं द्वारा ठगा हुआ महसूस करता है, जिन्हें पंजाबियों ने दुनिया भर में अपने समुदाय की जादुई सफलता को दोहराने में असमर्थता के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया है.
दूसरी ओर, ऐतिहासिक तौर पर पंजाब ने मतभेदों, रुढ़ियों और विभाजन के प्रयासों का विरोध किया. 80 के दशक का अलगाववादी विद्रोह आज दूर की कौड़ी है, कोई भी राज्य यह दावा नहीं कर सकता कि उसने हिंसक 80 के दशक से पहले या बाद में राष्ट्र के लिए इतना ज्यादा रक्त दिया है.
दूसरों ने इसके बारे क्या कहा, क्या भविष्यवाणी की इसकी परवाह न करते हुए पंजाब ने अपने रास्ते पर चलने का फैसला लिया. 17वीं सदी के पंजाबी सूफी संत बुल्ले शाह ने इसकर महान मान्यताओं और समावेशिता के बारे में इन लाइनों के जरिए अपनी बात रखी हैं.
ना मैं रिंदां मस्त खराबां
ना मैं शादी ना ग़मनाकी
ना मैं विच पलीति पाकी
ना मैं आबी ना मैं खाकी
ना मैं आतिश ना मैं पौण
बुल्ला कि जाणां मैं कौन ?
यानी
(न ही मैं भ्रष्टों की संगति में हूं
न मैं सुख में हूं, न शोक में
ना ही मैं पावन हूं, ना ही अपवित्र
न पानी, न धरती
न आग, न पानी
बुल्ला क्या जानेगा, मैं कौन हूं?)
लेकिन प्राउड पंजाबी किसी भी निंदा और टिप्पणी को बहुत ही व्यक्तिगत रूप से लेते हैं. दुर्भाग्य से हाल ही में समाप्त हुए किसान आंदोलन के दौरान पंजाबियों को निंदा और टिप्पणियों का सामना करना पड़ा. देश के कुछ हिस्सों के विपरीत जहां राष्ट्रवाद, बलिदान और राष्ट्रीयता नवनिर्मित भावनाएं हैं. आजके राष्ट्रवाद के विचारों से परे पंजाबियों ने इन्हें वर्षों से जिया है.
इस पृष्ठभूमि के साथ अगर आप पंजाबियों से उनकी आशा छीनने का काम करेंगे, उन पर कटाक्ष करेंगे या उन्हें दबाने की कोशिश करेंगे तो पंजाबी विद्रोह करेंगे क्योंकि वे हमेशा से करते आए हैं.
भावुक पंजाबियों ने परंपरागत रूप से उन लोगों पर भरोसा किया है जो उनका मज़ाक नहीं उड़ाते, 'विभाजन' नहीं करते, या उन्हें दबाने का काम नहीं करते हैं. ऐसा करने के लिए वे ऐसे घोड़े पर भी दांव लगा सकते हैं जो कमजोर दिख रहा हो या जिसकी जांच अभी तक नहीं की गई हो.
महज पांच वर्ष पहले 2017 पंजाब चुनाव के दौरान एक दिलचस्प हेडिंग छपी थी. उसमें लिखा था, "आप के पंजाब के चेहरे: 10 प्रत्याशी, कम साधन, उच्च आशावाद". हेडिंग का मुख्य बिंदु यह था कि सबसे कम संपत्ति वाले सभी दस प्रत्याशी आम आदमी पार्टी (AAP) से थे, और वे जीतने के लिए पूरी तरह से 'उच्च आशावाद' ('चढ़दी कला' याद है न?) पर भरोसा कर रहे थे.
हैरानी की बात यह रही कि एक ऐसी पार्टी जो पहले कभी पंजाबी मंच पर नहीं थी, उसने अपने पहले चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से 20 सीटें जीती थी. अन्य दो बड़े दलों कांग्रेस और अकालियों के लिए दीवार पर लिखा हुआ था कि "या तो अपने काम करने का ढंग सुधार लो या इन दोनों के अलावा भी विकल्प मौजूद है."
