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अंकित के मारे जाने के लिए इतनी वजह काफी है कि वह भारत में होकर भी प्रेम करना चाहता है. उसका दोष प्रेम करना है. जाति, धर्म, गोत्र, जन्म स्थान, ये सब तो बस बहाने हैं. वह इनमें से किसी भी वजह से या बेवजह भी मारा जा सकता है.
अंकित मर्डर एक अखिल भारतीय बीमारी है. या कहिए कि यह दक्षिण एशिया की समस्या है. अंकित सक्सेना की दिल्ली की सड़क पर हत्या ने देश को सिर्फ इसलिए चौंकाया है कि यह घटना दिल्ली में सरेआम हो गई. वरना अंकित की मृत्यु एक आम बात है. अंकित का कोई भी नाम हो सकता है और उसका मजहब कुछ भी हो सकता है. अंकित मर्डर केस हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं है. अंकित के पिता ने सही कहा है. यह अपराध है और अपराधियों को दंड मिलना चाहिए.
जिस भारतीय परिवार संस्था के इतने गुण गाए जाते हैं, वह ऐसे मामलों में सबसे निर्मल और क्रूर रूप में सामने आता है. आम स्थितियों में जो परिवार बेहद मानवीय और सामाजिक नजर आता है, वही भारतीय परिवार लड़कियों की देह पर अधिकार के मामले में हिंसक और निष्ठुर हो जाता है.
कोई आम भारतीय परिवार अपने परिवार की वयस्क लड़की को यह छूट देने को राजी नहीं है कि वह अपनी मर्जी से किसी लड़के के साथ घूमे, सेक्स करे और शादी करे. ऐसा करने पर परिवार के सदस्य मिलकर बेटी की और उसके प्रेमी की क्रूरतम तरीके से हत्या कर सकते हैं और इसका किसी को अफसोस भी नहीं होता. ऐसे हत्यारों का कानून से बचाव भी परिवार ही करता है.
भारतीय परिवार लड़की को पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने को भी आम तौर पर तैयार नहीं है. अगर कोई बेटी पैतृक संपत्ति पर क्लेम करे, तो वह लालची और बुरी औरत करार दी जाती है. उसकी हत्या भी हो सकती है और हत्या करने वाले उसके भाई ही होंगे. अगर किसी भारतीय बेटी को अच्छा बनना है, तो उसे पैतृक संपत्ति से अपना हक छोड़ना होगा. इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि भारतीय कानून बेटी को पैतृक संपत्ति में अधिकार देते हैं. लेकिन कानून तो एक आधुनिक संस्था है. परिवार और समाज तो पुरातन परंपरा से चलने वाली चीज है, जिसमें संस्कार है, रिवाज है, चलन है.
शहरों में रहने वाले लगभग हर आदमी के जीवन में एक गांव भी है, जहां वह अपनी आदिम पहचान से पहचाना जाता है. जहां के सामंतवाद के अवशेषों को लेकर ही वह शहर में आता है. भारतीय शहरी का गांव उसके सिर पर गठरी की तरह बंधा है.
भारत का आदमी सिलिकॉन वैली में बरसों रहने के बाद बहुत सहजता से अपनी जाति में शादी करने के लिए भारत लौटकर आता है. कुंवारी दुल्हन की खोज करता है और दहेज के गहने गिनता है. वह नासा में काम करते हुए अपने पितरों के लिए तिल के लड्डू कौए को खिला सकता है और यह सोच सकता है कि उसका यह पिंडदान उसके मृत पूर्वजों तक पहुंचेगा. भारत में आधुनिकता का मतलब पुरातन से संबंध विच्छेद नहीं है.
भारत में आधुनिक और पुरातन के बीच एक अवैध संबंध है, जो टूट नहीं रहा है. कुछ लोग गर्व से इसे जमीन और परंपरा से जुड़ा होना बताते हैं. यही वजह है कि भारत बेशक संविधान से चलता है, लेकिन समाज और परिवार अभी भी मनुस्मृति और धर्मग्रंथों से ही चलते हैं, जहां औरत को जीवन के हर स्तर पर किसी न किसी पुरुष के अधीन रहना चाहिए- बचपन में पिता के अधीन, शादी में पति के अधीन और बुढ़ापे में बेटे के अधीन. किसी औरत का अच्छी औरत होना इस नियम को मानने के आधार पर ही तय होता है. इन नियमों को तोड़ने की सजा बेहद निर्मम हो सकती है.
औरत के शरीर पर नियंत्रण के लिए उसकी शादी बचपन में करा देने का रिवाज था, जो कानून के डर से अब टूट रहा है. कानून का डर न होता, तो औरतों को शायद आज भी सती किया जा रहा होता और विधवा विवाह को आज भी मान्यता नहीं मिल पाती.
इस मायने में अंकित का मर्डर बेशक एक पुरुष की हत्या है, लेकिन इसके माध्यम से जिसे नियंत्रित करने की कोशिश की गई है, वह एक स्त्री है. ऐसी हर घटना औरत के मन में दहशत पैदा करती है और उसे परिवार के नियंत्रण में रहने की शिक्षा देती है. गौर करने की बात है कि परंपरा को संभाले रखने का दायित्व औरत पर होता है और सारी सजाएं उसके लिए ही मुकर्रर है. कभी कभी कोलेटरल डैमेज के तौर पर, अंकित या मुकेश-बबली मर्डर केस में मुकेश भी इसके शिकार बन जाते हैं.
यानी कि स्त्री की देह उसकी अपनी नहीं है. ये परिवार के सम्मान और प्रतिष्ठा से जुड़ी चीज है, इसलिए स्त्री का दायित्व है कि इस देह को तब तक के लिए बचा कर रखे, जब तक परिवार उसे किसी को सौंपने का फैसला न कर ले. इसलिए उसे प्रेम वगैरह से बचना चाहिए.
अंकित मर्डर केस यह बताता है कि ऐसे प्रेम विरोधी समाज में पैदा होना अपने आप में एक खतरनाक स्थिति है.
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