advertisement
‘मुंबई क्राइम’ नाम की कोई दिलचस्प रोमांचक सीरीज किसी स्ट्रीमिंग सर्विस में अब तक नहीं है, जिसके सलीके से बने एपिसोड्स को लगातार देखा जा सके जैसा कि दिल्ली के नाम पर है. मुंबई की ये एक सच्ची कहानी है जो एकदम अलग रियलिटी शो में बदलती जा रही है.
इसमें भारत के सबसे रईस उद्योगपति मुकेश अंबानी का घर, एक एसयूवी जिसमें जिलेटिन की छड़ें मिलीं, और एक बहुत ही खराब तरीके से लिखा गया धमकी भरा पत्र, इसके बाद एसयूवी के मालिक, एक कार डीलर का गायब होना और उसकी मौत, विवादों में रहे एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी, मुंबई पुलिस के सीपी का तबादला और इन मामलों की भारत की आतंकवाद विरोधी एजेंसी की जांच शामिल है.
ये कहानी जो 25 फरवरी की रात मुंबई के कार्माइकल रोड- भारत के अरबपतियों के रहने की जगह- से शुरू हुई, अलग-अलग तरह के इलाकों से गुजर चुकी है.
शहर के दूर-दराज का इलाका ठाणे-कलवा और इसका क्रीक, जहां एसयूवी के मालिक मनसुख हिरेन का शव मिला, लो टाइड के कारण शव समंदर में बह कर नहीं जा सका.
मुंबई पुलिस की खास क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट, जहां सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वझे-मुठभेड़ में एक व्यक्ति की हत्या के मामले में सस्पेंड होने के 17 साल बाद बहाल किए गए-पिछले हफ्ते NIA के द्वारा गिरफ्तार किए जाने से पहले तक सारे बड़े फैसले ले रहे थे.
दिल्ली की तिहाड़ जेल जहां आतंकी घटनाओं के आरोप में कैद एक आरोपी जिसने टेलीग्राम चैनल के जरिए मैसेज भेजकर जिलेटिन स्टिक भेजने की साजिश में जैश-उल-हिंद के शामिल होने का दावा किया
स्क्रिप्ट में राजनीतिक एंगल न हो तो कैसा क्राइम थ्रिलर? वझे सस्पेंड होने के बाद शिव सेना में शामिल हुए थे, शिव सेना के नेताओं के साथ कथित तौर पर बिजनेस शुरू किया और पिछले साल नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार बनने के बाद फिर से बहाल कर दिए गए.
उन्हें सबसे ज्यादा मांग में रहने वाली पोस्टिंग मिली, बड़े-बड़े मामलों की जांच की जिम्मेदारी उन्हें मिली-अंबानी जिलेटिन स्टिक केस, सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या, आर्किटेक्ट अन्वय नाइक आत्महत्या केस जिसमें उन्होंने टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार किया.एनआईए के मुताबिक शायद सचिन ने ही अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर एसयूवी पार्क की.
इसका मतलब है कि वझे ने सारा कुछ किया और खुद ही मामले की जांच भी कर रहे थे.
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के सहयोग से शिव सेना के नेतृत्व में चल रही एमवीए सरकार हमेशा से शिव सेना की पूर्व सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के निशाने पर रही है जिसके नेता प्रसिद्ध हैं वो तारीखें देने के लिए जिस दिन वो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बना लेंगे.
एसयूवी मिलने के बाद पहले कुछ दिन तक बीजेपी से जुड़े सोशल मीडिया हैंडल्स ने ‘बम धमकी’ को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के अंबानी और साथी- उद्योगपति अडानी के खिलाफ लगाए जा रहे आरोपों से जोड़ा था.
इस बात पर ध्यान देना अहम है कि जिलेटिन स्टिक और नोट के साथ मिले एसयूवी में डिटोनेटर नहीं था, सच पूछिए तो ये एक आईईडी नहीं थी और इससे विस्फोट नहीं किया जा सकता था.
शुरुआती जांच में ये अनुमान लगाया गया कि धमकी जैश-उल-हिंद की ओर से दी गई थी लेकिन ऐसा लगता है कि ये एंगल बिना किसी के ध्यान दिए ही अब ठंडा पड़ गया. ये मान लें कि वझे ने खुद ही जिलेटिन स्टिक से लदी एसयूवी वहां रखी थी तो ये सवाल उठता है कि मुंबई पुलिस का एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर ये क्यों करेगा जब वो जानता है कि कार्माइकल रोड में भारत के कई शहरों की सड़कों से अधिक सीसीटीवी कैमरे हैं और पकड़े जाने पर मामला काफी ऊपर तक जाएगा?
ऐसा लगता है कि इसका उद्देश्य ये दिखाना था कि अंबानी परिवार अंतरराष्ट्रीय या इस्लामी साजिश के निशाने पर था, न कि उन्हें वास्तविक तौर पर खतरे में डालना. ऐसा कौन चाहता है और उसका उद्देश्य क्या है? इस कथित साजिश से किसे फायदा हुआ है?
इन सवालों के जवाब में राजनीति अनिवार्य तरीके से दिख जाती है. क्राइम थ्रिलर की तरह ही पॉलिटिकल थ्रिलर में भी-उद्देश्य ही सब कुछ होता है. इस मामले में कई तरह के उद्देश्य हैं.
