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8 जुलाई को अमरनाथ (Amarnath) में बादल फटने की वजह से 16 लोगों की मौत हो गई और 40 लोग लापता हुए. 11 जुलाई से अमरनाथ यात्रा फिर से शुरू तो हो चुकी है, लेकिन जो लोग इस आपदा में मारे गए वह अब कभी अपने घर वापस नही लौटेंगे और उनके रिश्तेदारों का इंतजार हमेशा लंबा ही होता रहेगा.
यह बात सही है कि अमरनाथ हो या चारधाम कोई भी तीर्थ यात्रा रोकी नहीं जा सकती, लेकिन यात्रियों की संख्या में नियंत्रण लगाने के साथ-साथ आपदा प्रबंधन को बेहतर बना कर जानमाल की हानि कम की जा सकती है.
वीसी स्कॉट ओ कॉनर ने साल 1920 में लिखी किताब 'द चार्म ऑफ कश्मीर' में अपनी अमरनाथ यात्रा के बारे में लिखते हुए जून के आसपास अमरनाथ यात्रा को बड़ा मुश्किल करार दिया है.
अमरनाथ यात्रा के दौरान सबसे पहला बड़ा हादसा साल 1969 में हुआ था, तब जुलाई महीने में बादल फटने से करीब 100 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी.
पिछले साल 28 जुलाई को भी इस बार की तरह गुफा के पास बादल फटा था लेकिन कोरोना वायरस के कारण यात्रा बंद रही इसलिए जान माल की हानि नहीं हुई थी.
15 जुलाई 2004 को गृह मंत्रालय की तरफ से लोकसभा में कहा गया था कि नीतीश के सेनगुप्ता रिपोर्ट के अनुसार अमरनाथ यात्रा में प्रतिदिन 3500 यात्रियों को ही भेजा जाना चाहिए, जिसमें पहलगाम रूट से 2800 और बालटाल से 700 को ही यात्रा की अनुमति दी जाए.
अमरनाथ गुफा के दर्शन करने वाले यात्रियों की संख्या पर नजर डालें तो 'श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड' की वेबसाइट में इस साल अमरनाथ आने वाले यात्रियों की संख्या नहीं दिख रही है, लेकिन दैनिक जागरण की खबर के अनुसार अमरनाथ यात्रा के पहले सात दिन में ही एक लाख लोगों ने पवित्र गुफा के दर्शन कर लिए थे.
साल 2019 में लगभग 3,42,000 लोगों ने अमरनाथ यात्रा पूरी की थी, 20 जुलाई 2019 को एक दिन में सबसे अधिक 20,915 यात्री पवित्र गुफा गए थे.
केदारनाथ आपदा में मुख्य मंदिर के आसपास हुई बेतरतीब बारिश की वजह से मरने वाले लोगों की संख्या अधिक थी और ऐसा ही कुछ अमरनाथ में भी हुआ है. अमरनाथ यात्रा में लाखों लोगों की आमद की वजह से यात्रा के रास्तों में टेंट और दुकानों की भरमार रहती है.
2017 में 'अमरनाथ यात्रा: एक सैनिक तीर्थ यात्रा' नाम से आई रिपोर्ट के अनुसार साल 2013 में अमरनाथ यात्रा में पड़ने वाले टेंट और दुकानों की संख्या 6130 थी.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है अमरनाथ यात्रा के रास्ते में जो लंगर भूखे और थके यात्रियों को आराम देने के लिए बनाए गए थे, अब वह किसी शादी की पार्टी सा एहसास देते हैं. उदाहरण के लिए पौषपत्री में भंडारे के दौरान 100 से अधिक व्यंजन खिलाए जाते हैं. इन लंगरों में भीड़ बहुत अधिक रहती है और इस आपदा में भी आपदा क्षेत्र के लंगर में बहुत अधिक लोगों के जमा होने की खबर सामने आई है.
उत्तराखंड में 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद डॉप्लर रडार लगाने की बात शुरू हुई और मुक्तेश्वर में रडार शुरू भी हो चुका है.
अमरनाथ यात्रा के दौरान भी पवित्र गुफा के आसपास हर साल डॉप्लर रडार लगाने की बात होती है पर आपदा के दौरान यह किसी काम नही आया और न ही मौसम विभाग तेज वर्षा की सटीक जानकारी देने में कामयाब रहा.
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