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अग्निपथ योजना का हश्र भी तीन कृषि कानून की तरह होने वाला लगता है. तब किसानों को सरकार फायदे नहीं समझा पायी थी. अब नौजवानों को फायदे नहीं समझा पा रही है. नौजवान गुस्से में हैं. प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुके हैं. गुस्से की आग फैलती चली जा रही है. यह समझना बहुत जरूरी है कि आखिर ये नौजवान गुस्से में क्यों हैं और क्यों नहीं सेना में भर्ती की सरकारी नीति को उनके हिसाब से समझ पा रहे हैं.
अग्निपथ योजना में हर साल 50 हजार सेना की भर्ती और चार साल पूरे होने के बाद पांचवें साल से 12.5 हजार जवानों को नियमित करने और 37.5 हजार जवानों को सेवा से बाहर करने की प्रक्रिया शुरू होगी. यह मानकर कि भर्ती प्रक्रिया 2022 से शुरू हो रही है गणित लगाएं तो पांचवें साल में 2026 तक 2.5 लाख नियुक्तियां हो चुकी होंगी.
उसके आगे 8वें साल 2029 तक 4 लाख भर्तियां हो चुकी होंगी जिनमें से 50 हजार नियमित हो चुके होंगे. जबकि, डेढ़ लाख पूर्व सैनिक का तमगा लगा चुके होंगे.
2022 से आगे 12वें साल यानी 2033 तक 6 लाख जवानों की भर्तियां हो चुकी होंगी. एक लाख जवान नियमित हो चुके होंगे और 3 लाख जवान सेना से बाहर. 16वें साल तक 8 लाख जवानों की भर्ती, नियमितिकरण 2 लाख और सेवा से बाहर होने वाले जवानों की तादाद 4.5 लाख होगी. इसी तरह 24वें साल यानी 2045 तक 12 लाख भर्तियों के मुकाबले 4 लाख नियमित हो चुके होंगे और 7.5 लाख सेना से बाहर.
अगले 24 सालों में 12 लाख भर्तियों के बीच नियमित हुए 4 लाख सैनिक ही पेंशनधारक होंगे. इनमें से भी 3 लाख सैनिकों की 20 साल की सेवा तब तक पूरी हो चुकी होगी. यानी सही मायने में 1 लाख सैनिक ही पेंशनभोगी रह जाएंगे.
सवाल उठ रहे हैं कि मोदी सरकार ने सेना जैसे संवेदनशील विषय पर ऐसे कदम क्यों उठाए? सरकार की ओर से बताया जा रहा है कि इस कदम से सेना और अधिक युवा होगी. सेना की औसत उम्र घटेगी. मगर, पूर्व सैन्य अधिकारी यह सवाल उठा रहे हैं कि महज चार साल में युवाओं को कैसे और कितना प्रशिक्षित कर लिया जाएगा कि सेना की गुणवत्ता में सुधार हो जाएगा. मतलब यह कि सेना का सिर्फ युवा होना जरूरी नहीं है उसका उचित रूप से प्रशिक्षित होने के बाद गुणवत्तायुक्त होना भी जरूरी है.
नौजवानों में गुस्सा उन राज्यों में ज्यादा है जहां से सेना में भागीदारी के लिए सालों साल युवक मैदान की परिधि मिनटों में मापते रहते हैं, पसीने बहाते रहते हैं और एक उम्मीद रहती है कि एक दिन वे भारतीय सैन्य बल का हिस्सा बनकर न सिर्फ अपना करियर संभालेंगे बल्कि देश के लिए भी अपने जज्बे के हिसाब से काम आएंगे. बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान जैसे राज्यों में फैली हिंसा इसके सबूत हैं.
सवाल उठता है कि अपने-अपने प्रांत के पूर्व सैनिकों को प्रांतीय सरकारें क्यों संभालें? जब देश के लिए नौकरी करने चले हैं तो देश उनकी जिम्मेदारी क्यों न ले? 20 साल तक सेवा कर सकने की क्षमता के बावजूद क्यों महज चार साल में ही नौजवान देश की सेवा से बाहर कर दिए जाएं? आखिर ऐसी स्थिति बनायी ही क्यों गयी है कि सेना हाथ खड़ी कर लें और पूर्व सैनिकों को प्रांतीय सरकारें संभालने का काम करें?
