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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की बात मानें तो ट्रंप खुद ही अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा हैं. बोल्टन की किताब “दि रूम वेयर इट हैपेंड” इसी हफ्ते रिलीज हो रही है. इसके कुछ हिस्से अखबारों में छप रहे हैं. किताब की सॉफ्ट कॉपी इंटरनेट पर वायरल है.
किताब में ट्रंप का जो चरित्र चित्रण किया गया है वो काफी डरावना है, लेकिन दिक्कत ये है कि ये खुलासा आपको चौंकाते नहीं क्योंकि ट्रंप के बारे में ज्यादातर लोगों को पता है कि वो न तो लोकतांत्रिक हैं और न ही शरीफ. झूठ बोलने का वो रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं. अब तक 18 हजार! कोरोना काल में उनकी झूठ बोलने का रोज का औसत आंकड़ा है 23.8.
बोल्टन की किताब में दुनिया भर का मसाला है लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा चीन से जुड़ी घटनाओं पर हो रही है. वो इसलिए कि ट्रंप दोबारा चुनाव जीतने के लिए इस वक्त चीन के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं जबकि बोल्टन बताते हैं कि ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की खुशामद में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. शी को खुश करने के लिए ट्रंप अपने प्रशासन के लोगों से कई क्रिमिनल मामलों में नरमी बरतने या मामले को खत्म करने के लिए दबाव डालते थे.
बोल्टन ने शी और ट्रम्प की मुलाकातों और टेलीफोन वार्ताओं का विस्तार से जिक्र किया है. पिछले साल 18 जून को ओसाका में जी-20 समिट के पहले एक फोन कॉल पर ट्रंप ने शी को कहा कि
समिट के दौरान बोल्टन के मुताबिक ट्रंप ने शी से कहा कि चीन के पास बहुत बड़ी आर्थिक क्षमता है और चुनाव पर असर डाल सकता है.
ट्रंप ने शी से मिन्नत करते हुए कहा कि वो उनको दोबारा राष्ट्रपति बनाने में मदद करें. शी ने इसके पहले ( 1 दिसंबर, ब्यूनस आयर्स) कहा था कि वो ट्रंप के साथ छह साल और काम करना चाहते हैं यानी इशारा ये था कि ट्रंप को दूसरा टर्म मिलना चाहिए. इस पर ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में इस बात की चर्चा है कि मुझे तीसरा टर्म में मिल जाए इसके लिए कानून में संशोधन कर देना चाहिए. 29 दिसंबर को फोन पर शी ने ये बात फिर दोहराई और ट्रंप से कहा कि तीसरा टर्म हासिल करने के लिए वो अमेरिकी संविधान में संशोधन कराएं.
ट्रेड वॉर खत्म करने पर जब दोनों देशों के बीच में बातचीत हो रही थी तो ट्रंप का सारा फोकस इस बात पर था कि अमेरिका के सामरिक हितों की रक्षा के बजाय क्या क्या सौदेबाजी हो सकती है जिससे उनको चुनावी फायदा हो. जब अमेरिका ने चीनी इंपोर्ट पर ड्यूटी लगायी और चीन ने उसका विरोध किया, ट्रंप ने शी से कहा कि वो ड्यूटी कम कर देंगे लेकिन साथ ही चीन अमेरिका से कृषि उत्पादों का इंपोर्ट करे, खासकर गेहूं और सोयाबीन. इससे उनको खेती वाले राज्यों में खूब वोट मिलेंगे.
बोल्टन का एक और खुलासा चौंकाने वाला है. चीनी टेलीकॉम कंपनी ZTE और हुवावे के खिलाफ अमेरिका में गंभीर क्रिमनल जांच चल रही थी लेकिन ट्रंप अपने सहयोगियों पर लगातार दबाव डाल रहे थे कि इन मामलों को रफा दफा किया जाए ताकि वो चीन के साथ एक अच्छी ट्रेड डील कर सकें. ZTE के मामले में तो कॉमर्स डिपार्टमेंट ने जुर्माना लगाने का ऐलान कर दिया. इस पर ट्रंप कॉमर्स सेक्रेटरी विलंब रॉस से बहुत नाराज हुए.
शी ने जब अपनी नाराजगी जाहिर की तो ट्रंप ने उनसे कहा कि ZTE तो अच्छी कंपनी है. वो इस मामले को ठीक कर देंगे और इसके बाद ट्रम्प ने 13 मई को पहले ट्वीट ठोका और उसके बाद कॉमर्स डिपार्टमेंट से उस कार्रवाई को रद्द करवाया. ट्वीट में ट्रंप ने लिखा, “प्रेसिडेंट शी और मैं एक साथ सुनिश्चित कर रहे हैं कि विशाल फोन कंपनी ZTE तेजी से अपना कारोबार पटरी पर लाए. चीन में बहुत सारी नौकरियां चली गई हैं. मैंने कॉमर्स डिपार्टमेंट को निर्देश दे दिए हैं.”