किसी राज्य की राजनीति में पांच साल का वक्त बहुत लंबा समय होता है. इस दौरान AAP ने प्रबंधन यानी मैनेजमेंट का एक महत्वपूर्ण सबक सीखा. वह यह कि यदि आपको असफल होना है, तो तेजी से असफल हो, अपनी गलतियों से सीखो और आगे की ओर बढ़ो. ऐसा नहीं है कि आप असफल रही थी. इसके विपरीत, इसने शानदार शुरुआत की थी. हालांकि कुछ लोगों के इस्तीफे, कुछ लोगों के अलग होने और गलम उठाने की वजह से पार्टी में फूट पड़ गई थी, लेकिन इसके बावजूद भी कुछ लीडर इसके साथ बने रहे व "आम आदमी पार्टी की विचारधारा" के साथ डटे रहे. उन्हीं में से एक थे बहुचर्चित भगवंत मान.
सत्ताधारी कांग्रेस और अकालियों के बीच प्रतिस्पर्धी हराकिरी ने AAP के खेमे में हवा भरी. हराकिरी जापान का एक रिचुअल होता है जिसमें समुराई तलवार से खुद की जान लेनी होती थी. सरल शब्दों इसे हम आत्मघाती कदम कह सकते हैं.
हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस और अकालियों दोनों ने राज्य के मिजाज के बारे में आत्म-लक्ष्य हासिल करने और आत्मघाती उदासीनता प्रदर्शित करने के मामले में एक-दूसरे को पीछे छोड़ दिया.
जहां एक ओर किसानों के विरोध की अगुवाई में अकालियों ने भाजपा के साथ अपने संबंधों को खत्म कर दिया, वहीं जीत के जबड़े से हार छीनने में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. अकालियों के पास मुद्दों और नेताओं की कमी थी जबकि बिना पतवार वाली कांग्रेस में एक नहीं अनेक थे.
अरविंद केजरीवाल किनारे पर बैठे रहे, उन्होंने किसानों के विरोध प्रदर्शन को हड़पने या उसको सही ठहराने की कोशिश नहीं की, हालांकि उन्होंने सामरिक समर्थन की पेशकश की थी. इसके अलावा उन्होंने अकालियों और कांग्रेस द्वारा खुद के पैरों में कुल्हाड़ी मारने का इंतजार बहुत ही सटीकता और संयम के साथ किया.
2021 के अंत में चंडीगढ़ का मेयर चुनाव आने वाली चीजों का पूर्वाभास होना था। AAP ने 35 में से 14 वार्ड जीते थे, उसके बाद भाजपा ने 12, कांग्रेस ने आठ और अकालियों ने एक पर जीत हासिल की थी.
चुनाव से पहले आरोपों, राष्ट्रवाद और सुरक्षा चिंताओं, मुफ्तखोरी, क्षेत्रवाद, पुजारियों और डेरों के आह्वान का सामान्य नाटक पंजाब में भी चला.
इस सब के बीच, एक पार्टी एक नई अपील "इक मौका, आप नू" के साथ अलग-थलग रही जनता के मूड को टटोलने में कामयाब रही. जहां एक ओर पंजाब में प्रमुख दल आत्मघाती काम कर रहे थे वहीं दूसरी ओर AAP बुनियादी मुद्दों पर टिके रहते हुए खुश थी और चुपचाप इंतजार कर रही थी.
इसके अलावा इस पार्टी ने लोकलुभावनवाद की भी बात की. इसने एक जाट सिख (भगवंत मान) को भी आगे किया व सीएम चेहरा बनाया. दिल्ली व पंजाब सरकार के कामों की तुलना करके साफ सुधरी छवि प्रस्तुत की और पूरे समय 'समावेशी' स्क्रिप्ट पर टिके रही.
इसके बाद AAP को प्रचंड बहुमत से दूर करने के लिए कुछ बचा था? कुछ नहीं. यह दिखाता है कि सिर्फ पांच साल में 'आशावाद' पर टिके रहते हुए AAP ने पंजाब के घरों में कैसे पैठ बनाई.