सेना में छीने जा रहे हैं अवसर- नौजवान इसलिए नाराज हैं कि सेना में भर्ती होने का उनसे अवसर छीना जा रहा है. इसे ऐसे समझें कि लोकसभा में केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक 2017,2018 और 2019 तक 1.65 लाख भर्तियां सशस्त्र बलों में हुई थीं यानी औसतन 55 हजार भर्ती सालाना होती रही. इसे घटाकर 45 से 50 हजार कर दिया गया है.
2020, 2021 और 2022 में कोई भर्ती नहीं हुई है. अगर होती तो 1.65 लाख भर्ती और जुड़ गयी होती. इस दौर में तैयारी कर रहे लाखों जवानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है.
सेना की तैयारी कर रहे सभी नौजवानों की चिंता यही है कि क्या वे महज चार साल की नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं? नियमित नहीं हुए तो आगे क्या होगा?
सेना में भर्ती होने के बाद भी सेवा अनिश्चित रहना जवानों के गुस्से की आग में घी डालने का काम कर रहा है. उन्हें चार साल तक पता नहीं होगा कि उनकी सेवा आगे जारी रहेगी या नहीं.
चार साल बाद सेना में भर्ती किए गये सारे नौजवानों को टेस्ट से गुजरना होगा. यह बात उन्हें बेचैन कर रही है.
चार में से तीन नौजवानों का चार साल बाद टेस्ट में फेल होना निश्चित है. ऐसे में सेना में नौकरी को लेकर नौजवानों में जो क्रेज रहा है उस पर पानी फिर गया है.
सेना में नौकरी पाने के बाद जो सम्मान रहता रहा है वो उन्हें नहीं मिलेगा. चार साल तक तो कतई नहीं क्योंकि उन्हें सेना का स्थायी हिस्सा भी नहीं समझा जाएगा. पास-पड़ोस के लोग समझेंगे कि चार साल बाद इनकी हालत होगी- लौट के बुद्धू घर को आए.
सेना में नौकरी बचाने के लिए नौजवानों को अपने सीनियरों का मोहताज रहना होगा. उनकी पसंद वाले नौजवान ही खुशनसीब एक चौथाई समूह में आ सकेंगे.
नौजवान चार साल तक अपने हिस्से से काटे गये वेतन और सरकार की ओर से जोड़कर दी जाने वाली उतनी ही रकम मिलाकर जमा हुई 10.04 लाख और फिर सूद समेत 11.7 लाख की रकम को पैकेज मानकर खुश होने को तैयार नहीं हैं.
सेवा के दौरान मौत होने पर 44 लाख का मुआवजा नियमित सैनिकों के मुकाबले काफी कम है. आखिर सैनिक होकर ही अग्निवीर भी जान देंगे. फिर सैनिक-सैनिक में वीरगति के बाद मुआवजे में फर्क क्यों? यही सवाल अपंगता के मामले में भी है.
मात्रात्मक रूप से सेना की संख्या घटे नहीं, इसके लिए हर साल 45 से 50 हजार सैनिकों की नियुक्ति की जाती रहे. तीन चौथाई को हर चौथे साल सेवा से बाहर किया जाता रहे. आइए इस पूरी प्रक्रिया को समझते हैं.
अग्निपथ योजना से अग्निवीर तो तब बनेंगे जब यह योजना शुरू होगी. मगर, इससे पहले ही नौजवानों ने जिस तरीके से प्रतिक्रिया दी है वह गंभीर है. अगर किसानों की तरह सेना में सेवा देने की ललक रखने वाले नौजवानों को भी सरकार समझा नहीं पाती है तो क्या एक बार फिर देशहित में मोदी सरकार अपने ही फैसले को वापस लेने की घोषणा करने को बाध्य नहीं हो जाएगी?
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Published: 19 Jun 2022,09:00 AM IST