ये उद्धव ठाकरे सरकार को अस्थिर करने और अप्रत्याशित गठबंधन को खत्म करने की एक और कोशिश हो सकती है जिसने मुंबई और महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से दूर रखा है. बीजेपी के बड़े नेताओं में ठाकरे को लेकर राय साफ नहीं है, वो पलटकर जवाब देने वालों में से हैं. कोविड 19 से जुड़े मसलों पर हाल ही में हुई एक बैठक में ठाकरे और गृह मंत्री अमित शाह के एक-दूसरे से सीधे-सीधे उलझने की खबरें आईं और इस दौरान दोनों एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे.
2014 में स्थिति बदली जब बीजेपी ने उनके गठबंधन में नियंत्रण करने की कोशिश की, दोनों में से किसी भी पार्टी ने सुलह और शांति की कोशिश नहीं की.
बीजेपी का मानना है कि ठाकरे ने पवार की मदद से 2019 विधानसभा चुनाव के जनादेश को ‘चुरा’ लिया और हर मौके पर सरकार के लिए बाधा खड़ी की- या ऐसी स्थिति बनाई जिससे परेशानी बढ़ जाए. ठाकरे के साथ बीजेपी की लड़ाई में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, रियल एस्टेट के लोगों, टीवी एंकर और कई लोगों का इस्तेमाल हुआ है. अंबानी एसयूवी मामला ऐसी ही एक और कोशिश भी हो सकती है.
महाराष्ट्र सरकार के अंदर भी राजनीति चल रही है. अंबानी-एसयूवी मामले में ठाकरे के सुर पिछले हफ्ते के अंत में पवार के साथ हुई बैठक के बाद बदल गए-वझे को तुरंत सस्पेंड कर दिया गया, मुंबई के पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह की जगह हेमंत नगराले को दे दी गई, ठाकरे के विश्वासपात्र और शिव सेना के सांसद संजय राउत ने माना कि केस को संभालने में शायद कुछ गलतियां हुई हैं.
पिछले 15 महीनों में एक बार फिर पवार ने दिखाया कि वो ठाकरे को संकट से निकाल सकते हैं. ये एक दिलचस्प विरोधाभास है-प्रशासकीय अनुभवहीनता या असुरक्षा के कारण ठाकरे जितना खुद को संकट में डालेंगे, पवार उतने ही ज्यादा बड़े रक्षक, मुसीबत से बचाने वाले की अपनी को भूमिका मजबूत करेंगे.
जो लोग पवार को जानते हैं वो दावे के साथ कह सकते हैं कि वो बमुश्किल ही लोगों को पूरी तरह से सहज होने का मौका देते हैं, ये ठाकरे के साथ भी जरूर हो रहा होगा. पवार ने ठाकरे को मुख्यमंत्री के तौर पर सामने किया लेकिन वो ये जरूर चाहते होंगे कि आखिरकार उनकी पार्टी का कोई मुख्यमंत्री बने. अगर ठाकरे की छवि को सार्वजनिक तौर पर चोट पहुंचती है तो इससे पवार मजबूत होते हैं.
शिव सेना के अंदर भी राजनीति है, अलग-अलग गुट एक-दूसरे को देखना तक नहीं चाहते, वरिष्ठ नेताओं की या तो ठाकरे तक पहुंच नहीं है या वो पहुंचना नहीं चाहते, ठाकरे के करीबी नेता- जिनका अक्सर ‘किचन कैबिनेट’ कह कर मजाक भी उड़ाया जाता है, अपना काम ठीक से पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शिव सेना या ठाकरे परिवार के लिए उनकी उपयोगिता को देखते हुए उन्हें चुना गया था. ऐसा लगता है कि अंबानी-एसयूवी केस में वो कुछ ज्यादा ही आगे निकल गए. मनसुख हिरेन, अगर हिरेन की पत्नी की बात पर भरोसा किया जाए तो जो सचिन वझे के साथ बिजनेस करते थे, को जिलेटिन स्टिक के बारे में क्या पता था? इससे भी जरूरी बात ये कि क्या वझे उन्हें चुप कराना चाहते थे और क्यों?
बीजेपी के लिए ये एक अच्छा समय है, ठाकरे को शर्मिंदा करने के लिए फडणवीस ने बार-बार सेना-वझे कनेक्शन का हवाला दिया और ऐसी सूचनाओं को विधानसभा में रखा जिससे मंत्री भी हैरान रह गए.
साथ ही, अधिकारियों का एक वर्ग फडणवीस के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखता है, पता नहीं कब वो फिर से मुख्यमंत्री बन जाएं. जब तक ठाकरे तत्काल बदलाव नहीं करें तब तक इसका अंत भला नहीं हो सकता.
इस बात में कोई शक नहीं है कि आने वाले हफ्तों में अंबानी-एसयूवी केस को लेकर और भी कई तरह की कहानियां सामने आएंगी. ये सिर्फ एक क्राइम थ्रिलर नहीं एक पॉलिटिकल रिएलिटी शो या एक पॉलिटिकल थ्रिलर बनने को तैयार है- लेकिन इसका मास्टरमाइंड स्क्रिपट राइटर शायद एक रहस्य ही रह जाए.
पढ़ें ये भी: संडे व्यू: बंगाल ने खोई अपनी खासियत, ‘एनकाउंटर ब्रिगेड’ बेनकाब
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined