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एक हफ्ते पहले, तमिलनाडु में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच गठबंधन खटाई में पड़ गया था. वजह थी कि AIADMK के प्रवक्ता और पूर्व मंत्री डी जयकुमार ने घोषणा की थी कि वर्तमान में दोनों पार्टियों के बीच कोई गठबंधन नहीं है, और इसका फैसला चुनाव के समय हो सकता है.
तब से, दोनों पार्टियों के भीतर इस मुद्दें पर गहन विचार-विमर्श चल रहा था कि क्या यह गठबंधन सही मायने में ठीक है? क्या इससे कोई फायदा भी है?
पूर्व मुख्यमंत्री और AIADMK महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी (EPS) ने इससे पहले अपनी पार्टी के नेताओं से कुछ दिनों के लिए गठबंधन या बीजेपी के बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं बोलने को कहा था.
AIADMK का एक प्रतिनिधिमंडल कथित तौर पर गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के लिए दिल्ली गया था. उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और मंत्री पीयूष गोयल से भी मुलाकात की और जाहिर तौर पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष, के. अन्नामलाई द्वारा उन दिग्गजों की लगातार आलोचना के बारे में अपनी नाराजगी व्यक्त की, जिनका AIADMK के नेता और कैडर सम्मान करते हैं. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई और जे जयललिता शामिल हैं.
यहां तक कि पलानीस्वामी ने सोमवार को अंतिम निर्णय लेने के लिए पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं, सांसदों और विधायकों की बैठक बुलाई, लेकिन सप्ताह के अंत में जयकुमार ने फिर से जोर दिया कि गठबंधन टूट गया है.
यह बैठक पलानीस्वामी ने ही यह सुनिश्चित करने के लिए बुलाई थी कि गठबंधन तोड़ने के फैसले पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच आम सहमति बन जाए - और वह एकतरफा फैसला लेते नजर न आएं.
यह भी सभांवना थी कि यह फैसला कुछ वक्त के लिए टाल दिया जाए और एक ऐसा प्रस्ताव पारित कराया जाए जिससे अंतिम निर्णय लेने का फैसला पलानीस्वामी के पास रहे. लेकिन बैठक के भीतर मजबूत भावना ने पलानीस्वामी को आश्वस्त किया कि यह गठबंधन तोड़ने का सही समय है.
यह सही है कि AIADMK और बीजेपी के बीच संबंध कुल मिलाकर अच्छे बने रहे और इस पर दोनों पक्षों ने जोर दिया है. लेकिन AIADMK को बीजेपी के राज्य अध्यक्ष, अन्नामलाई की ओर से बार-बार की गई आलोचनाओं से का सामना करना पड़ा, और उसने आखिरकार उसके धैर्य की परीक्षा ले ली है.
AIADMK के खिलाफ उनके बयानों पर बीजेपी की राज्य इकाई में उनके वरिष्ठ सहयोगियों की चुप्पी ध्यान खींचने वाली रही है, लेकिन इसने उन्हें दूर जाने से नहीं रोका है.
तमिलनाडु में बीजेपी बहुत बंटी हुई है और वरिष्ठ नेताओं का एक बड़ा समूह सही समय का इंतजार कर रहा है और उम्मीद कर रहा है कि किसी समय, अन्नामलाई प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सीमा लांघ जाएंगे और जरूरत से ज्यादा कर देंगे. बता दें कि अन्नामलाई एक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं और केवल तीन साल से पार्टी में हैं.
AIADMK को शक है कि बीजेपी आलाकमान दोहरा खेल खेल रहा है. AIADMK के एक वरिष्ठ नेता ने इस लेखक को बताया कि बीजेपी आलाकमान ने AIADMK के बारे में अन्नामलाई की एक या दो तीखी टिप्पणियों को नजरअंदाज कर दिया होगा. लेकिन पार्टी के द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद भी और कुछ दिनों पहले गृह मंत्री अमित शाह के साथ पलानीस्वामी की दिल्ली बैठक के बाद भी, अन्नामलाई उसी ढर्रे पर चलते रहे.
वरिष्ठ नेता ने कहा, "हम अब यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बीजेपी आलाकमान इस बात से अनजान है कि क्या हो रहा है. अब यह स्पष्ट है कि वे जानबूझकर अन्नामलाई को हमारे नेताओं का अपमान करने की अनुमति दे रहे हैं. इसलिए हमें निर्णय लेना जरुरी है."