अमेरिका अपने नागरिकों की हिफाजत के लिए किसी भी हद तक जाता है लेकिन जब उसके दो नागरिकों को चीन ने गिरफ्तार कर लिया तो अमेरिकी प्रशासन ट्रंप से कहता था कि वो शी पर दबाव डाले कि इन नागरिकों को रिहा किया जाए. ट्रंप ने जब ये बात दबे स्वर में कही तो शी ने जवाब दिया कि इन नागरिकों के पास दोनों देशों की नागरिकता है इसलिए वो उन्हें रिहा नहीं कर पाएंगे. इसके बाद ट्रंप ने उस मामले पर कोई दबाव नहीं डाला और ये विषय वहीं छोड़ दिया.
शी ने ट्रंप से कहा कि चीन में उइगर मुसलमानों के लिए वो कंसंट्रेशन कैंप (जेल) बना रहे हैं तो ट्रंप ने कहा कि यह बहुत अच्छी बात है. जबकि अमेरिका का स्टैंड हमेशा से ये था कि उइगर मुसलमानों पर चीन ज्यादती कर रहा है. हांगकांग के मामले में भी ट्रंप ने इसे चीन का आंतरिक मामला बताया ताकि शी उनसे नाराज न हो जाए.
इस किताब में ट्रंप का जो चरित्र दिखता है वो एक ऐसे आदमी का है जो अपने निजी और राजनीतिक फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और गिर सकता है. वो दुनिया भर के तानाशाहों की मदद के लिए आतुर रहते हैं.
तुर्की के प्रेसिडेंट एरडोवान के कहने पर ट्रंप ने अपने ही फेडरल प्रासिक्यूटर को हटा दिया क्योंकि वो एरडोवान के करीबी दोस्त के एक बैंक घोटाले की जांच कर रहा था.
पहले राष्ट्रपति चुनाव में जीतने के लिए रूस की मदद और दूसरे चुनाव में यूक्रेन की मदद मांगने के किस्सों का भी इस किताब में पूरा विवरण है. ट्रंप के अज्ञान का हाल ये है कि उनके को ये पता नहीं था कि इंग्लैंड के पास न्यूक्लियर हथियार हैं. उनकी नजर में फिनलैंड रूस का हिस्सा है.
जॉन बोल्टन कट्टर रिपब्लिकन हैं फिर भी उन्होंने ट्रंप की कड़ी आलोचना की है तो इसकी वजह ये है कि वो ट्रेड और इमीग्रेशन के मामले में रिपब्लिकन नीतियों से बिलकुल हट गए हैं.बोल्टन की किताब का एक बड़ा निचोड़ ये है कि ट्रंप बेहद अज्ञानी हैं और उनकी दिलचस्पी सिर्फ उन्हीं मुद्दों में होती है जो चुनाव में उनका फायदा कराएं. बाकी मेहनत के कामों में उनका मन नहीं लगता. अमेरिका में कई लोग ये सवाल पूछ रहे हैं कि बोल्टन ने ये बातें अभी क्यों बताईं. जब राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा था तो पद पर रहते हुए उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया और जब ट्रंप पर महाभियोग की कार्रवाई चल रही थी तब उसमें बोल्टन ने गवाही क्यों नहीं दी. इस किताब के बारे में बोल्टन इस वक्त अमेरिकी मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं जिनमें वो ये कह रहे हैं कि ट्रंप का दोबारा राष्ट्रपति बनना अमेरिका के लिए बेहद खतरनाक होगा.
जो चीन सुपर पावर अमेरिका को पछाड़कर खुद सुपर पावर बनना चाहता है,उसके हाथ में ट्रंप कैसे खेल गए और अमेरिका समेत पूरी दुनिया का उन्होंने इतना बड़ा नुकसान कर दिया, इसको समझने लिए बोल्टन की एक किताब काफी नहीं है. ऐसे बहुत सारे राजफाश होने अभी बाकी हैं. 
ट्रंप शो बाज हैं और शो बाजी से अंतरराष्ट्रीय संबंध, कूटनीति, राष्ट्रहित नहीं साधे जा सकते, ये सबक अमेरिका बहुत बड़ी कीमत चुकाकर सीख रहा है. खासकर अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिसिया हत्या के बाद ट्रंप का जो रूप अमेरिकी नागरिकों ने देखा वो उन्हें काफी बेचैन कर रहा है
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Published: 23 Jun 2020,09:37 PM IST