स्पष्ट व प्रचंड जनादेश से पता चलता है कि पंजाब के मतदाताओं ने भूमिगत धार्मिकता, उबेर-राष्ट्रवाद, लोकलुभावनवाद, जातिवाद या यहां तक कि उप-क्षेत्रवाद की अपील को खारिज कर दिया. इसके बजाय महत्वाकांक्षी 'विविधता' के एक मध्यमार्गी आशा को चुना. यह संभव है कि इतने वोट किसी पार्टी को चुनने बजाय किसी को अस्वीकार करने के लिए पड़े हों. लेकिन चाहे वह कुछ भी हो AAP ने "इक मौका" और शासन करने का अधिकार हासिल किया.
भारी जनादेश इस बात पर जोर देता है कि मतदान पैटर्न को उप-क्षेत्रीय, जातिवादी, धार्मिक, शहरी-ग्रामीण, या किसी अन्य कटौती में विभाजित करना व्यर्थ है. यह इस तरह के विभाजनकारियों के खिलाफ वोट हो सकता है. महाराजाओं, संपन्न लोगों, जागीरदारों, माफियाओं और विभिन्न ढोंगियों के देखने के बाद यह समय आम आदमी (आम व्यक्ति) के लिए "मौका" था. पंजाब के चुनावी नतीजे आजादी के बाद के कई सिकंदरों (एलेक्जेंडर्स) की राजनीतिक कब्रगाह हैं!
राजनीतिक पक्षपात को छोड़ दें तो पंजाब के परिणाम में सभी के लिए शुभ संकेत हैं, जिनमें पराजित कांग्रेस और अकाली दल भी शामिल हैं. उन्हें समय निकालने और गंभीरता से अपने भीतर झांकने की जरूरत है.
2024 से पहले, अकालियों को एक मनोरम पिच तैयार करने और उस पर अमल करने की जरूरत है. क्योंकि उनके पास या तो एक रक्षात्मक या "10 साल विकास दे, विश्वास दे" के जैसी हास्यास्पद रूप से अविश्वसनीय पिच थी.
कांग्रेस (अन्य दलों को तो छोड़ दें) अपने लिए खुद यह चुन सकती है कि क्या वह घमंड, अस्तित्व और क्षणिक महत्व का एक व्यक्तिगत खेल खेलना जारी चाहती है या फिर एक मजबूत टीम गेम खेलना चाहती है.
विभिन्न किसान दलों को अपनी महत्वाकांक्षा की रूपरेखा तय करते हुए लक्ष्यों की पहचान करनी चाहिए और यह तय करना चाहिए कि वे मुद्दे पर केंद्रित होंगे या सत्ता पर.
चूंकि 'मौका' आमतौर पर गैर-प्रदर्शन करने वालों के लिए एक बार का टिकट होता है, इसलिए AAP के पास राष्ट्रीय राजनीति में निश्चित विकल्प के रूप में उभरने का एक शानदार अवसर है. पंजाब में कभी पंजाब जनता पार्टी और अकाली दल संत से मुख्यमंत्री थे, लेकिन आज कोई भी पार्टी मौजूद नहीं है.
"सर, आपने और पंजाब के लोगों ने मुझ पर जो कृपा की है और विश्वास जताया है, उसका मान रखने के लिए अपनी पूरी ताकत से मैं पूरी कोशिश करूंगा. मैं जो भी कदम उठाऊंगा वह आपको और तीन करोड़ पंजाबियों को बहुत गौरवान्वित करेगा." 18 जनवरी 2022 को केजरीवाल द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए नामित होने से पहले ये बातें भगवंत मान ने कही थीं. अब भगवंत को उस बात के लिए जवाबदेह होने का समय आ गया है.
AAP और पंजाब के लिए ये 'चढ़दी कला' का समय है!
(लेफ्टिनेंट जनरल भूपेंदर सिंह (रिटायर्ड) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पुडुचेरी के पूर्व उपराज्यपाल हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट ना तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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