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केजरीवाल की गिरफ्तारी: दूसरे देशों से मिल रही आलोचना पर जवाब देते वक्त संयम बरते भारत सरकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता ने हाल ही में भारत में नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा पर एक टिप्पणी की.

विवेक काटजू
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Arvind Kejriwal Arrest and India Diplomacy</p></div>
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Arvind Kejriwal Arrest and India Diplomacy

(फोटो: अरूप मिश्रा/ क्विंट हिंदी)

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दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति (Delhi Excise Policy) मामले में 21 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया. इसके बाद जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक असाधारण टिप्पणी की. इस बयान को पूरी तरह से बताया जाना चाहिए ताकि यूरोप के इस अग्रणी देश की भावना को समझा जा सके.

प्रवक्ता ने कहा, ''हमने मामले का संज्ञान लिया है. भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हम मानते हैं और उम्मीद करते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों से संबंधित मानकों को इस मामले में भी लागू किया जाएगा. आरोपों का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति की तरह, केजरीवाल निष्पक्ष और पारदर्शी सुनवाई के हकदार हैं. इसमें यह भी शामिल है कि वह बिना किसी प्रतिबंध के सभी उपलब्ध कानूनी रास्तों का उपयोग कर सकते हैं. दोषी साबित होने तक निर्दोष मानना कानून के शासन का एक केंद्रीय सिद्धांत है और यह उनपर लागू होना चाहिए."

जर्मनी के बाद अमेरिका ने भी केजरीवाल की गिरफ्तारी पर टिप्पणी की. फिर, संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता ने चुनाव प्रक्रिया के दौरान भारत में नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता पर एक सामान्य टिप्पणी की ताकि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो.

अमेरिका की प्रवृत्ति अन्य देशों में कानून के शासन पर बिना मतलब टिप्पणियां करने की है और संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता भी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता पर अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त करते हैं.

हालांकि, यूरोप के सबसे महत्वपूर्ण राज्य के रूप में जर्मनी की टिप्पणी विशेष ध्यान देने योग्य है क्योंकि वह आम तौर पर मौलिक अधिकारों और न्यायिक प्रक्रियाओं के प्रति भारत के सम्मान पर अपनी टिप्पणियों को लेकर उतना स्वतंत्र नहीं है जितना कि वह अमेरिका के साथ है.

इसीलिए यह एक विशेष जांच की मांग करता है. लेकिन इससे पहले आइए एक नजर डालते हैं कि भारत ने क्या जवाब दिया है?

अंतरराष्ट्रीय आलोचना पर भारते के जवाब की सच्चाई

23 मार्च को विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता ने कहा, "जर्मन मिशन के डिप्टी चीफ को आज बुलाया गया और हमारे आंतरिक मामलों पर उनके विदेश कार्यालय के प्रवक्ता की टिप्पणियों पर भारत के कड़े विरोध से अवगत कराया गया है. हम ऐसी टिप्पणियों को हमारी न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और हमारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने के रूप में देखते हैं."

भारत कानून के शासन वाला एक जीवंत और मजबूत लोकतंत्र है. जैसा कि देश में और लोकतांत्रिक दुनिया में अन्य जगहों पर सभी कानूनी मामलों में होता है, कानून तत्काल मामले में अपना काम करेगा. इस संबंध में पक्षपातपूर्ण धारणाएं अपनाना अत्यंत अनुचित हैं.
विदेश मंत्रालय

जर्मनी के बयान के बाद भारत के पास इसका पुरजोर खंडन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. ऐसा करके उसने सही काम किया. हालांकि, भारत के जवाब का एक हिस्सा ऐसा है जिससे बचना चाहिए था.

यह कहना ठीक नहीं होगा कि जर्मनी का बयान हमारे न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का एक प्रयास था. इतना पर न रूककर यहां तक कहना कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने का एक प्रयास था, ऐसा कहना कुछ ज्यादा ही था.

भारत के न्यायपालिका की स्वतंत्रता निर्विवाद है

भारतीय राज्य की न्यायिक शाखा दृढ़ता से स्वतंत्र रही है और कोई भी देश या शक्ति इसकी स्वतंत्रता को कमजोर नहीं कर सकती है. दरअसल, प्रवक्ता के शब्दों का गलत अर्थ निकाला जा सकता है कि भारतीय न्यायपालिका में कमजोरी के तत्व हैं.

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इसलिए, सही समय पर, प्रवक्ता को रिकॉर्ड सही करना चाहिए. भले ही सरकार को लगा कि जर्मनी का बयान भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने की कोशिश थी, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता को स्पष्ट रूप से संकेत देना चाहिए था कि ऐसे प्रयास व्यर्थ थे, क्योंकि भारतीय न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता दृढ़ संवैधानिक नींव पर आधारित है.

इसमें सवाल उठता है कि जर्मनी ने यह टिप्पणी की ही क्यों?