AIADMK मुश्किल स्थिति में फंस गई है. यह अब वह पार्टी नहीं रही, जिसने कभी जे जयललिता के नेतृत्व में लगभग 45 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था, जिसने 2014 के लोकसभा चुनावों में अपने सभी विरोधियों को परास्त कर दिया था और 2016 के विधानसभा चुनावों में अपने दम पर सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही थी.
पार्टी में आंतरिक कलह के कारण वोट शेयर में उल्लेखनीय गिरावट आई है और पुनर्जीवित बीजेपी चुपचाप द्रविड़ पार्टी के आधार को खत्म कर रही है. उसे मिलने वाले हर वोट की जरूरत है और जनता की राय में राज्य में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी बीजेपी गठबंधन को अतिरिक्त 7-10 फीसदी वोट शेयर दिला सकती है.
साथ ही, गठबंधन की गैर मौजूदगी में, 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए AIADMK किसे पीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करेगी?
ये सभी कारक गठबंधन जारी रहने के पक्ष में थे.
दूसरी ओर, NDA और बीजेपी से नाता तोड़ने पर जोर देने वालों ने तर्क दिया कि बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद AIADMK ने अल्पसंख्यक वोटों का एक बड़ा हिस्सा खो दिया है. यह सही है कि अल्पसंख्यक अभी भी DMK गठबंधन के साथ भारी संख्या में बने हुए हैं, लेकिन बीजेपी का साथ छोड़कर, उनमें से कुछ को कम से कम लुभाकर वापस लाने की संभावना है.
सामान्य नकारात्मक धारणा है कि बीजेपी अभी भी तमिलनाडु में वोटर्स के एक बड़े वर्ग के बीच मौजूद है. इसका मतलब है कि AIADMK, BJP के बोझ को छोड़कर, इन मतदाताओं के लिए एक आकर्षक विकल्प हो सकती है. बीजेपी की उपस्थिति भी उन कुछ दलों के लिए एक मुश्किल थी, जो AIADMK के साथ गठबंधन करना चाहते हैं.
इसके अलावा, पिछले कुछ महीनों में तमिलनाडु में बीजेपी की बढ़त स्थिर होती दिख रही है, और AIADMK के वोट पूरी तरह से बीजेपी द्वारा खा जाने का खतरा एक साल पहले की तुलना में थोड़ा कम लगता है.
पलानीस्वामी ने पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम की चुनौती का भी सफलतापूर्वक मुकाबला किया है और जिस पार्टी के एक समय टूटने की आशंका थी, वह उनके नेतृत्व में काफी हद तक बरकरार रही है.
सभी बातों पर विचार करने पर, AIADMK कुछ हद तक राज्य में सत्तारूढ़ DMK के लिए प्रमुख चुनौती बनी हुई है. पार्टी के अंदर बीजेपी द्वारा इसकी प्रमुखता को कम करने के प्रयास को अच्छा नहीं माना गया है. इस संदर्भ में गठबंधन तोड़ने का निर्णय AIADMK की स्वतंत्रता पर जोर देने की दिशा में एक कदम है.
जयललिता के निधन के बाद से DMK और उसके सहयोगी दल, AIADMK को बीजेपी का गुलाम बताते रहे हैं. गठबंधन तोड़ने का निर्णय बीजेपी की बेड़ियों को तोड़ने और इस धारणा को सही करने का एक प्रयास है.
AIADMK को अब लोगों के पास जाने और राज्य में DMK के प्रमुख विपक्ष के रूप में अपनी खराब हुई छवि को फिर से हासिल करने की जरूरत है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में इसका प्रदर्शन सबसे अच्छा नहीं रहा है और कई लोगों को लगता है कि पलानीस्वामी ने DMK सरकार से मुकाबला करने के लिए अन्नामलाई को जगह दे दी है. वह अब उस गलती को सुधारने के लिए उत्सुक होंगे.
सच्चे नेता वे हैं जो जरूरत पड़ने पर साहसिक, निर्णायक निर्णय लेते हैं और उन्हें महत्व देते हैं. एडप्पादी पलानीस्वामी ने अभी-अभी एक ऐसा फैसला लिया है और उस पर अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा दिया है. क्या वो AIADMK के पुनरुद्धार की पटकथा लिख सकते हैं? यह तो समय ही बताएगा.
(सुमंत सी रमन एक टेलीविजन एंकर और राजनीतिक विश्लेषक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sumanthraman है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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