बीस जून को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहली चुनावी रैली बुरी तरह फ्लॉप हो गई. किसी देश के राष्ट्रपति को राष्ट्रीय स्तर पर बेवकूफ बनाने का ऐसा कोई उदाहरण याद नहीं आता. ट्रंप ने अपनी पहली चुनावी रैली टुलसा, ओक्लाहोमा में रखी थी.
जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिसिया हत्या के बाद अमेरिका के हर तबके में जो गुस्सा उबला उसके बाद ये ट्रंप की पहली रैली थी. इस रैली से वो जो श्वेत वर्चस्ववाद का सिग्नल दे रहे थे, उससे लोग और नाराज हो गए. ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन से जुड़े युवा अमेरिकी, चाहे वो ब्लैक हों या वाईट और दूसरे लोग भी बड़ी तादाद में जुड़े हुए थे.
ट्रंप की चुनावी टीम ने मोबाइल फोन के जरिए रैली में हिस्सा लेने के लिए लोगों को रजिस्ट्रेशन के लिए आमंत्रित किया था. कुछ अमेरिकी टीनेजर्स ने टिकटॉक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट के जरिए लोगों से कहा कि वो लोग ट्रंप की रैली के टिकट बुक करा लें, लेकिन उसमें ना जाएं. नतीजा ये हुआ कि ट्रंप की चुनावी टीम के पास करीब 10 लाख टिकट बुकिंग की डिमांड आ गई. ट्रंप और उनकी टीम ने खूब हल्ला मचाया कि ये रैली ऐतिहासिक होने वाली है. जिस स्टेडियम में ये रैली हुई उसमें 19 हजार लोग बैठ सकते हैं. ट्रंप टीम को लगा कि बहुत लोग आने वाले हैं तो उन्होंने बाहर की खुली जगह पर भी इंतजाम किया, लेकिन आखिरी वक्त में उसको कैंसिल करना पड़ा. ये डर भी था कि कहीं रैली कोरोना वायरस का इंफेक्शन न फैला दे. ट्रंप टीम ने टिकट के साथ ये कानूनी शर्त भी लगा दी थी कि किसी को कोरोना हुआ, तो जिम्मेदारी उनकी होगी और ट्रंप की टीम इसका कोई मुआवजा नहीं देगी.
अब अमेरिकी मीडिया में इस तरह की कई रिपोर्ट आ रही हैं, जिसके आधार पर कहा जा रहा है कि इस रैली में सिर्फ 6000 लोग आए.
रैली के फ्लॉप होने के बाद सोशल मीडिया पर टीनेज यूजर्स ने ये दावा किया कि रैली उन्होंने फ्लॉप कराई है. अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने तुरंत इन दावों की जांच की और बताया कि ट्रंप को चकमा देने के इस भूमिगत अभियान को कैसे अंजाम दिया गया.
ये ट्विटर से शुरू हुआ. अमेरिका के लड़के-लड़कियां साउथ कोरिया के म्यूजिक बैंड 'के पॉप' के दीवाने हैं. जब ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन तेज हो रहा था तब इन दीवानों ने इस हैशटैग पर अपना कब्जा जमाने के लिए बड़ी मेहनत की, ताकि ट्रंप के समर्थक इसका दुरुपयोग न कर पाएं. पहले यहां ट्रेंड कराया गया कि रैली की टिकट बुक कराएं, लेकिन रैली में ना जाएं. उसके बाद ये ट्रेंड टिकटॉक पर गया.
टिकटॉक में एक नई दुनिया बनी है. वो है ऑल्ट टिकटॉक की, जहां पर जो टिकटॉक और ट्रेंड होता है, उसका मजाक उड़ाया जाता है. यह अमेरिका में बहुत पॉपुलर हो रहा है.
जिन लोकल कम्युनिटी ग्रुप्स ने इस कॉल टू एक्शन के आइडिया पर काम किया, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि ट्रंप के चुनावी मैनेजरों को इसकी भनक न लगे. जिन लोगों ने ये अभियान चलाया, उनके मैसेज इन सभी प्लैटफॉर्म पर 24-48 घंटे से ज्यादा ना रहें. इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर स्टोरी का फीचर मौजूद है, जहां मैसेज 24 घंटे के बाद डिलीट हो जाता है. ऐसे तरीके आजमाए गए. ये अभियान काफी वायरल हो गया और सिर्फ ओक्लाहोमा ही नहीं आस पास के भी लोगों ने इसमें खूब शिरकत की.
मिसाल के तौर पर एक श्वेत महिला मैरी जो लॉप ने भी टिकटॉक पर एक मैसेज पोस्ट किया था, जिसे थोड़ी ही देर में सात लाख से ज्यादा लाइक्स मिले. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट बताती है सिर्फ इस महिला का वीडियो देखकर बड़ी तादाद में लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया.
टुलसा की ये रैली ट्रंप के लिए बेहद अहम थी. वो ये रैली 19 जून को करना चाहते थे. इस दिन को अमेरिका में जूनटींथ कहा जाता है. इसी दिन अमेरिका में गुलामी के खत्म होने का ऐलान हुआ था, लेकिन टुलसा वो जगह है, जहां 99 साल पहले एक दंगे में श्वेतों ने 300 अश्वेतों की हत्या की थी. अमेरिकी लोगों को ये बात बहुत नागवार गुजरी. आलोचना हुई तो ट्रंप ने रैली एक दिन आगे खिसका दी.
जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद अमेरिका उम्मीद कर रहा था कि ट्रंप पश्चाताप करेंगे, लेकिन दरअसल उन्होंने नस्लवाद की आग को और हवा दी और अमेरिकी नागरिकों के खिलाफ फौज के इस्तेमाल की धमकी दी. पिछले दिनों के घटनाक्रमों ने ट्रंप को बड़ी राजनीतिक मुसीबत में डाल दिया है. नवंबर के चुनाव के पहले उनकी लोकप्रियता काफी गिरी है. उनकी हताशा साफ दिख रही है.
टुलसा के फ्लॉप शो ने उनका टेंशन और बढ़ा दिया है. इस रैली में वो बेहद खिसियाए हुए थे. इसलिए भाषण में अजीबोगरीब हरकतें करते रहे. कभी पानी का गिलास फेंका, कभी कैमरा टीमों की तरफ इशारा करके कहा कि ये फेक मीडिया है. ये बुरे लोग हैं. यह भाषण ट्रंप की सस्ती नाटकीयता का ताजा और प्रतिनिधि उदाहरण है.
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