क्या वह इस बात से हैरान था कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार एक मौजूदा मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया था? या क्या वह लोकतांत्रिक दुनिया की उस भावना को दोहरा रहे थे कि सरकार ने हाल ही में विपक्षी दलों के संबंध में जो कार्रवाई की है, उससे इन चुनावों में सत्तारूढ़ सरकार के पक्ष में माहौल खराब हो रहा है?

भारत को 'प्रतिक्रियाशील' कूटनीति का समर्थन नहीं करना चाहिए

यदि ऐसा है, तो स्पष्ट रूप से, भारतीय कूटनीति विकसित और लोकतांत्रिक दुनिया को यह समझाने में विफल रही है कि भारतीय कानून लागू करने वाली एजेंसियां पक्षपाती होकर काम नहीं कर रही थीं, बल्कि केवल कानून का पालन कर रही थीं.

इसके अलावा, इन कानूनों और उनके तहत बनाए गए नियमों को अदालतों द्वारा समर्थन दिया गया है. किसी देश की कूटनीति का यह कर्तव्य है कि वह ऐसी वैश्वीकृत दुनिया की चिंताओं का पूर्वानुमान लगाए, परिस्थिति को कंट्रोल करे और आगे वाले को टिप्पणी करने का मौका ही न दे. यही तो सक्रिय कूटनीति है.

एक बार जब सामने वाला देश टिप्पणी कर देता है तो भारत द्वारा उसको नकारना- और उन्हें दृढ़ता से अस्वीकार करना पड़ता है- उसे "प्रतिक्रियाशील कूटनीति" का हिस्सा बनाता है. सक्रिय कूटनीति मजबूत प्रतिक्रियाशील बयानों की तुलना में कूटनीतिक कौशल की एक बड़ी परीक्षा है.

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद कहा कि उनका देश "केजरीवाल की गिरफ्तारी की रिपोर्टों पर बारीकी से नजर रख रहा है और वह उनके लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और समय पर कानूनी प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है."

इन टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए, विदेश मंत्रालय ने एक अमेरिकी राजनयिक को तलब किया और उन्हें भारत की कड़ी आपत्ति से अवगत कराया. विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, "कूटनीति में, राज्यों से दूसरों की संप्रभुता और आंतरिक मामलों का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है. साथी लोकतंत्रों के मामले में यह जिम्मेदारी और भी अधिक है. यह अन्यथा गलत आदतों को स्थापित कर सकता है".

उस पर अमेरिका की प्रतिक्रिया यह रेखांकित करने के लिए थी कि किसी को भी "निष्पक्ष, पारदर्शी और समय पर प्रक्रियाओं" के लिए कहने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

विदेश मंत्री (EAM) एस जयशंकर ने एक पेशेवर राजनयिक के रूप में अमेरिका के साथ काम करते हुए अपना पूरा जीवन बिताया है. उन्होंने अमेरिका के सभी क्षेत्रों में ऐसे अच्छे समीकरण विकसित किए हैं (सिवाय डेमोक्रेटिक पार्टी का वामपंथी हिस्सा छोड़कर). ऐसे में उनके लिए अमेरिकी टिप्पणी निराशाजनक रही होगी.

ऐसी चिंताओं को दूर करने के लिए भारत को जो रणनीति अपनानी चाहिए

केजरीवाल की गिरफ्तारी पर विदेश मंत्रालय की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया के अलावा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी उनपर फटकार लगाई. उन्होंने कहा कि वे देश अपने अंदर देखें. उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उन्हें पता होना चाहिए कि यह वह रास्ता है जो जेल की ओर जाता है. सत्ताधारी दल के सदस्यों और उनसे जुड़े बुद्धिजीवियों ने भी इस बात पर जोर दिया है कि भारत ने उन लोगों को आईना दिखाकर अच्छा किया जो उसे उपदेश देते थे क्योंकि वे खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है.

इन बड़ी-बड़ी प्रतिक्रियाओं के साथ समस्या यह है कि परिपक्व शक्तियां, जिन पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया जाता है, वे अपनी खामियों को स्वीकार करती हैं और साथ ही, अपनी गलत लोकतांत्रिक प्रणालियों की आलोचना को भी दिल पर नहीं लेतीं. यही वह रास्ता है जिसे भारत को भी अपनाना चाहिए.

ऐसा विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि विपक्ष के किसी भी राजनीतिक दल ने जर्मन, अमेरिकी या UNSG के प्रवक्ता की टिप्पणियों का जिक्र नहीं किया है या विदेशी आलोचना के आधार पर मोदी सरकार के खिलाफ तीखा हमला नहीं किया है.

महान शक्तियों को अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं के बारे में अन्य देशों की आलोचना या दोहरे मानकों के आरोपों के प्रति उदासीनता की भारी ताकत का पता होना चाहिए. उन्हें निवारक और सक्रिय कूटनीति का अभ्यास करने की आवश्यकता भी पता होनी चाहिए. ये सिद्धांत भारत पर भी लागू होते हैं.

(लेखक विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव (पश्चिम) हैं. उनसे @VivekKatju तक संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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